Tuesday, October 12, 2010

तब मैं व्यस्त रहता था..........

तब मैं व्यस्त रहता था..........
यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ
और फिर वहाँ से वहाँ,
कुछ सुनता था,
कुछ नहीं सुनता था,
कुछ कहता था,
कुछ नहीं कहता था
पर तुम जो कहती थी,
कुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ।
मैं जगा-जगा सोता था,
मेरी पलकों पर
तुम, करवटें बदलती थी,
मैं जहाँ कहीं होता था,
तुम्हारी सांस,
मेरी
सांसों में, चलती थी ।
तुम आसमान में
सपनों के, बीज बोती थी,
अलकों पर
तारों की जमातें ढ़ूंढ़ती थी,
घूमता था मैं,
तुम्हारी कल्पनाओं के, कोलाहल में,
स्पर्श तुम्हारी हथेलियों का,
मेरे मन में कहीं,
रहता था ।
तुम शब्दों के जाल
बुन-बुनकर, बिछाती थी,
मैं जाने-अनजाने,
निकल जाता था,
तुम्हारे कोमल, मध्यम और
पंचम स्वरों का
उतार-चढ़ाव,
मैं कभी समझता था,
कभी नहीं समझता था,
तब मैं व्यस्त रहता था,
यहाँ से वहाँ, वहाँ से वहाँ
और फिर वहाँ से वहाँ,
कुछ सुनता था,
कुछ नहीं सुनता था,
कुछ कहता था,
कुछ नहीं कहता था,
पर तुम जो कहती थी,
कुछ प्यार-व्यार जैसा,
वो फिर से कहो न ।

31 comments:

  1. वाह ! क्या हसरत है……………ख्यालों को बहुत ही सुन्दरता से बाँधा है।

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  2. बेहतरीन रचना ! कितने मासूम से ख्यालात, कितना मासूम सा अनुरोध ....

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  3. Kitni prari,maasoom rachana hai!

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  4. मृदुला जी, बहुत दिन के बाद इतना कोमल भावों से भरा हुआ कविता पढने को मिला है.. इतना सुंदर कि अभी तक मुग्ध हैं हम! धन्यवाद आपको!!

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  5. लाज़वाब...क्या कल्पना लेकिन सच्चाई के कितने करीब....बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई...

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  6. ख्यालों और अहसासों की सुंदर बानगी वाली रचना ....

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  7. सुन्दर कोमल भाव लिये रचना पढ कर आनन्द आ गया। बधाइ आपको।

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  8. bahut achha laga padke
    bahut achha likha hai aapne
    blog mai aane ka aabhar
    kripya yuhi apna aashish banaye rakhiye

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  9. मैं जगा-जगा सोता था,
    मेरी पलकों पर
    तुम, करवटें बदलती थी,
    मैं जहाँ कहीं होता था,

    बहुत प्यारे एहसासों से भरी खूबसूरत नज़्म ...

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  10. वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर
    मैंने उनको आखरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं

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  11. ओह वो व्यस्तता .....क्या कहने जी क्या कहने । सुंदर और प्रभावशाली रचना ...अभिव्यक्ति का अनोखा अंदाज़ है आपका

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  12. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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  13. सुन्दर अभिव्यक्ति,

    जारी रखिये ...

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  14. तुम जो कहती थी कुछ प्‍यार-व्यार जैसा, वो फिर से कहो ना...। क्‍या बात है, आपने तो सबकी सोयी ख्‍वाहिश जगा दी। .. और क्‍या लिखा है- मेरी पलकों पर तुम, करवटें ब‍दलती थी.. अप्रतिम। आपकी लेखनी दिमाग से नहीं, सीधे दिल से निकली है और शायद इसलिए ही सीधे हम जैसे पाठक के दिल में उतर गयी है। इस दिल में इसी बहाने हमारे उस अपने का अहसास दिलाने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

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  15. पर तुम जो कहती थी,
    कुछ प्यार-व्यार जैसा,
    वो फिर से कहो न ...

    मासूम भावनाओं का मिश्रण है इस रचना में ... वाह ... मज़ा आ गया ...

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  16. ऐसी रचनाओं पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की जा सकती है .. सिर्फ स्वाद लिया जा सकता है .. मिस्री की डली सा

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  17. चाहतें हमेशा ज़िन्दा रहती हैं.

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  18. वाह मृदुला जी क्या बात है आज तो प्यार कितनी कोमलता से किस सलीके से बयां हुआ है । आनंद आ गया दिल को गुदगुदा ती रचना ।

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  19. This comment has been removed by the author.

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  20. bohot bohot acchi lagi aapki ye nazm. aur baaqi bhi. so nice to read u...main bhi aksar Mr. Saanjh ban jaati hoon likhne mein, nice to know that i have company ;)

    thanks for visiting my blog, ke us'se mujhe yahan aane ka raasta mila :)

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  21. पर तुम जो कहती थी,
    कुछ प्यार-व्यार जैसा,
    वो फिर से कहो न ।
    बेहद खूबसूरत भाव ...बधाई.
    __________________
    'शब्द-सृजन की ओर' पर आज निराला जी की पुण्यतिथि पर स्मरण.

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  22. कुछ नहीं, बस शुभकामनाएं देने आया हूं।
    सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोsस्तु ते॥
    महाअष्टमी के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

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  23. ढेर सारे कोमल भावों की
    बहुत ही सुन्दर मनमोहक अभिव्यक्ति
    दिलचस्प रचना .

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  24. दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!

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  25. इस मखमली रचना को प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत बधाई!
    --
    विजयादशमी की शुभकामनाएँ!

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  26. मैं जगा-जगा सोता था,
    मेरी पलकों पर
    तुम, करवटें बदलती थी,
    मैं जहाँ कहीं होता था,

    बहुत कोमलता से इन मखमली अहसासों का वर्णन किया है .. दशहरा की शुभकामनायें.

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  27. bahut khoob!!!!
    mere blog pr aane ka shukriya

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  28. बहुत ही सुन्दर ...मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया ...जून २०१० से शुरू किया है ..स्नेह बनाए रखे

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  29. बहुत खूबसूरत रचना...

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