Wednesday, August 10, 2011

अलसुबह हम 'मानसर' की , झील में.........

अलसुबह हम
'मानसर' की , झील में 
कल्लोल कर,
गिरी-खंड के ओटों में 
छुप ,
गातें सुखाकर ,
उत्तंग पर्वत  श्रृंखलों  पर 
बैठकर,
बातें  करेंगे..........
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे ?
शाम को पर्वत की
पगडण्डी से होकर,
दूर तक
जाकर     मुड़ेंगे,
वापसी में.....और 
हम  हर मोड़ पर 
थककर ज़रा, 
रुक-रुक   चलेंगे,
उस रात को हम
चांदनी में
भीगकर,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर......
'मानसर'  की झील में 
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप ,
गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रृंखलों पर 
बैठकर,
बातें करेंगे............
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे ?



28 comments:

  1. प्रकृति का सुन्दर चित्रण...भावपूर्ण रचना...

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  2. रूमानी से एहसास देती हुई ...बहुत सुंदर शब्द लिए हुए ...अनुपम रचना ...!!
    http://anupamassukrity.blogspot.com/

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  3. ptakrati ke bimb kiye premmayi rachna , bahut sundar .......

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  4. कोमल अहसासों का पन्ना खोलती कविता बधाई

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  5. भावमय करते शब्‍द ।

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  6. मौजूदा समय में जब खुद के लिए और अपनों के लिए समय कम हो रहा है.. यह मनुहार एक अलग प्रभाव छोड़ रही है.. बहुत रूमानी कविता बन गई है...

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  7. वाह मनोभावो का मनोहारी चित्रण किया है।

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  8. बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  9. यह कविता पहले भी पढ़ी है और इस बार भी पहले की तरह सुंदर लगी, बधाई!

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  10. कल हलचल पर आपके पोस्ट की चर्चा है |कृपया अवश्य पधारें.....!!

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  11. बहुत सुन्दर कोमल भावों में प्रकृति का सुन्दर चित्रण...
    लाजवाब कविता

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  12. भीगकर,जगकर-जगाकर,
    ओस की बूँदें
    हथेली में भरेंगे,
    अलसुबह फिर......
    'मानसर' की झील में
    कल्लोल कर,
    गिरि-खंड के ओटों में
    bahut khoob aapki kavitayen sada hi bahut sunder hoti hain
    bahut bahut badhai
    rachana

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  13. प्रकृति का सुन्दर चित्रण.
    गजब है.

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  14. बहुत सुंदर चित्रण ...

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  15. रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.

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  16. बहुत सुंदर शब्द में बहुत सुंदर चित्रण

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  17. आपको एवं आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com/
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  18. वापसी में.....और
    हम हर मोड़ पर
    थककर ज़रा,
    रुक-रुक चलेंगे,
    उस रात को हम
    चांदनी में
    भीगकर,जगकर-जगाकर,
    ओस की बूँदें
    हथेली में भरेंगे,
    अलसुबह फिर......
    'मानसर' की झील में
    कल्लोल कर,
    गिरि-खंड के ओटों में
    छुप ,
    गातें सुखाकर,
    उत्तंग पर्वत श्रृंखलों पर
    बैठकर,
    बातें करेंगे............
    बोलो प्रिय,
    कब हम चलेंगे ?

    खूबसूरत कविता. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ ।

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  19. मृदाला जी , बहुत दिनों के बाद कोई ऐसी प्रेम कविता पड़ी है , जीनेक शब्दों ने कुछ भाव और यादो को जागृत कर दिया .. आपकी कलम को सलाम .. बहुत अच्छा लिखा है , मन भीग गया जी ..

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  20. प्रेम का भीना एहसास लए ... सुन्दर रचना ...

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  21. कोमल अहसासों को पिरोती हुई एक खूबसूरत रचना. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  22. शाम को पर्वत की
    पगडण्डी से होकर,
    दूर तक
    जाकर मुड़ेंगे,
    वापसी में.....और
    हम हर मोड़ पर
    थककर ज़रा,
    रुक-रुक चलेंगे,
    उस रात को हम
    चांदनी में
    भीगकर,जगकर-जगाकर,
    ओस की बूँदें
    हथेली में भरेंगे,


    शब्द-शब्द सुंदर ! अनूठा शिल्प ! रूमानियत में आकंठ डूबे भाव !
    हृदयग्राही रचना !
    क्या बात है !

    आदरणीया मृदुला जी
    जवाब नहीं आपका भी … … … :)


    हार्दिक मंगलकामनाओं सहित
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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