Thursday, August 4, 2011

फुटकर......

दर्द को सीने से निकल जाने दो,
चश्मे -सैलाब का तूफान
गुज़र जाने दो,
मैं तेरे माज़ी का
बहाना ही सही,
किसी हाशिये पर,
मुझे भी
ठहर जाने दो.
......................................

मुट्ठी में आकाश लिए
तुम बोलो कहाँ  उड़ोगे?
खोलो मुट्ठी फिर देखो,
सारा आकाश तुम्हारा है.
.......................................  

सितारों ने समंदर से,
कभी बोलो,
ये बोला है......
कि
परछाईं मेरी तुम पर,
मुझे अच्छी बहुत लगती.

26 comments:

  1. आदरणीय मृदुला जी
    नमस्कार !
    जितने सुंदर भाव हैं उससे बढ़कर शब्द हैं
    सभी फुटकर बहुत अच्छी लगीं ।
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.......!

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  2. मुट्ठी में आकाश लिए
    तुम बोलो कहाँ उड़ोगे?
    खोलो मुट्ठी फिर देखो,
    सारा आकाश तुम्हारा है.... safalta to haath me hai

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  3. भावमय करते शब्‍दों के साथ सुन्‍दर रचना ।

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  4. फुटकर कविता में भाव थोक में हैं.. बढ़िया क्षणिकाएं...

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  5. शब्दों और भावों का सुंदर मेल है यह पोस्ट...सभी फुटकर एक से बढ़के एक...

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  6. वाह ..बहुत बढ़िया रहे ये फुटकर ..सुन्दर क्षणिकाएँ

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  7. मुट्ठी में आकाश लिए
    तुम बोलो कहाँ उड़ोगे?
    खोलो मुट्ठी फिर देखो,
    सारा आकाश तुम्हारा है.

    बहुत सुन्दर …………शानदार रचनायें।

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  8. मृदुला जी!
    आज कुछ नहीं कहने को!! बस डूब गया हूँ इन क्षणिकाओं के भावों में!!

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  9. दर्द को सीने से निकल जाने दो,
    चश्मे -सैलाब का तूफान
    गुज़र जाने दो,
    मैं तेरे माज़ी का
    बहाना ही सही,
    किसी हाशिये पर,
    मुझे भी
    ठहर जाने दो.
    Wah! Kya gazab kaa likha hai!

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  10. सारी क्षणिकाएं बेहतरीन!

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  11. भावनाओं से ओतप्रोत ,शब्दों का चयन बेहतरीन बधाई

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  12. सितारों ने समंदर से,
    कभी बोलो,
    ये बोला है......
    कि
    परछाईं मेरी तुम पर,
    मुझे अच्छी बहुत लगती.

    ekdum ghazab hai....!!! aabhar...


    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

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  13. गहरे भाव के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  14. कभी कभी शब्द एक गूँज लेकर उभर जाते है मन के भीतर , आज आपकी छोटी सी पंक्तियों ने वो काम किया है ..

    आभार

    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  15. मुट्ठी में आकाश लिए
    तुम बोलो कहाँ उड़ोगे?

    खोलो मुट्ठी फिर देखो,
    सारा आकाश तुम्हारा है.

    बेहद खूबसूरत भावमयी प्रस्तुति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  16. सितारों ने समंदर से,
    कभी बोलो,
    ये बोला है......
    कि
    परछाईं मेरी तुम पर,
    मुझे अच्छी बहुत लगती.



    --बिना बोले ही इठला कर बतलाता तो होगा...:)


    सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  17. mridula ji bahut sundar likhati hain aap.....ye rachna bhi bahut sundar lagi

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  18. आदरणीय मृदुला जी
    नमस्कार !
    bahut acchi rachana !

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  19. तीनों ही बहुत सुंदर रचनाएं हैं

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  20. मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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  21. बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें

    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  22. इतनी प्यारी कविताएँ हैं इनको फुटकर ना बोलें .

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  23. अरे ये फुटकर तो कहीं से नहीं है. ये तो अपने आप में बहुत कुछ समेटे ही हुए है. लाजवाब प्रस्तुति.आपका फुटकर तो थोक से भी ज्यादा जबरदस्त है

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