द्रवित ह्रदय के
भाव-भीने
स्वरों से ,
आभार मानती हूँ
उन अपनों का ,
जो
बुरे समय में
किनारा
कर लेते हैं .
टूटे हुए मन के
टूटे-फूटे
शब्दों से,
उपकार मानती हूँ
उन परायों का,
जो
बुरे समय में
साथ
हो लेते हैं,
फिर नमन करती हूँ
दोनों को
कि
बाल्यावस्था से ,
अपने -पराये की
जिस परिभाषा को
लेकर
चलती रही........
अभी -अभी तक
जिस विश्वास पर
विश्वास
करती रही......
एक भ्रम था
बता दिया ,
नए समय का
नया पाठ
पढ़ा दिया और
मेरी मान्यताओं को,
संशोधन की
ज़रुरत है ,
सप्रसंग समझा दिया .
भाव-भीने
स्वरों से ,
आभार मानती हूँ
उन अपनों का ,
जो
बुरे समय में
किनारा
कर लेते हैं .
टूटे हुए मन के
टूटे-फूटे
शब्दों से,
उपकार मानती हूँ
उन परायों का,
जो
बुरे समय में
साथ
हो लेते हैं,
फिर नमन करती हूँ
दोनों को
कि
बाल्यावस्था से ,
अपने -पराये की
जिस परिभाषा को
लेकर
चलती रही........
अभी -अभी तक
जिस विश्वास पर
विश्वास
करती रही......
एक भ्रम था
बता दिया ,
नए समय का
नया पाठ
पढ़ा दिया और
मेरी मान्यताओं को,
संशोधन की
ज़रुरत है ,
सप्रसंग समझा दिया .
zindagi yun hi naye path sikhati hai,
ReplyDeletebahut badhiyaa
hamara seekhana jindagee se ant tak chalata rahega.......
ReplyDeletesunder rachana.......
बहुत सुन्दर,मृदुला जी.
ReplyDeleteनई पुरानी हलचल से यहाँ आया हूँ.
आपकी द्रवित हृदय ने द्रवित कर दिया है.
आप मेरे ब्लॉग से नाराज है क्या?
एक भ्रम था
ReplyDeleteबता दिया ,
नए समय का
नया पाठ
पढ़ा दिया और
मेरी मान्यताओं को,
संशोधन की
ज़रुरत है ,
यह पाठ पढ़ना भी ज़रुरी है .
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteनए समय का
ReplyDeleteनया पाठ
पढ़ा दिया और
मेरी मान्यताओं को,
संशोधन की
ज़रुरत है ,
सप्रसंग समझा दिया
बहुत सुन्दर रचना....
सादर...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteमेरी मान्यताओं को,
ReplyDeleteसंशोधन की
ज़रुरत है ,
सप्रसंग समझा दिया .
अनुभूत सत्य को उजागर करती रचना .
ReplyDeleteज़िंदगी की राहों में वक्त से अच्छा गुरु कौन....
ReplyDeleteसुंदर रचना...
सादर।