जब रातों की परछाईं पर,
पूनम का चाँद
चमकता है,
उजली किरणों के साये में,
तारों का रूप
दमकता है,
उन नीलम जैसी रातों में,
जब सलिल,सुधा
बरसाती है,
शबनम के मोती झरते हैं
और
चाँद गगन पर
चलता है........
है पंखों का वरदान नहीं
फिर भी मन,
उड़-उड़ जाता है,
कभी तोड़ता है तारे
तो कभी चाँद,
छू लेता है.
जब सुबहों की अरुणाई पर,
सूरज की आँखें
खुलतीं हैं,
जब मणि-माणिक की
चादर पर,
किरणें धीरे से
चलतीं हैं,
उन सुबहों में
अलि गुंजन पर,
मधु का विनिमय
हो जाता है,
मन पंख बिना
तितली बनकर,
बागों में उड़-उड़ जाता है.
जब दिवा-स्वप्न की
लहरों पर,
मन शिथिल कभी
सो जाता है,
बेवख्त कभी उठता है तो
बेबात
कभी मुस्काता है,
उन हल्की सी मुस्कानों पर,
आँखों के दीये
जलते हैं,
उन लहरों की हलचल पर
अपने ,
सपने उड़कर
चलते हैं,
कभी बादल पर
मंडराता है,
कभी आसमान में
गाता है
या नव विहान का
हाथ पकड़
मन पंख बिना,
जा सात समंदर पार
तुम्हें,
मिल आता है.
MRIDULA JI
ReplyDeletesargarbhit aur sach ke bahut nikat rachana ,sundar bhavon ke sath geyta bhee.
aabhar sundar prastuti ke liye
सूरज की आँखें
ReplyDeleteखुलतीं हैं,
जब मणि-माणिक की
चादर पर,
किरणें धीरे से
चलतीं हैं,
उन सुबहों में
अलि गुंजन पर,
मनोभावों को सुन्दरता से व्यक्त करती बेहतरीन कविता. मृदुला जी आपकी इस कविता का भी कोई सानी नहीं ,भावविभोर हो गया मैं , बधाई
मन का कहना मत टालो,
ReplyDeleteमन को पिंजरे में ना डालो,
मन तो है इक उड़ता पंछी जितना उड़े उड़ा लो...
'है पंखों का वरदान नहीं
ReplyDeleteफिर भी मन
उड़ उड़ जाता है'
...................उन्मुक्त गगन में मस्त विहरती कविता
Man ke sang ye tan bhi rang jata hai.bahut sundarMan ke sang ye tan bhi rang jata hai.bahut sundar
ReplyDeleteमन के भावों को खूबसूरत शब्दों में बंधा है सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteउन लहरों की हलचल पर
ReplyDeleteअपने ,
सपने उड़कर
चलते हैं,
कभी बादल पर
मंडराता है,
कभी आसमान में
गाता है
या नव विहान का
हाथ पकड़
मन पंख बिना,
जा सात समंदर पार
तुम्हें,
मिल आता है.
Kya rachana hai! Nazakat bhee hai aur chanchaltaa bhee bharpoor!
मन की उड़न का सुंदर वर्णन ...!!
ReplyDeleteमीठी ,मधुर ,कोमल भावाभिव्यक्ति ...!!
बहुत सुंदर ....
खूबसूरत शब्दों में सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeletebahut sundar ||
ReplyDeleteसुंदर भावों से सजी रचना !
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ ज़बरदस्त रचना! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब लगा! बधाई!
ReplyDeletesreshth rachna
ReplyDeletelaajabaab rachna.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाव्यक्ति मन को पंख लगा कर उड़ने दीजिये
ReplyDeleteमन की यह उड़ान मुक्त गगन में यूं ही विचरण करता है। ताकि वह लक्ष्य पर बार-बार पहुंचे।
ReplyDeleteमन पंख बिना,
जा सात समंदर पार
तुम्हें,
मिल आता है.
एक विरही मन के मिलन की कल्पना का सुख आपने ऐसे प्रस्तुत किया है मानो एक विशाल सा कैनवास हमारे सामने है और हम कोइ खूबसूरत पेंटिंग निहार रहे हैं.. अपलक!!
ReplyDeleteमन को कोई अटकाव नही न ही कोई पंख चाहिये ये तो कहां कहां क्षण में पहुंच जाता है बहुत सुंदर शब्दों में लिखी भावभीनी कविता ।
ReplyDeletebahut khub..
ReplyDeleteबैरागी से मन की भावों को सुंदरता से पेश किया है ...
ReplyDeleteमन के सुन्दर भावों को सुन्दरता से व्यक्त करती बेहतरीन कविता मृदुला जी........ लाजवाब रचना
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 05 - 07 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच-- 53 ..चर्चा मंच 566
"उन सुबहों में
ReplyDeleteअलि गुंजन पर,
मधु का विनिमय
हो जाता है,
मन पंख बिना
तितली बनकर,
बागों में उड़-उड़ जाता है.
