Sunday, August 29, 2010

विश्वास जहाँ भरता था.......

विश्वास जहाँ भरता था
कुलाँचे,
ख़्वाबों के खज़ाने
खुलते थे,
हर मौसम में
आती थी बहार,
हर सीपी में
मोती,
मिलते थे.
हंगामा-ए-आलम(1) में
शौके -बेपरवा(2)
रहते थे,
बरवख्त असूदा,(3)
क़मर(4) और
खुर्शीद(5) की बातें,
करते थे.
शबनम के मोती
चुन-चुन कर ,
हम माला रोज़
बनाते थे,
ऐसे की किसी रियासत में,
राजा और रानी
रहते थे.
ये बातें तब की हैं
जबकि
आसमान
नीला होता था,
पानी का रंग पन्ने जैसा ,
रूबी जैसा मन,
रहता था.
रेशम के धागे,
उलझ-उलझ कर,
टूट गए और
लम्हे सारे बिखर गए,
सपनों से हम
ऐसे जागे कि
चलते-चलते फ़िसल गए.
रफ़ीके-राहे-मंज़िल(6) का
सुख गया,
यहाँ से,
हर औलांगार(7) फ़ीका,
अफ़सुर्दा,(8)
ताबे-रुख़(9) से,
दर्दे-निहाँ(10) उठाकर,
दिन-रात-दोपहर से,
ये साल चल रहा है,
छुपकर
मेरी नज़र से.

1 दुनिया का हंगामा , 2 निश्चिन्त रहने का शौक ,3 संतुष्ट , 4 चाँद , 5 सूरज , 6 सहयात्री , 7 घुमने -फिरने की जगह ,8 उदास ,9 चेहरे की चमक ,10 आतंरिक पीड़ा

25 comments:

  1. विश्वास जहाँ भरता था
    कुलाँचे,
    ख़्वाबों के खज़ाने
    खुलते थे,
    हर मौसम में
    आती थी बहार,
    हर सीपी में
    मोती,
    मिलते थे.
    wo dinbhi kya din the! Iske alawa bhi jeevan ho sakte hain,ye khwabo khayalon me socha nahi tha!

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  2. वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा

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  3. कई नए शब्द सीखे।
    इस कविता में प्रत्यक्ष अनुभव की बात की गई है, इसलिए सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

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  4. जबकि
    आसमान
    नीला होता था,
    पानी का रंग पन्ने जैसा ,
    रूबी जैसा मन,
    रहता था.
    रेशम के धागे,
    उलझ-उलझ कर,
    टूट गए और
    लम्हे सारे बिखर गए,
    सपनों से हम
    ऐसे जागे कि
    चलते-चलते फ़िसल गए...बिम्ब इतनी ख़ूबसूरती से पिरोये है कि नज़्म पूरे फ्लो में है..कही रूकती नहीं अटकती नहीं नीली साफ नदी सी बहती जाती है...

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  5. अति सुंदर!चित्रण भी अऊर शब्द चयन भी!!

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  6. विश्वास जहाँ भरता था
    कुलाँचे,
    ख़्वाबों के खज़ाने
    खुलते थे,
    sunder prastuti.....

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  7. विश्वास जहाँ भरता था
    कुलाँचे,
    ख़्वाबों के खज़ाने
    खुलते थे,
    हर मौसम में
    आती थी बहार,
    हर सीपी में
    मोती,
    मिलते थे.

    jaandaar lekhan, koi aapse seekhe....:)
    bahut bahut badhai.!!

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  8. विश्वास जहाँ भरता था
    कुलाँचे,
    ख़्वाबों के खज़ाने
    खुलते थे,
    हर मौसम में
    आती थी बहार,
    हर सीपी में
    मोती,
    मिलते थे.
    ...bilkul sahi baat
    ... bahut sundar chitran

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  9. अनूठे बिम्बों का प्रयोग किया है.बहुत खूब.शुभकामनायें

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  10. जबकि
    आसमान
    नीला होता था,
    पानी का रंग पन्ने जैसा ,
    रूबी जैसा मन,
    रहता था.
    Wah sunder abhiwyakti, par man Rubi jaisa kyun yah to sheeshe jaisa hona chahiye. Bahut se naye shabd sikhaane ke liye abhar.

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  11. आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
    बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!

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  12. मृदुला जी,
    वंस अपोन ए टाईम की बातें हैं. जितनी समझ आयी अच्छी लगी.
    आशीष
    --
    अब मैं ट्विटर पे भी!
    https://twitter.com/professorashish

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  13. mera urdu men dakhal nahihai, fir bhee samjha aur aanand aaya
    - vijay tiwari

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  14. वाह उर्दू का अनूठा प्रयोग और बहुत से नए लफ्ज़ सीखने को मिले...और इस नज़्म की तारीफ क्या करू...जो खुद हें कमर और खुर्शीद से सराबोर है.

    उम्दा नज़्म.मुबारकबाद.

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  15. आदरणीया मृदुला प्रधान जी

    बहुत सुंदर रचना है…
    अ द् भु त !

    शबनम के मोती
    चुन-चुन कर
    हम माला रोज़
    बनाते थे

    आह ! मर्मस्पर्शी !

    ये बातें तब की हैं
    जबकि
    आसमान
    नीला होता था,
    पानी का रंग पन्ने जैसा ,
    रूबी जैसा मन,
    रहता था …

    वाह वाऽऽह ! लालित्यपूर्ण भाषा का प्रयोग मन को छू रहा है ।


    निवेदन एक ही है …
    उर्दू बहुत प्यारी ज़ुबान है , जो मुझ जैसे अनाड़ी को भी आमंत्रित करती रहती है …
    लेकिन , सायास किए गए क्लिष्ट उर्दू शब्दों के घालमेल से रचना की सहजता प्रभावित होती है …
    आशा है , बुरा नहीं मानेंगी

    शुभकामनाओं सहित …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  16. wonderful :)

    http://liberalflorence.blogspot.com/

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  17. खूबसूरत नज़्म है ।

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  18. बहुत गहरे भाव और नये शब्द चयन ! सुंदर कविता के लिए शुभ कामनाएं !

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  19. ये साल चल रहा है,
    छुपकर
    मेरी नज़र से ...

    बहुत खूबसूरत नज़्म .....

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  20. Mridula Ji,
    Bahut sunder nazm hai
    चलते-चलते फ़िसल गए.
    रफ़ीके-राहे-मंज़िल(6) का
    सुख गया,
    यहाँ से,
    हर औलांगार(7) फ़ीका,
    अफ़सुर्दा,(8)
    ताबे-रुख़(9) से,
    दर्दे-निहाँ(10) उठाकर,
    दिन-रात-दोपहर से,
    ये साल चल रहा है,
    छुपकर
    मेरी नज़र से.
    Badhaayi

    Surinder Ratti
    Mumbai

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  21. it is yet another beautiful expression of yours . . . straight from your heart . . .

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  22. nazm bahut gahri hai ..sach kahun to likhne vale ke man tak nahi pohch paya sirf likhne vala hi jaanta hai ki vo ise likhte vaqt sagar ki kis gahraai m utra hoga...

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  23. truly straight from your heart...
    your words make outstanding poetry.

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