उस अमर-बेल की
लता कहाँ........
जिनकी कोमल कलियों को चुन,
पावन-परिणय की
वेला
में,मैं हार तुम्हें,
पहनाता था.
वह श्वेत, धवल
हिमखंड कहाँ,जिसकी जगमग
आभा में, मैं
अपलक, अनिमेष,
निःशंकित सा
सौ बार,
तुम्हें नहलाता था.
वह मेघ-माल
है गया कहाँ,जिसकी श्यामल
तरुणिम छवि में,विहगों का सुन
कल्लोल........ कभी,प्रतिपल मैं,
तुम्हें हँसाता था,है गया कहाँ
मलयज बयार,
जिसकी
मीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति
पाँवों में भर,
मैं
पास तुम्हारे आता था.
शानदार काव्य रचना पढ़कर दिल खुश हुआ बधाई
ReplyDeletebahut bahut acchhi kavita padhne ko mili, aabhari hun. kshama chahungi is dus-sahas ke liye ki agar apki kavita is tarah se paish ki jati to kaisi lagti ?????
ReplyDeleteअमर-बेल की लता कहाँ........
जिनकी कोमल कलियों को चुन,
पावन-परिणय की में,
मैं हार तुम्हें, पहनाता था.
श्वेत, धवल हिमखंड कहाँ,
जिसकी जगमग आभा में, मैं
अपलक, अनिमेष, निःशंकित सा
सौ बार, तुम्हें नहलाता था.
वह मेघ-माल है गया कहाँ,
जिसकी श्यामल तरुणिम छवि में,
विहगों का सुन कल्लोल... कभी,
प्रतिपल मैं, तुम्हें हँसाता था,
है गया कहाँ मलयज बयार,
जिसकी मीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति पाँवों में भर,
मैं पास तुम्हारे आता था.
है गया कहाँ
ReplyDeleteमलयज बयार,
जिसकी
मीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति
पाँवों में भर,
मैं
पास तुम्हारे आता था.
Bahut,bahut pyaree rachana hai!
पावन-परिणय की
ReplyDeleteमें,
बहुत ही सुंदर और कोमल एहसास से भरी रचना ..
शायद बेला शब्द छूट गया है ...!!
bahut hi sundar !!
ReplyDeleteलाज़वाब काव्यकृति..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteदिलकश भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteकोमल अहसास दिल को छूते हैं.
अनुपम अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
कोमल अहसासों को पिरोती हुई एक खूबसूरत रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत प्यारी रचना।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता है।
ReplyDeleteसादर
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कल 25/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
lajabaab,bahut sunder.
ReplyDeleteशानदार रचना.
ReplyDeleteअद्भुत बिम्बों का समायोजन से कविता में निखार आ गया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, बहुत सशक्त रचना
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletebahut sundar rachna...
ReplyDeletesouth me rahte aisee hindi sunne ke to laale hee rahte hai padne ka soubhagy pa dil gadgad hai.
ReplyDeletewah kya baat hai...
यह कविता भी आपका ट्रेड मार्क है.. छोटे छोटे छंदों में कोमल कोमल भाव..
ReplyDeleteछोटे - छोटे शब्दों का बेहतर समन्वय , सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कोमल रचना है आपकी,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
आपकी कविता पढ़कर कालिदास का मेघदूत याद आ रहा है... बहुत सुंदर सम्मिलन है भावों व शब्दों का !
ReplyDeleteमुझे लगता है किसी एक पंक्ति को उठाया नही जा सकता। सम्पूर्ण कविता खूबसूरत है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखतीं हैं आप ... बधाई आपको
ReplyDeleteवाह बेहतरीन !!!!
ReplyDeleteभावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
बहुत खूबसूरत और कोमल भाव संजोये हैं इस रचना में ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गई हर एक पंक्तियाँ!
ReplyDeleteजिसकी
ReplyDeleteमीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति
पाँवों में भर,
मैं
पास तुम्हारे आता था.
..बीतें सुनहरे प्यार भरे पलों की कचोटती याद को सुन्दर प्राकृतिक परिवेश में जीवंत करने से रचना बेहद भावपूर्ण बन पड़ी है...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति ..
है गया कहाँ
ReplyDeleteमलयज बयार,
जिसकी
मीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति
पाँवों में भर,
मैं
पास तुम्हारे आता था.
wah...har shabd vajni...
bahut khub!
सुन्दर कोमल अध्बुध प्रवाह लिए ... लाजवाब रचना है ...
ReplyDeleteप्रतिपल मैं,
ReplyDeleteतुम्हें हँसाता था,
है गया कहाँ
मलयज बयार,
जिसकी
मीठी सकुचाहट पर,
द्रुत हरिण गति
पाँवों में भर,
मैं
पास तुम्हारे आता था....
Outstanding creation !
.
सुन्दर भावमय रचना। बधाई आपको।
ReplyDeleteबेमिसाल रचना...
ReplyDeleteनीरज
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
वह श्वेत धवल
ReplyDeleteहिमखंड कहाँ
जिसकी जगमग
आभा में मैं
अपलक अनिमेष
निःशंकित सा
सौ बार
तुम्हें नहलाता था
बहुत प्यारा गीत है।
यह तो स्वरबद्ध कर गाने लायक है।
बेहद भावपूर्ण...नीड टु बी रीइन्वेंटेड...
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