विश्वास जहाँ भरता था
कुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
हर मौसम में
आती थी बहार,
हर सीपी में
मोती,
मिलते थे.
हंगामा-ए-आलम(1) में
शौके -बेपरवा(2)
रहते थे,
बरवख्त असूदा,(3)
क़मर(4) और
खुर्शीद(5) की बातें,
करते थे.
शबनम के मोती
चुन-चुन कर ,
हम माला रोज़
बनाते थे,
ऐसे की किसी रियासत में,
राजा और रानी
रहते थे.
ये बातें तब की हैं
जबकि
आसमान
नीला होता था,
पानी का रंग पन्ने जैसा ,
रूबी जैसा मन,
रहता था.
रेशम के धागे,
उलझ-उलझ कर,
टूट गए और
लम्हे सारे बिखर गए,
सपनों से हम
ऐसे जागे कि
चलते-चलते फ़िसल गए.
रफ़ीके-राहे-मंज़िल(6) का
सुख गया,
यहाँ से,
हर औलांगार(7) फ़ीका,
अफ़सुर्दा,(8)
ताबे-रुख़(9) से,
दर्दे-निहाँ(10) उठाकर,
दिन-रात-दोपहर से,
ये साल चल रहा है,
छुपकर
मेरी नज़र से.
1 दुनिया का हंगामा , 2 निश्चिन्त रहने का शौक ,3 संतुष्ट , 4 चाँद , 5 सूरज , 6 सहयात्री , 7 घुमने -फिरने की जगह ,8 उदास ,9 चेहरे की चमक ,10 आतंरिक पीड़ा
Sunday, August 29, 2010
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विश्वास जहाँ भरता था
ReplyDeleteकुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
हर मौसम में
आती थी बहार,
हर सीपी में
मोती,
मिलते थे.
wo dinbhi kya din the! Iske alawa bhi jeevan ho sakte hain,ye khwabo khayalon me socha nahi tha!
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteकई नए शब्द सीखे।
ReplyDeleteइस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।
जबकि
ReplyDeleteआसमान
नीला होता था,
पानी का रंग पन्ने जैसा ,
रूबी जैसा मन,
रहता था.
रेशम के धागे,
उलझ-उलझ कर,
टूट गए और
लम्हे सारे बिखर गए,
सपनों से हम
ऐसे जागे कि
चलते-चलते फ़िसल गए...बिम्ब इतनी ख़ूबसूरती से पिरोये है कि नज़्म पूरे फ्लो में है..कही रूकती नहीं अटकती नहीं नीली साफ नदी सी बहती जाती है...
अति सुंदर!चित्रण भी अऊर शब्द चयन भी!!
ReplyDeleteविश्वास जहाँ भरता था
ReplyDeleteकुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
sunder prastuti.....
विश्वास जहाँ भरता था
ReplyDeleteकुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
हर मौसम में
आती थी बहार,
हर सीपी में
मोती,
मिलते थे.
jaandaar lekhan, koi aapse seekhe....:)
bahut bahut badhai.!!
विश्वास जहाँ भरता था
ReplyDeleteकुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
हर मौसम में
आती थी बहार,
हर सीपी में
मोती,
मिलते थे.
...bilkul sahi baat
... bahut sundar chitran
अनूठे बिम्बों का प्रयोग किया है.बहुत खूब.शुभकामनायें
ReplyDeleteजबकि
ReplyDeleteआसमान
नीला होता था,
पानी का रंग पन्ने जैसा ,
रूबी जैसा मन,
रहता था.
Wah sunder abhiwyakti, par man Rubi jaisa kyun yah to sheeshe jaisa hona chahiye. Bahut se naye shabd sikhaane ke liye abhar.
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
मृदुला जी,
ReplyDeleteवंस अपोन ए टाईम की बातें हैं. जितनी समझ आयी अच्छी लगी.
आशीष
--
अब मैं ट्विटर पे भी!
https://twitter.com/professorashish
mera urdu men dakhal nahihai, fir bhee samjha aur aanand aaya
ReplyDelete- vijay tiwari
वाह उर्दू का अनूठा प्रयोग और बहुत से नए लफ्ज़ सीखने को मिले...और इस नज़्म की तारीफ क्या करू...जो खुद हें कमर और खुर्शीद से सराबोर है.
ReplyDeleteउम्दा नज़्म.मुबारकबाद.
आदरणीया मृदुला प्रधान जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना है…
अ द् भु त !
शबनम के मोती
चुन-चुन कर
हम माला रोज़
बनाते थे
आह ! मर्मस्पर्शी !
ये बातें तब की हैं
जबकि
आसमान
नीला होता था,
पानी का रंग पन्ने जैसा ,
रूबी जैसा मन,
रहता था …
वाह वाऽऽह ! लालित्यपूर्ण भाषा का प्रयोग मन को छू रहा है ।
निवेदन एक ही है …
उर्दू बहुत प्यारी ज़ुबान है , जो मुझ जैसे अनाड़ी को भी आमंत्रित करती रहती है …
लेकिन , सायास किए गए क्लिष्ट उर्दू शब्दों के घालमेल से रचना की सहजता प्रभावित होती है …
आशा है , बुरा नहीं मानेंगी
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
wonderful :)
ReplyDeletehttp://liberalflorence.blogspot.com/
खूबसूरत नज़्म है ।
ReplyDeleteबहुत गहरे भाव और नये शब्द चयन ! सुंदर कविता के लिए शुभ कामनाएं !
ReplyDeleteये साल चल रहा है,
ReplyDeleteछुपकर
मेरी नज़र से ...
बहुत खूबसूरत नज़्म .....
Mridula Ji,
ReplyDeleteBahut sunder nazm hai
चलते-चलते फ़िसल गए.
रफ़ीके-राहे-मंज़िल(6) का
सुख गया,
यहाँ से,
हर औलांगार(7) फ़ीका,
अफ़सुर्दा,(8)
ताबे-रुख़(9) से,
दर्दे-निहाँ(10) उठाकर,
दिन-रात-दोपहर से,
ये साल चल रहा है,
छुपकर
मेरी नज़र से.
Badhaayi
Surinder Ratti
Mumbai
Sunder Prastuti
ReplyDeleteit is yet another beautiful expression of yours . . . straight from your heart . . .
ReplyDeletebahoot hi sunder nazm..........
ReplyDeletenazm bahut gahri hai ..sach kahun to likhne vale ke man tak nahi pohch paya sirf likhne vala hi jaanta hai ki vo ise likhte vaqt sagar ki kis gahraai m utra hoga...
ReplyDeletetruly straight from your heart...
ReplyDeleteyour words make outstanding poetry.