Monday, June 27, 2011

हवा का एक तेज़ झोंका........

हवा का एक तेज़ झोंका
मेरी उनींदी
आँखों को खोल गया
जब खोली मैंने,
अपने कमरे की         
कबसे बंद खिड़की........
जब खोली मैंने,
अपने कमरे की
कबसे बंद खिड़की,
बारिश की तेज़ फ़ुहार  
सहला  गयी  
मेरे  
अंतर्मन  को.
ख्यालों  के  चक्रव्यूह  में  
घिरा  
मेरा मन,
अँधेरे  की हल्की सी
पदचाप  भर  
सुना  ...... 
कि
अचानक  
सूरज  की तेज़ किरणें    
ठहर  गयीं,
मेरे  ऊपर  
और
धूप की  चमकती  
नर्म  गर्माहट,
मैंने अपनी  मुट्ठी  में  
बांध  ली..........
कि
अब ,अँधेरा  
कभी   नहीं  होगा  .........                                                                                                                                                                                                  

22 comments:

  1. baarish kee fuhaaren man ko sahla gai... phir ye pal yaaden ban jati hain

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  2. धूप की चमकती
    नर्म गर्माहट,
    मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा .........

    atma vishwas jagate ...bahut sunder ehsaas .....

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  3. Yahi aastha, vishvas hi ujala failaata hai.sundar rachanaYahi aastha, vishvas hi ujala failaata hai.sundar rachana

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  4. और
    धूप की चमकती
    नर्म गर्माहट,
    मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा .........
    बहुत सुंदर भावाव्यक्ति, बधाई .........

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  5. अद्भुत बिम्ब बांधे हैं आपने...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  6. दिलों को छुते हुए शब्दों का प्रयोग, खूबसूरत अहसास भरी कविता बधाई

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  7. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  8. मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा .........

    बहुत बेहतरीन है आपकी कविता.
    -----------------------
    कल 29/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है-
    आपके विचारों का स्वागत है .
    धन्यवाद
    नयी-पुरानी हलचल

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  9. धूप की चमकती
    नर्म गर्माहट,
    मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा .........

    बहुत सुन्दर ...

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  10. बहुत सुंदर भाव आपने सुंदर शब्दों में पिरोये हैं..सच...अब, अँधेरा कभी नहीं होगा !

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  11. अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा ....

    वाह, आशा की किरण जगाती सुन्दर कविता.

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  12. अन्धेरे की क़ैद से आज़ाद होने का सन्देश.. सूरज को मुट्ठी में भर लेने का सन्देश देती बहुत ही सुन्दर कविता..
    (पृष्ठ सन्योजन में को सम्पादित करने की आवश्यकता है)

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  13. कुछ उम्मीदें, कुछ आशाएं मुट्ठियों में क़ैद कर हम जीते हैं, जीने की कोशिशें करते हैं। यही हमे जिलाए रखती हैं।

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  14. अपने मन की खिड़की भी खोल के रखनी चाहिए...तभी प्रकाश अन्दर जा पायेगा...मुट्ठी भर धूप पास हो तो अँधेरा कभी घर नहीं कर सकता...विश्वास जगाती प्रेरक रचना...

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  15. सुंदर भावाव्यक्ति

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  16. सूरज की तेज़ किरणें |
    बारिश की तेज़ फ़ुहार |

    अपने कमरे की
    कबसे बंद खिड़की ||

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  17. जीने के लिये यही जज़्बात चाहिये। सुन्दर रचना। बधाई।

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  18. बहुत सुंदर तरीके ने आप ने भावो को पिरोया. अति सुंदर

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  19. अंतिम पंक्तियों का आत्म विश्वास ही तो जीवन का संबल है .

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  20. धूप की चमकती
    नर्म गर्माहट,
    मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा .........
    बहुत ही सुंदर !

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  21. धूप की चमकती
    नर्म गर्माहट,
    मैंने अपनी मुट्ठी में
    बांध ली..........
    कि
    अब ,अँधेरा
    कभी नहीं होगा ......


    सुंदर भावाव्यक्ति

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