जब दिवा-स्वप्न की
लहरों पर,
मन शिथिल कभी
सो जाता है,
बेवख्त कभी उठता है तो
बेबात
कभी मुस्काता है,"
रचना ने नि:शब्द कर दिया...!!
***punam***
bahut sunder udan liye khoobsurat rachanaa.aapne
ReplyDeleteshabdvihin kar diyaa.bahut badhaai aapko.
मन ऐसा ही तो बावरा है………बहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई
ReplyDeleteमन के विभिन्न रूपों को चित्रित करती मोहक कविता !
ReplyDeleteमन के भावों की सुंदरता प्रवाहमय है!
ReplyDeleteसुंदर!
उफ़..एक सांस में पढ़ गई. क्या प्रवाह है और क्या भाव .
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत अच्छी लगी आपकी यह कविता.
वाह....
ReplyDeleteबहा ले जाती है आपकी रचना.... इसकी लयबद्धता....
मोहक गीत...
सादर....
वाह!! बहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteअति सुंदर रचना.मानस पटल पर प्रभाव छोड़ने वाली अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआनन्द विश्वास
फिर भी मन,
ReplyDeleteउड़-उड़ जाता है,
कभी तोड़ता है तारे
तो कभी चाँद,
छू लेता है.
ममस्पर्शी रचना अच्छी लगी, साधुवाद जी /
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआभार..
ham bhi kho gaye aapke in sapno ke sath sunder shabdo ki mala se maniko me.
ReplyDeleteकविता, जो आदमी के ह्रदय और मस्तिष्क दोनों को भिगो सके. आपकी कविता ने इन दौनों कामों को बड़ी सहजता के साथ किया है.
ReplyDeleteएक अच्छी रचना है.
आनन्द विश्वास
अहमदाबाद.
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द
ReplyDeleteकभी आसमान में
ReplyDeleteगाता है
या नव विहान का
हाथ पकड़
मन पंख बिना,
जा सात समंदर पार
तुम्हें,
मिल आता है.
bahut hi sunder abhivyakti
rachana
मन भावन प्रकृति चित्रण.प्रवाह दर्शनीय. भाव मृदुल.
ReplyDeletemridula ji
ReplyDeletekya likhun ,mere paas to likhne ko shabd bache hi nahi .main to waqai me nihshabd ho gai hun aapki ye anmol rachna ko padh kar .shabdo ka chayan v bhavnaao ka vishhleshhan bhut hi alag tareeke aur bahut hi badhiya kiya hai aapne .
bahut bahut
hardik badhai
poonam
मन शिथिल कभी
ReplyDeleteसो जाता है,
बेवख्त कभी उठता है तो
बेबात
कभी मुस्काता है,
उन हल्की सी मुस्कानों पर,
आँखों के दीये
जलते हैं,
सुन्दर भावमय ||
आभार आपका ||
very nice ......
ReplyDeleteसुन्दर मृदुल प्रस्तुति.
ReplyDeleteमन की अदभुत उडान का सुन्दर दृश्य दर्शाती हुई.
मन को हर्षाती हुई.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए बहुत बहुत आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
बेहद खुबसूरत रचना.आभार
ReplyDeleteमृदुला जी बहुत खूबसूरत रचना आप के मन को तो पंख ही लग गए थे हम लोगों को भी उड़ा दिया साथ साथ सात समुन्दर पार -
ReplyDeleteबधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
जब दिवा-स्वप्न की
लहरों पर,
मन शिथिल कभी
सो जाता है,
बेवख्त कभी उठता है तो
बेबात
कभी मुस्काता है,
bahut sundar...Mann panchhi ban sat samndr paar tume mil aata hai...waah
ReplyDeleteमहोदय/ महोदया जी,
ReplyDeleteअब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा! मेरे इस पते पर अपनी रचना भेजें sonuagra0009@gmail.com या आप मेरे ब्लॉग “स्मस हिन्दी” मे टिप्पणि के रूप में भी अपनी रचना भेज सकते हो.
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http://smshindi-smshindi.blogspot.com/2011/07/12.html
आज पहली बार आपके ब्लॉग में आना हुआ पर आकार दिल खुश हो गया दोस्त |
ReplyDeleteजब दिवा-स्वप्न की
लहरों पर,
मन शिथिल कभी
सो जाता है,
बेवख्त कभी उठता है तो
बेबात
कभी मुस्काता है,
उन हल्की सी मुस्कानों पर,
आँखों के दीये
जलते हैं,
बहुत ही खूबसूरत रचना एक - एक शब्द बोलते हुए |
बहुत सुन्दर रचना, गुनगुना रहा हूँ!
ReplyDeletebahut sunder rachna .......
ReplyDeleteसूरज की आँखें
ReplyDeleteखुलतीं हैं,
जब मणि-माणिक की
चादर पर,
किरणें धीरे से
चलतीं हैं,
उन सुबहों में
अलि गुंजन पर,
मनोभावों को सुन्दरता से व्यक्त करती बहुत खूबसूरत रचना ....मृदुला जी