तारे फ़लक से
हमसे,
कहते हैं सर उठाओ
बेले की खुशब
आकर,
कहती है गुनगुनाओ
फूलों की टोलियाँ मिल ,
आ पास बैठतीं हैं ,
शाखें ,लताएँ अक्सर
कुछ देर
ठहरतीं हैं .
बIदल गगन से
हमसे,
कहता भरो उड़ानें ,
तितली मुझे बताती
कि
कैसे पंख तानें ,
कुंजों से रोज़ होकर,
आती हवाएं मिलने ,
पत्तों पे अटकी बूँदें भी
साथ -साथ
चलने .
फिर ................
धूप-छांव आते -जाते
पूछा करतें हैं ,
हिमगिरि के संदेसे आ
हिम्मत
भरते हैं,
फूलों कि क्यारी से
हर पौधे ,
बातें करतें हैं ,
हरी दूब, शबनम,पराग
सब,
दोस्त बने रहतें हैं .
चिड़ियों का कलरव
समझाता,
झरनों का ख़त
आता है,
नदियों से कल-कल
सागर से
उठ तरंग ,
बहलाता है .
कलियाँ हंसती ,
मुस्काती ,
कुछ-कुछ कहती
रहती है ,
सूरज कि किरणें
मुझपर ,
अपनी नज़रें रखतीं हैं.
गोधूलि का आसमान
आ,
हाल-चाल लेता है
और रात में
चाँद वहाँ से,
निगरानी रखता है.
Tuesday, September 21, 2010
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वाह...वाह...वाह...शब्द और भाव का ऐसा विरल संगम देख कर दिल खुश हो गया...क्या लिखती हैं आप? लाजवाब...
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर आना सार्थक हुआ..
नीरज
बहुत खूबसूरत रचना ...वैसे भी तारे चाँद और फ़लक मुझे हमेशा प्रिय रहे हैं ..
ReplyDeleteमुझपर ,
ReplyDeleteअपनी नज़रें रखतीं हैं.
गोधूलि का आसमान
इस रचना में धरती और आकाश अक अनूठा संगम है।बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!
बहुत ही अच्छी रचना मृदुला जी.... प्रकृति जैसे आपमें समाई हो :)
ReplyDeletekhoobsurat rachna.
ReplyDeleteमृदुला जी .... हर कोई अपना काम कर रहा है .... इंसान को भी अपना काम करना चाहिए ....
ReplyDeleteबहुत अच्छे भाव हैं रचना में ...
सुंदर शब्दों का संगमा!....सुंदर रचना!
ReplyDeleteतारे फ़लक से
ReplyDeleteहमसे,
कहते हैं सर उठाओ
बेले की खुशब
आकर,
कहती है गुनगुनाओ ।
सुन्दर शब्द रचना ।
so nice :)
ReplyDeleteसुंदर काव्य का सृजन किया है आपने..बधाई।
ReplyDeleteटंकण त्रुटियां सुधार लें।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
कलियाँ हंसती ,
ReplyDeleteमुस्काती ,
कुछ-कुछ कहती
रहती है ,
सूरज की किरणें
मुझ पर ,
अपनी नज़रें रखतीं हैं...
वाह...बहुत सुन्दर.
sundar abhivyakti.shubhkamnayen.
ReplyDeleteई कविता है कि आपने आसमान के चादर पर तारे के तरह सब्द टाँक दिए हैं, या फुलवारी में सब्दों के फूल खिला दिए हैं... गजब का प्रभाव!!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और शानदार रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना है आपकी
ReplyDeleteब्लॉग पर आने का आभार
यूँ ही आशीष बनाये रखिये
धन्यवाद
beautiful words and touching thoughts put together . . . wonderfully written . . .
ReplyDeletevery nice..... sabdo ki prastuti bahoot hi sunder
ReplyDeleteबेले की खुशब
ReplyDeleteआकर,
कहती है गुनगुनाओ ।!!
अति सुंदर प्रकृति चित्रण ! मन रम गया बधाई
bahur sunder maa'm .............
ReplyDeleteMradula jee prukruti se ghire hai hum use ode hai hum fir bhee aaj ise bhagatee jindagee me ek pal fursat nahee nikal pata ise niharne ka......samay hee nahee sangharsh me doobe aam aadmee ke liye.........
ReplyDeleteprukruti to kadam kadam par prerana strot hai aadmee ke liye........
चिड़ियों का कलरव
ReplyDeleteसमझाता,
झरनों का ख़त
क्या सुन्दर बिम्ब और 'मानवीकरण' संजोया है
बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति के साथ.... बहुत ही सुंदर रचना....
ReplyDeleteसुन्दर अहसासों को जगाती रचना!बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बिम्बों का प्रयोग है ।
ReplyDeleteतारे फ़लक से
ReplyDeleteहमसे,
कहते हैं सर उठाओ
बेले की खुशब
आकर,
कहती है गुनगुनाओ ।
बहुत अच्छी लगी रचना.......बहुत ही सुंदर
बहुत ही भावपूर्ण रचना .... प्रस्तुति के लिए बधाई
ReplyDeleteचिड़ियों का कलरव
ReplyDeleteसमझाता,
झरनों का ख़त
बहुत ही सुंदर रचना....