मणि माला धारण किये,
कर कमलों में
वीणा लिए,
हंस के सिंघासन पर
विराजती,
माँ सरस्वती.........
दे देना
वरदान,
एक ऐसी
विलक्षण शक्ति का
जो
भरती रहे स्फूर्ति,
सहज ही
मेरे तन मन में.
कर देना सराबोर,
एक ऐसी
भक्ति से,
जो
जागृत रखे,
मेरे चेतना को,
असीम
संतुष्टि से.
जगाये रखना
मेरे मन में,
निर्भय विश्वास का
मन-वांछित
उल्लास,
आप्लावित
करते रहना
मेरे विवेक को,
अपनी
सुदृढ़ क्षमताओं के
वरद
हस्त से,
तुम्हारे
आलौकिक प्रकाश के
माध्यम से,
सुगम होती रहें
मेरी
जटिलतायें,
तुम्हारी
सौहाद्रता का अंकुश,
तेज धार बनकर
तराशती रहें
मेरी
अनुभूतियों को,
अचिन्त्य रहे
मेरी भावनाओं में,
तुम्हारा
कोमल स्पर्श,
आभारित रहे
मेरे अंतर्मन का
पर्त-दर-पर्त,
तुम्हारी
अनुकम्पाओं से
और
सुना सकूँ तुम्हें
जीवन भर,
कविताओं में भरकर,
तुम्हारे दिए हुए
शब्दों के पराग,
तुमसे मिली
आस्थाओं की
पंखुडियां
और
तुम्हारे स्वरों से
मुखरित,
अनगिनत
गुलाब.
Tuesday, October 19, 2010
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मानव सभी की जात होगी मानवता ही धरम होगा
ReplyDeleteतभी मिलेगी ख़ुशी जब मन को
जब सारी दुनिया समान होगी .........
Pooree rachana ek pavitr prarthana hai!
बहुत ही सुन्दर सरस्वती अराधना...आभार
ReplyDeleteमाँ सरस्वती कि अनुकम्पा हम सभी पर बनी रहे,
ReplyDeleteयही कामना करते हुए एक सुंदर रचना हेतु
आभार........
badee hee pyaree stuti........
ReplyDeleteaabhar
माँ शारदे की भावपूर्ण...सुंदर स्तुति
ReplyDeleteमाँ सरस्वती मुझ पर भी यही कृपा कर दे.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
नमन!! उस माँ को जिसका प्रसाद हमें प्राप्त होता रहे यही कामना है!!
ReplyDeleteया कुंदेंदुतुसार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता
ReplyDeleteया वीणा वरदंड मंडित करा, या श्वेत पदमासना
या ब्रह़माच्युतशंकरप्रभूतिभीर दैवे: सदा वंदिता
श्याममपातुसरस्वतीभगवती निहसेसजाड़याहपा...
मां शारदे को हमारा प्रणाम! यह हम पर, आप पर और समस्त सृष्टि पर मां की ही कृपा है जो हम सब एक-दूसरे को कुछ बता पाने की भी सामर्थ्य रखते हैं। सबसे पहले इस बात के लिए आपको बहुत-बहुत आभार प्रकट करते हैं कि आपने सबसे अलग हटकर मां के बारे में भी सोचा। मां तो हम सबके बारे में हर पल सोचती हैं, जिसका प्रमाण है कि हम बोल पा रहे हैं, लिख रहे हैं और अपनी भावनाएं एक-दूसरे से अभिव्यक्त कर रहे हैं। लेकिन, अपनी भावनाओं में मां को उसके सभी पुत्र नहीं ला पाते। हमसे भी इस बारे में कोई भूल हुई हो तो मां शारदे से इसके लिए क्षमा मांगते हैं। आपकी यह रचना इस मामले में सर्वोत्कृष्ण करार दे रहे हैं कि यह एक जगत-मां के बारे में है। जो रचना ही मां पर लिखी गयी हो, उसके बारे में क्या टिप्पणी कर सकते हैं। बस मां को भी प्रणाम और आपकी इस रचना को भी। अद़भुत-अविस्मरणीय।
adwitiya.......bahut pyare shabdo ke saath aapne maa sharde ki prarthna ki hai......:)
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteबधाई.
माँ सरस्वती के चरणों में अर्पित शब्द पुष्प ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना ...
बहुत सुंदर सरस्वति वंदना!...मां सरस्वति का वर्द हस्त सभी पर बना रहे यही प्रार्थना!....धन्यवाद!
ReplyDeleteअप्रतिम रचना...आप निसंदेह बहुत ही अच्छा लिखती हैं...वाह.
ReplyDeleteनीरज
माँ शार्दे की वन्दना पढ कर मन प्रसन्न हो गया। शुभकामनायें।
ReplyDeleteतुम्हारे दिए हुए
ReplyDeleteशब्दों के पराग,
तुमसे मिली
आस्थाओं की
पंखुडियां
और
तुम्हारे स्वरों से
मुखरित,
अनगिनत
गुलाब.
सुन्दर रचना ..बधाई
bahut sundar likhti hai aap... baavo se bhari 'sarasvati vandna'..aur 'Nahi chahti' dono hi behad achci hai.
ReplyDelete'आप्लावित
करते रहना
मेरे विवेक को, '
kuch aisi hi prarthna mai bhi karti hu.
aur mere blog par aane ke lite va protsahan k liye bahut bahut shukriya. isi prkar protsaahit karti rahe.
neem ka ped ...
ReplyDeleterasprabha@gmail.com per yah rachna bhejiye ... parichay aur tasweer ke saath vatvriksh ke liye