दर्द को सीने से निकल जाने दो,
चश्मे -सैलाब का तूफानगुज़र जाने दो,
मैं तेरे माज़ी काबहाना ही सही,
किसी हाशिये पर,
मुझे भीठहर जाने दो.
......................................
मुट्ठी में आकाश लिए
तुम बोलो कहाँ उड़ोगे? खोलो मुट्ठी फिर देखो,
सारा आकाश तुम्हारा है.
.......................................
सितारों ने समंदर से,
कभी बोलो,
ये बोला है......
कि
परछाईं मेरी तुम पर,
मुझे अच्छी बहुत लगती.
आदरणीय मृदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
जितने सुंदर भाव हैं उससे बढ़कर शब्द हैं
सभी फुटकर बहुत अच्छी लगीं ।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.......!
मुट्ठी में आकाश लिए
ReplyDeleteतुम बोलो कहाँ उड़ोगे?
खोलो मुट्ठी फिर देखो,
सारा आकाश तुम्हारा है.... safalta to haath me hai
भावमय करते शब्दों के साथ सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteफुटकर कविता में भाव थोक में हैं.. बढ़िया क्षणिकाएं...
ReplyDeleteशब्दों और भावों का सुंदर मेल है यह पोस्ट...सभी फुटकर एक से बढ़के एक...
ReplyDeleteवाह ..बहुत बढ़िया रहे ये फुटकर ..सुन्दर क्षणिकाएँ
ReplyDeleteमुट्ठी में आकाश लिए
ReplyDeleteतुम बोलो कहाँ उड़ोगे?
खोलो मुट्ठी फिर देखो,
सारा आकाश तुम्हारा है.
बहुत सुन्दर …………शानदार रचनायें।
bhaut hi sundar abhivaykti...
ReplyDeleteमृदुला जी!
ReplyDeleteआज कुछ नहीं कहने को!! बस डूब गया हूँ इन क्षणिकाओं के भावों में!!
दर्द को सीने से निकल जाने दो,
ReplyDeleteचश्मे -सैलाब का तूफान
गुज़र जाने दो,
मैं तेरे माज़ी का
बहाना ही सही,
किसी हाशिये पर,
मुझे भी
ठहर जाने दो.
Wah! Kya gazab kaa likha hai!
gehan futkar.
ReplyDeleteसारी क्षणिकाएं बेहतरीन!
ReplyDeleteभावनाओं से ओतप्रोत ,शब्दों का चयन बेहतरीन बधाई
ReplyDeleteसितारों ने समंदर से,
ReplyDeleteकभी बोलो,
ये बोला है......
कि
परछाईं मेरी तुम पर,
मुझे अच्छी बहुत लगती.
ekdum ghazab hai....!!! aabhar...
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/
गहरे भाव के साथ बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने ! शानदार प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
कभी कभी शब्द एक गूँज लेकर उभर जाते है मन के भीतर , आज आपकी छोटी सी पंक्तियों ने वो काम किया है ..
ReplyDeleteआभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
मुट्ठी में आकाश लिए
ReplyDeleteतुम बोलो कहाँ उड़ोगे?
खोलो मुट्ठी फिर देखो,
सारा आकाश तुम्हारा है.
बेहद खूबसूरत भावमयी प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
सितारों ने समंदर से,
ReplyDeleteकभी बोलो,
ये बोला है......
कि
परछाईं मेरी तुम पर,
मुझे अच्छी बहुत लगती.
--बिना बोले ही इठला कर बतलाता तो होगा...:)
सुन्दर अभिव्यक्ति...
mridula ji bahut sundar likhati hain aap.....ye rachna bhi bahut sundar lagi
ReplyDeletebahut sundar abhivyakti...
ReplyDeleteआदरणीय मृदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
bahut acchi rachana !
तीनों ही बहुत सुंदर रचनाएं हैं
ReplyDeleteमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इतनी प्यारी कविताएँ हैं इनको फुटकर ना बोलें .
ReplyDeleteअरे ये फुटकर तो कहीं से नहीं है. ये तो अपने आप में बहुत कुछ समेटे ही हुए है. लाजवाब प्रस्तुति.आपका फुटकर तो थोक से भी ज्यादा जबरदस्त है
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