साड़ी में फॉल लगाते हुये.......अचानक सोचने लगी……
सुई के धागों में
उलझता-सुलझता हुआ
मेरा मन,
सपनों के टाँके
लगाता रहा.......
और……मैं
समय को
दोनों हाथों से
पकड़कर,
मिलाती रही……
जोड़ती रही……
something for mind something for soul.
इतनी सादगी से मन की बात कह डाली आपने...यही अभिव्यक्ति दिल को छूती है मृदुला जी
ReplyDelete.......बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
हम अक्सर ऐसी ही कोशिश करते हैं और यही कारण है कि जिन्दगी कहीं न कहीं बची रहती है । सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ,सुन्दर कविता ।
ReplyDeleteमन सपनों के आगे कुछ देखना ही नहीं चाहता..सच मन के भी पार है और समय के भी.. सुंदर कविता !
ReplyDeleteबहुत खूब बहुत ही लाज़वाब अभिव्यक्ति आपकी। बधाई
ReplyDeleteएक नज़र :- हालात-ए-बयाँ: ''मार डाला हमें जग हँसाई ने''
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जीमेल हुआ १० साल का - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअंग्रेज़ी का एक मुहावरा है दोनों सिरों को मिलाना... मेकिंग बोथ द एण्ड्स मीट... आपने समय और सपनों को जोड़ते हुये इस मुहावरे को नया अर्थ दे दिया है!! इसे शब्दों की तुरपाई कहें या कसीदाकारी!! सुन्दर!!
ReplyDeleteयह आवश्यक भी है, आपको मंगलकामनाएं !!
ReplyDeleteकितती प्यारी सी बात ........ :)
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावमयी प्रस्तुति.
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