जब कभी तुम्हारी
आँखों में,
सावन के बादल डोलेंगे,
मैं भी उस बादल में छुपकर,
उन आँखों में
बस जाउंगी......
या फिर
नैनों के कोरों से,
गिरकर,छूकर
तेरे कपोल,
तेरे अधरों के
कोनों पर
दो पल रूककर,
तेरी ऊँगली की
पोरों पर,
सो जाउंगी.......
जब कभी तुम्हारी
आँखों में,
सावन के बादल डोलेंगे.......
जब कभी तुम्हारे
सिरहाने की
खिड़की पर,
सावन की बूँदें आएँगी......
मैं भी
उन बूंदों में रहकर,
दृग के सपने
छलकाऊँगी......
या फिर
झिलमिल लड़ियों के संग,
उनकी लय पर
कुछ-कुछ लिखकर,
वहीँ कहीं
मैं आस-पास,
मीठे मृदु-हास
उड़ाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
सिरहाने की
खिड़की पर,
सावन की बूँदें आएँगी......
जब कभी तुम्हारे
घर -आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा ......
मैं भी उस हलचल में
मिलकर
उन्मुक्त ,मुग्ध हो जाउंगी .......
या फिर
रिमझिम गीतों की धुन ,
तुमको छूकर जब आएँगी.......
मैं मन-तंत्री के तारों पर
चुपके-चुपके,
ला-लाकर उन्हें
बजाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
घर,आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा.......
आदरणीय मृदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
चुपके-चुपके,
ला-लाकर उन्हें
बजाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
घर,आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा.......
सुंदर कविता है जीवन का सार्थक संदेश देती हूई
मैं आस-पास,
ReplyDeleteमीठे मृदु-हास
उड़ाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
सिरहाने की
खिड़की पर,
सावन की बूँदें आएँगी...
सुन्दर, अतिसुन्दर पंक्तियां। आप बहुत अच्छा लिखती हैं।
जब कभी तुम्हारी
ReplyDeleteआँखों में,
सावन के बादल डोलेंगे,
मैं भी उस बादल में छुपकर,
उन आँखों में
बस जाउंगी......
सुंदर बहुत सुन्दर कविता...शुभकामनायें...
कितनी मृदुल,सरस सावन की हलचल...
ReplyDeleteबहुत ही सुहानी ....!!
bahut hi sundar bhavmayi kavita....
ReplyDeleteबहुत सुंदर...आनंद आ गया..बहुत ही खुबसूरत।
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteमैं मन-तंत्री के तारों पर
ReplyDeleteचुपके-चुपके,
ला-लाकर उन्हें
बजाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
घर,आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा....
बहुत ही सुंदर...
komal bhavon ki sundar abhivyakti.
ReplyDeletebahut sundar kavita, bhavon ko sundar shabdon ke sang rachi basi ye kavita man ko sarabor kar gayi.
ReplyDeleteजब कभी तुम्हारे
ReplyDeleteघर -आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा ......
मैं भी उस हलचल में
मिलकर
उन्मुक्त ,मुग्ध हो जाउंगी ..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति , साधुवाद
जब कभी तुम्हारे
ReplyDeleteसिरहाने की
खिड़की पर,
सावन की बूँदें आएँगी......
मैं भी
उन बूंदों में रहकर,
दृग के सपने
छलकाऊँगी......mann ko barsata sawan
कल ,शनिवार (३०-७-११)को आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है ,नई -पुराणी हलचल पर ...कृपया अवश्य पधारें...!!
ReplyDeleteआपकी बात तो खूबसूरत ही होती है चुने हुए शब्द बधाई
ReplyDeleteजब कभी तुम्हारी
ReplyDeleteआँखों में,
सावन के बादल डोलेंगे,
मैं भी उस बादल में छुपकर,
उन आँखों में
बस जाउंगी......
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति क्या सोंच है आपकी बहुत खूब
बहुत कोमल से भावों को अपनी इस रचना में गूंथा है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteमैं मन-तंत्री के तारों पर
ReplyDeleteचुपके-चुपके,
ला-लाकर उन्हें
बजाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
घर,आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा...
kya kahun tini sunder panktiyon ke liye
puri kavita ki ek ek panktyan bahut sunder hai.
rachana
बहुत ही सुन्दर रचना है मृदुला जी ! सावन की सहारे हर वक्त आसपास रहने का यह भाव बहुत ही प्रातिकर लगा !
ReplyDeleteनैनों के कोरों से,
गिरकर,छूकर
तेरे कपोल,
तेरे अधरों के
कोनों पर
दो पल रूककर,
तेरी ऊँगली की
पोरों पर,
सो जाउंगी.......
बहुत कोमल सी प्यारी सी अभिलाषा ! मन को अभिसिक्त कर गयी ! बधाई !
बहुत सुन्दर भाव और कल्पना.
ReplyDeleteमृदुल,मृदुल कोमल कोमल.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपके शुभ दर्शन की अपेक्षा है.
बेहतरीन।
ReplyDeleteसादर
मैं मन-तंत्री के तारों पर
ReplyDeleteचुपके-चुपके,
ला-लाकर उन्हें
बजाऊँगी,
जब कभी तुम्हारे
घर,आँगन की
चौखट पर,
सावन हलचल ले आएगा....
जितने सुंदर भाव हैं उससे बढ़कर शब्द हैं ! बहुत सरस और ह्रदय को छूने वाली कविता!
कोमल कल्पनाओं की मधुर-मधुर रचना
ReplyDeleteमन को बाँध लेती है....
खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आज फ़िर खेली है हमने लिंक्स के साथ छुपमछुपाई चर्चा में आज नई पुरानी हलचल आपकी एक पुरानी पोस्ट
ReplyDeleteअच्छा चित्रण किया है आपने घर के बाहर और मन के अंदर के सावन का!!
ReplyDeletebehtarin...
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
कितने कोमल भाव और मासूम सी तमन्नाये लिए कविता है बहुत सुन्दर ..
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