नीम का एक पेड़,
बाहर के ओसारे से
लगे तो
गर्मियों के दिन में
उसकी, छाँव में
बैठा करेगें,
कड़ी होगी धूप,
जाड़ों में जो सर पर,
नीम की डालों से हम,
पर्दा करेगें.
पतझड़ों में सूखकर
पीले हुए पत्ते,
ओसारे-'लान' पर जब
आ बिछेगें,
सरसराहट सी उठेगी,
हवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
हर वक्त कलरव
कोटरों से
पक्षियों का,
किसलयों के रंग पर
कविता करेगें,
नीम का एक पेड़,
बाहर के ओसारे से
लगे तो
हम सुबह से शाम तक,
मौसम की,
रखवाली करेगें ।
बाहर के ओसारे से
लगे तो
गर्मियों के दिन में
उसकी, छाँव में
बैठा करेगें,
कड़ी होगी धूप,
जाड़ों में जो सर पर,
नीम की डालों से हम,
पर्दा करेगें.
पतझड़ों में सूखकर
पीले हुए पत्ते,
ओसारे-'लान' पर जब
आ बिछेगें,
सरसराहट सी उठेगी,
हवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
हर वक्त कलरव
कोटरों से
पक्षियों का,
किसलयों के रंग पर
कविता करेगें,
नीम का एक पेड़,
बाहर के ओसारे से
लगे तो
हम सुबह से शाम तक,
मौसम की,
रखवाली करेगें ।
नीम का एक पेड़,
ReplyDeleteबाहर के ओसारे से
लगे तो
हम सुबह से शाम तक,
मौसम की,
रखवाली करेगें ।
गुणकारी नीम का पेड़ और ...
कोमल ..मरमरी एहसास .....!!
कितना सुंदर मिश्रण है ..!!
http://anupamassukrity.blogspot.com/
प्रकृति को समर्पित मौसम के प्रति आपकी अभिव्यक्ति उन खोये पलों की याद दिलाती हैं जिन्हें शायद हमारे बच्चे कभी देख नहीं पाए!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
नीम का पेड़ ... कितनी मधुर कल्पना ... आज ओसारे ही कहाँ रह गए हैं ... हम जैसे लोंग तो फ्लैटनुमा अधर में लटके हुए हैं ..
ReplyDeleteअति सुंदर प्रस्तुति, धन्यवाद
ReplyDeleteअति सुन्दर.......रचना
ReplyDeleteप्रवाहित रहे यह सतत भाव-धारा।
जिसे आपने इंटरनेट पर उतारा॥
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’व्यंग्य’ उस पर्दे को हटाता है जिसके पीछे भ्रष्टाचार आराम फरमा रहा होता है।
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
कोटरों से
ReplyDeleteपक्षियों का,
किसलयों के रंग पर
कविता करेगें,
नीम का एक पेड़,
बाहर के ओसारे से
लगे तो
हम सुबह से शाम तक,
मौसम की,
रखवाली करेगें
neem ke ped uttam kalpna bhav bahut hi sunder hai kavita uttam hai
rachana
neem ak ped , bahut sunder hai
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहवा सरकायेगी जब-तब,
ReplyDeleteमर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
हर वक्त कलरव
कोटरों से
पक्षियों का,
किसलयों के रंग पर
कविता करेगें,
एक विशुद्ध प्राकृतिक रचना संसार बधाई
सरसराहट सी उठेगी,
ReplyDeleteहवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
prakriti ke kan kan se aahladit rachna
इस रचना की संवेदना और शिल्पगत सौंदर्य मन को भाव विह्वल कर गए हैं।
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता, जीता जगता नीम का एक पेड़ मन के आंगन में उगा दिया और मौसम...पंछी...धूप..सबका आनंद आ गया ! पर्यावरण दिवस पर आपको बधाई!
ReplyDeleteसरसराहट सी उठेगी,
ReplyDeleteहवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
बहुत ही अच्छी रचना ।
bahoot khoob
ReplyDeleteghar ke aangn men niv lga hai ,isilie iske fayde janta hoon
sunder rachna ke lie bdhaai
बहुत बढिया, क्या बात है
ReplyDeleteएक नीम का पेड़...कितनी आशाएं...
ReplyDeleteकंक्रीट के जंगलों में एक नीम का पेड़ ...कितना सुखद एहसास ।
ReplyDeleteसरसराहट सी उठेगी,
ReplyDeleteहवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज
आयेगी,
जो पत्तों पर चलेगें,
खूबसूरत अहसास,दिल को छू लेने वाली रचना , बधाई
नीम का एक पेड़,
ReplyDeleteबाहर के ओसारे से
लगे तो
हम सुबह से शाम तक,
मौसम की,
रखवाली करेगें ।
Bahut pyara-sa khayal hai!
lovely Creation
ReplyDelete.
ReplyDeleteबचपन में जहाँ घर था , पीछे एक 'हाता' था , जिसमें बहुत से नीम के पेड़ थे । आपने याद दिला दी । बिलकुल वैसा ही महसूस हुआ जैसा आपने लिखा है।
Nostalgia is overpowering me.
.
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!
ReplyDeleteप्रकृति को समर्पित मौसम..बहुत ख़ूबसूरत..एक नीम का पेड़...कितनी आशाएं...
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता.........
ReplyDeleteकई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
सही बात कही है आपने.पर अफ़सोस बेहतर शहरीकरण (?) की हमारी चाह का शिकार ये जीवन के वाहक वृक्ष हो रहे हैं.कभी नीम के पेड़ की विशेषताओं को बच्चा बच्चा जनता था आज किताबों में झांकना पड़ता है.
ReplyDeleteएक बेहद अच्छी रचना.
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आपका स्वागत है "नयी पुरानी हलचल" पर...यहाँ आपके ब्लॉग की किसी पोस्ट की कल होगी हलचल...
नयी-पुरानी हलचल
धन्यवाद सहित सादर
Neem men mithas gholati rachana....
ReplyDeleteसुंदर चित्रमय रचना,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
नीम के पेंड तो अब गाँव की कल्पना में रह गए हैं. यहाँ शहर में नीम का पेंड क्या , किसी का भी पेंड गाहे बहागे ही दिखता हैं.
ReplyDeleteआपने गाँव की याद दिला दी
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क्या मानवता भी क्षेत्रवादी होती है ?
बाबा का अनशन टुटा !
बहुत पहले जब सैकडों चैनल न थे तब एक सीरियल आया करता था नीम का पेड
ReplyDeleteनीम के पत्तों पर कविता करेंगे बशर्ते कि पेड लग जाये। जब पेड लग जायेगा तब गर्मियों में क्या होगा ठंड में क्या होगा सुन्दर कल्पना । बेचारे बच्चों ने न ओसारा देखा न पेड