तब मैं व्यस्त रहता था..........
यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ
और फिर वहाँ से वहाँ,
कुछ सुनता था,
कुछ नहीं सुनता था,
कुछ कहता था,
कुछ नहीं कहता था
पर तुम जो कहती थी,
कुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ।
मैं जगा-जगा सोता था,
मेरी पलकों पर
तुम, करवटें बदलती थी,
मैं जहाँ कहीं होता था,
तुम्हारी सांस,
मेरी
सांसों में, चलती थी ।
तुम आसमान में
सपनों के, बीज बोती थी,
अलकों पर
तारों की जमातें ढ़ूंढ़ती थी,
घूमता था मैं,
तुम्हारी कल्पनाओं के, कोलाहल में,
स्पर्श तुम्हारी हथेलियों का,
मेरे मन में कहीं,
रहता था ।
तुम शब्दों के जाल
बुन-बुनकर, बिछाती थी,
मैं जाने-अनजाने,
निकल जाता था,
तुम्हारे कोमल, मध्यम और
पंचम स्वरों का
उतार-चढ़ाव,
मैं कभी समझता था,
कभी नहीं समझता था,
तब मैं व्यस्त रहता था,
यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ
और फिर वहाँ से वहाँ,
कुछ सुनता था,
कुछ नहीं सुनता था,
कुछ कहता था,
कुछ नहीं कहता था,
पर तुम जो कहती थी,
कुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ।
Tuesday, October 12, 2010
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वाह ! क्या हसरत है……………ख्यालों को बहुत ही सुन्दरता से बाँधा है।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना ! कितने मासूम से ख्यालात, कितना मासूम सा अनुरोध ....
ReplyDeleteKitni prari,maasoom rachana hai!
ReplyDeleteमृदुला जी, बहुत दिन के बाद इतना कोमल भावों से भरा हुआ कविता पढने को मिला है.. इतना सुंदर कि अभी तक मुग्ध हैं हम! धन्यवाद आपको!!
ReplyDeleteati sunder .
ReplyDeleteलाज़वाब...क्या कल्पना लेकिन सच्चाई के कितने करीब....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई...
ReplyDeleteख्यालों और अहसासों की सुंदर बानगी वाली रचना ....
ReplyDeleteसुन्दर कोमल भाव लिये रचना पढ कर आनन्द आ गया। बधाइ आपको।
ReplyDeletebahut achha laga padke
ReplyDeletebahut achha likha hai aapne
blog mai aane ka aabhar
kripya yuhi apna aashish banaye rakhiye
मैं जगा-जगा सोता था,
ReplyDeleteमेरी पलकों पर
तुम, करवटें बदलती थी,
मैं जहाँ कहीं होता था,
बहुत प्यारे एहसासों से भरी खूबसूरत नज़्म ...
वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर
ReplyDeleteमैंने उनको आखरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं
ओह वो व्यस्तता .....क्या कहने जी क्या कहने । सुंदर और प्रभावशाली रचना ...अभिव्यक्ति का अनोखा अंदाज़ है आपका
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
सुन्दर अभिव्यक्ति,
ReplyDeleteजारी रखिये ...
तुम जो कहती थी कुछ प्यार-व्यार जैसा, वो फिर से कहो ना...। क्या बात है, आपने तो सबकी सोयी ख्वाहिश जगा दी। .. और क्या लिखा है- मेरी पलकों पर तुम, करवटें बदलती थी.. अप्रतिम। आपकी लेखनी दिमाग से नहीं, सीधे दिल से निकली है और शायद इसलिए ही सीधे हम जैसे पाठक के दिल में उतर गयी है। इस दिल में इसी बहाने हमारे उस अपने का अहसास दिलाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteपर तुम जो कहती थी,
ReplyDeleteकुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ...
मासूम भावनाओं का मिश्रण है इस रचना में ... वाह ... मज़ा आ गया ...
ऐसी रचनाओं पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जा सकती है .. सिर्फ स्वाद लिया जा सकता है .. मिस्री की डली सा
ReplyDeleteचाहतें हमेशा ज़िन्दा रहती हैं.
ReplyDeleteवाह मृदुला जी क्या बात है आज तो प्यार कितनी कोमलता से किस सलीके से बयां हुआ है । आनंद आ गया दिल को गुदगुदा ती रचना ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebohot bohot acchi lagi aapki ye nazm. aur baaqi bhi. so nice to read u...main bhi aksar Mr. Saanjh ban jaati hoon likhne mein, nice to know that i have company ;)
ReplyDeletethanks for visiting my blog, ke us'se mujhe yahan aane ka raasta mila :)
पर तुम जो कहती थी,
ReplyDeleteकुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ।
बेहद खूबसूरत भाव ...बधाई.
__________________
'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.
कुछ नहीं, बस शुभकामनाएं देने आया हूं।
ReplyDeleteसर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
ढेर सारे कोमल भावों की
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर मनमोहक अभिव्यक्ति
दिलचस्प रचना .
one of your best!
ReplyDeleteदशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
ReplyDeleteइस मखमली रचना को प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत बधाई!
ReplyDelete--
विजयादशमी की शुभकामनाएँ!
मैं जगा-जगा सोता था,
ReplyDeleteमेरी पलकों पर
तुम, करवटें बदलती थी,
मैं जहाँ कहीं होता था,
बहुत कोमलता से इन मखमली अहसासों का वर्णन किया है .. दशहरा की शुभकामनायें.
bahut khoob!!!!
ReplyDeletemere blog pr aane ka shukriya
बहुत ही सुन्दर ...मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया ...जून २०१० से शुरू किया है ..स्नेह बनाए रखे
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना...
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