कम उम्र और दरभंगा जैसे छोटे शहर में पली-बढ़ी, सीमित ज्ञान लिये जब पहली बार कलकत्ता पहुँची......एकदम विस्मित थी . इतना बड़ा स्टेशन ,प्लेटफॉर्म से लगी हुई गाड़ियों की कतार,सब कुछ अजूबा . निकलते ही आँखों के सामने हावड़ा ब्रिज.....अद्भुद.किताबों में पढ़ती आयी थी …… उससे कहीं ज़यादा प्रभावशाली . ईंटों वाला रास्ता ,ऊँची-ऊँची इमारतें ,विक्टोरिया मेमोरियल ,न्यू मार्केट ,चौरंगी ,पार्क स्ट्रीट ,डलहौजी स्क्वाएर , राइटर्स बिल्डिंग काली बाड़ी ,दक्छिनेश्वर का मंदिर,वेलूर मठ सब कुछ देख-देखकर एकदम अवाक! ख़ुशी की जैसे पराकाष्ठा......(ये 1965-66 की बात है )अम्मा कहती थी कि वो 12 साल की उम्र में ,नाना-नानी के साथ कलकत्ता गयी थी.....और मेरे बाल-मस्तिष्क पर कलकत्ता की जो अनुपम छवि खींच दी थी......सौ फीसदी सही थी.....बाद में 1981से 1986 तक वहाँ रही……… लेकिन अभी भी वो पहली बार वाली छवि जस-के-तस दिल और दिमाग में सुरक्छित है.......मैं यह कह सकती हूँ कि मेरे लिए कलकत्ता दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है.किसी एक शहर का खाना और कपड़ा जीवन पर्यन्त के लिए चुनना पड़े तो मैं निःसंदेह "कलकत्ता" को ही चुनूँगी......
Wednesday, February 5, 2014
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दीदी! यही तो ख़ूबी इस शहर की. आज यह दूसरी पोस्ट है जिसमें कोलकाता का ज़िक्र है और जिसपर मैं कुछ कह रहा हूँ. मेरे लिए तो ये शुरू से सपनों का शहर रहा, इसलिए जब पूरे बिहार से मेरा सेलेक्शन वहाम के लिए हुआ तो मैंने पटना की पोस्टिंग छोड़कर कलकत्ता चुना. फिर इस शहर में मुझे मेरी प्यारी बेटी मिली. हाँ, जब आपने कल्कत्ता छोड़ा तब मैं वहाँ जाकर बसा.. आप 1981 से '86 तक और मैं 1986 से 2001 तक.. पूरे बिहार से चुनकर कोलकाता पोस्टिंग मिली थी और इसी शहर ने 2001 में पूरे बंगाल और उड़ीसा से चुनकर मुझे चार साल के लिए विदेश भेजा.. अब बंगाल का इतना कर्ज़ है मेरे ऊपर! बेटा सत्यजीत राय का दीवाना और विवेकानन्द का भक्त! बंगाल का जादू!! और आपके पास तो असली बंगाल का जादू है!! :)
ReplyDeleteसॉरी दीदी, एक्साइटमेण्ट में पोस्ट से बड़ा कमेण्ट हो गया!!
वाकई कोलकाता की बात ही कुछ और है..
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