Wednesday, July 25, 2012

कतय स्वतंत्रता-दिवस गेल........


कतय स्वतंत्रता-दिवस गेल,
झंडा क गीत 
कतय सकुचायेल,
दृश्य सोहनगर,देखबैया
छथि 
कतय नुकाएल.
लालकिला आर कुतुबमिनारक
के नापो ऊँचाई,
चिड़ियाघर जंतर-मंतर क 
छूटल 
आबा-जाही.
पिकनिक क पूरी-भुजिया 
निमकी,दालमोट,
अचार,
कलाकंद,लड्डुक डिब्बा लय 
मित्र,सकल परिवार.
कागज़ के छिपी-गिलास,
थर्मस  में 
भरि-भरि चाय,
दुई-चारि टा शतरंजी वा
चादर लिय 
बिछाए.
ई सबहक दिन 
बीति गेल 
आब  
 'मॉल' आर 'मल्टीप्लेक्स',
दही-चुड़ा छथि मुंह 
बिधुऔने,
घर -घर बैसल 
'कॉर्न-फ्लेक्स'.
'कमपिऊटर' पीठी पर 
लदने
मुठ्ठी में 'मोबाइल',
अपने में छथि 
सब केओ बाझल 
यैह नबका 
'स्टाइल'
 

16 comments:

  1. मुठ्ठी में 'मोबाइल',
    अपने में छथि
    सब केओ बाझल
    यैह नबका
    'स्टाइल'
    वाह ... बेहतरीन

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  2. वाह ... आंचलिक भाषा का गज़ब का जादू ...

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  3. आपका अंदाज़ (स्टाइल ) भी बहुत सुन्दर है... लाजवाब

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  4. कतय स्वतंत्रता-दिवस गेल,
    झंडा क गीत
    कतय सकुचायेल,
    दृश्य सोहनगर,देखबैया
    छथि
    कतय नुकाएल.

    लाजवाब

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  5. प्रस्तुतीकरण का अंदाज अच्छा लगा,,,,

    RECENT POST,,,इन्तजार,,,

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  6. अपनी भाषा स्वतंत्रता को ढूंढती...

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  7. पुरान समय सब बिसराये गेल छई. अब पन्द्रह अगस्त खाली छुट्टी के दिन, जाके मॉल में मज़ा करे के. दही चिउड़ा आ निमकी खजूर के दिन गेलई, पाकल खाना बजार से ला के दिन बीतायल, बस इहे जिनगी है. बड़ा निमन रचना, अहाँ के बधाई.

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  8. आपका यह ढंग दिल को भाया। आप मैथिली इतना अच्छा लिखती हैं हर्षित हुआ। एक मैथिलीभाषी होने के बावजूद लिख नहीं पाता अच्छी मैथिली - फिर भी इतना तो लिख ही दूंगा कि -- बड नीक लागल। प्रस्तुत कवित में प्रयुक्त बिम्ब आ प्रतीक एकदम अगल-बगल के लागल और सीधे दिल से जूटि गेल।

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  9. कविता भावोन्नत आ विचार-प्रधान अछि। शब्द आ बिम्ब दुहु मुखर अछि...! व्यंग्यार्थ विचारोत्तेजक...! मैथिल कलमक धार देखि मोन बड्ड प्रसन्न भेल...!

    धन्यवाद !

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  10. मैथिली तो हमें आती नहीं है पर कुछ -कुछ
    समझ आ रहा है ,की पुराने तरीके बदल
    चुके हैं अब नए -नए तरीके आ चुके हैं |
    अब समाज आधुनिक हो गया है |

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  11. बड नीक कविता अछि. अहाँ के बधाई.

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  12. नवका स्टाइल का वर्णन जबरदस्त । क्या ये छत्तीसगढी भाषा है ?

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