मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ?
तुमने जो बीज बोए थे .....
आम -कटहल के ,
फल दे रहे हैं सालों से .
चढ़ाई थी जो बेलें
मुंडेरों पर ,
कबकी फैल चुकी हैं ,
पूरी छत पर.
शेष होने को है ....
तुम्हारे भरे हुए ,
चिरागों का तेल , रंग
दीवारों पर ,
तस्वीरों की,
धुंधलाने सी लगी है.
तुम्हारे आने के
बदलते हुए,
दिन ,महीने और साल ,
मेरी उंगलिओं की पोरों पर
फिसलते हुए ,
तंग आ चुके हैं.
कोने -कोने में सहेजा हुआ
विश्वास ,
दम तोड़ने लगा है
कमज़ोर पड़ने लगी है,
पतंग की डोर पर
तुम्हारा चढाया माँझा.
तुम्हारी चिठ्ठियों के
तारीखों की
बढती हुई चुप्पी ,
कैलेंडर के हर पन्ने पर,
हो रही है
छिन्न-भिन्न .
तुम्हारे आस्तित्व पर चढ़ा
स्वांत: सुखाय,
गूंजने लगा है
हज़ारों मील दूर से ........
फिर इस साल .
तुम्हारे समृध्दी की
तहों में ,
खोने लगा है ,
पिता का चेहरा
और
तुम्हारा यथार्थ
डूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में .......
मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ? /
Monday, November 22, 2010
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मेरे प्रवासी मित्र ,
ReplyDeleteतुम लौट क्यों नहीं आते........... ?
ateet main jhankney ka khoobsurat andaaz or abhivyakti....
abhaar.
तुम्हारा यथार्थ
ReplyDeleteडूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में .......
मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ?
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ .... उम्दा रचना
अप्रवासियों की अपनी अलग परेशानियाँ है, आना तो चाहते है वो लोग, पर बहुत सी बातें रोक लेती है उनको, बेचारे बस ऐसी कविताएँ पढ़ कर आहें भरते है ...
ReplyDeleteलिखते रहिये ...
मन को छूने वाली पंक्तियाँ, लोग जहाँ भी रहें भूल कहाँ पाते हैं, अपनी मिट्टी की याद दिल के किसी कोने में बनी रहती है.
ReplyDeleteपिता का चेहरा
ReplyDeleteऔर
तुम्हारा यथार्थ
डूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में ...
बहुत अच्छी प्रस्तुति ....
मैं इस इंतेज़ार में था के घर मेरा पुकारे मुझको,
ReplyDeleteऔर घर इस इंतेज़ार में कि वो आके बुहारे मुझको!
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी कविता !
ReplyDeleteतुम्हारे समृध्दी की
ReplyDeleteतहों में ,
खोने लगा है ,
पिता का चेहरा
और
तुम्हारा यथार्थ
डूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में .......
मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ?
...... गाँव-शहर से अपनों से सुदूर न जाने कितने घर-परिवार, सगे सम्बन्धी प्रवासी लोगों की राह ताकते रहते हैं, बातें करते रहते है.. अब आएगा.. तब आएगा.... कुछ याद करते हैं, आते-जाते हैं लेकिन कुछ भूल से जाते हैं ..
बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचना.. आभार
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteदिल को छू गयी
www.deepti09sharma.blogspot.com
सच्चे दिल से निकली सच्ची पुकार!! ईश्वर करे यह पुकार सुनी जाए!!
ReplyDeleteतुमने जो बीज बोए थे .....
ReplyDeleteआम -कटहल के ,
फल दे रहे हैं सालों से .
चढ़ाई थी जो बेलें
मुंडेरों पर ,
कबकी फैल चुकी हैं ,
पूरी छत पर.
शेष होने को है .
fantastic is the only word i could get in the diictionary...
very aptly conveyed the message...in a fluent and flowing rhyme!
ek ek shabd jhinjhor hi to gaya dil ko aur u dil kiya ki us pravasi mitr ko pakad hi laau kahin se aur laa ke kadmo me daal dun use uske pariwar ke.
ReplyDeletebahut bahut acchhi sashakt prastuti.
तुम्हारे समृध्दी की
ReplyDeleteतहों में ,
खोने लगा है ,
पिता का चेहरा
और
तुम्हारा यथार्थ
डूबने लगा है ,
तुम्हारी माँ के
गीले स्वप्नों में .......
मेरे प्रवासी मित्र ,
तुम लौट क्यों नहीं आते ?
बहुत सुंदर रचना !
गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
kya kahun , padhkar is kavita ko kahan ko gaya ... man udaas sa ho gaya hai ..
ReplyDeletebahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
लौट आयें दूर बसने वाले...
ReplyDeleteसुन्दर!
सुंदर कविता ।
ReplyDeleteप्रतीक्षा में लीन भावना से ओत-प्रोत कविता
ReplyDeleteकुछ पुरानी चीज़े मुझे भी याद आयी.
ऐसी कविता लिखने के लिए धन्यवाद
bahut khubsurat rachna..........
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