अलसुबह हम
'मानसर' की , झील में
कल्लोल कर,
गिरी-खंड के ओटों में
छुप ,
गातें सुखाकर ,
उत्तंग पर्वत श्रृंखलों पर
बैठकर,
बातें करेंगे..........
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे ?
शाम को पर्वत की
पगडण्डी से होकर,
दूर तक
जाकर मुड़ेंगे,
वापसी में.....और
हम हर मोड़ पर
थककर ज़रा,
रुक-रुक चलेंगे,
उस रात को हम
चांदनी में
भीगकर,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर......
'मानसर' की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप ,
गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रृंखलों पर
बैठकर,
बातें करेंगे............
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे ?
प्रकृति का सुन्दर चित्रण...भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteरूमानी से एहसास देती हुई ...बहुत सुंदर शब्द लिए हुए ...अनुपम रचना ...!!
ReplyDeletehttp://anupamassukrity.blogspot.com/
prakriti aur prem ka adbhut sangam ,bemisaal
ReplyDeleteptakrati ke bimb kiye premmayi rachna , bahut sundar .......
ReplyDeleteकोमल अहसासों का पन्ना खोलती कविता बधाई
ReplyDeletesunder kavita hai mridula ji
ReplyDeletekuch pal sapnile ho uthe...
ReplyDeleteभावमय करते शब्द ।
ReplyDeletebahut sundar prastuti.
ReplyDeleteमौजूदा समय में जब खुद के लिए और अपनों के लिए समय कम हो रहा है.. यह मनुहार एक अलग प्रभाव छोड़ रही है.. बहुत रूमानी कविता बन गई है...
ReplyDeleteवाह मनोभावो का मनोहारी चित्रण किया है।
ReplyDeletequite romantic...
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
यह कविता पहले भी पढ़ी है और इस बार भी पहले की तरह सुंदर लगी, बधाई!
ReplyDeleteकल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कोमल भावों में प्रकृति का सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteलाजवाब कविता
भीगकर,जगकर-जगाकर,
ReplyDeleteओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर......
'मानसर' की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
bahut khoob aapki kavitayen sada hi bahut sunder hoti hain
bahut bahut badhai
rachana
प्रकृति का सुन्दर चित्रण.
ReplyDeleteगजब है.
nice poem
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण ...
ReplyDeleteरक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द में बहुत सुंदर चित्रण
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
वापसी में.....और
ReplyDeleteहम हर मोड़ पर
थककर ज़रा,
रुक-रुक चलेंगे,
उस रात को हम
चांदनी में
भीगकर,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर......
'मानसर' की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप ,
गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रृंखलों पर
बैठकर,
बातें करेंगे............
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे ?
खूबसूरत कविता. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ ।
मृदाला जी , बहुत दिनों के बाद कोई ऐसी प्रेम कविता पड़ी है , जीनेक शब्दों ने कुछ भाव और यादो को जागृत कर दिया .. आपकी कलम को सलाम .. बहुत अच्छा लिखा है , मन भीग गया जी ..
ReplyDeleteआभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
प्रेम का भीना एहसास लए ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteकोमल अहसासों को पिरोती हुई एक खूबसूरत रचना. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
शाम को पर्वत की
ReplyDeleteपगडण्डी से होकर,
दूर तक
जाकर मुड़ेंगे,
वापसी में.....और
हम हर मोड़ पर
थककर ज़रा,
रुक-रुक चलेंगे,
उस रात को हम
चांदनी में
भीगकर,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
शब्द-शब्द सुंदर ! अनूठा शिल्प ! रूमानियत में आकंठ डूबे भाव !
हृदयग्राही रचना !
क्या बात है !
आदरणीया मृदुला जी
जवाब नहीं आपका भी … … … :)
हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार