ये कविता 1969-70 की मनःस्थिति में लिखी थी . समय कितना आगे बढ़ गया......... और कितना कुछ पीछे छूट गया लेकिन ये पंक्तियाँ अभी भी जस की तस मेरे आस- पास मंडराती रहतीं हैं ..............पता नहीं आज की दौड़ में, जाने-अनजाने प्रबुद्ध पाठकों की कैसी प्रतिक्रिया होगी इस पर.......होगी भी या नहीं.........
सुबह-सबेरे आज तुम्हारी
आँख खुली है ,
बस मुझको एक
चाय पिला दो......
बाकी दिन की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
ऑफिस जाने से पहले
तुम, बिस्तर पर
चादर
बिछ्बा दो ,
और
एक सूखा कपड़ा ले,
मेज़,कुर्सियां,
सोफा, टीवी से थोड़ी
धुलें,
झड़बा दो ,
धूलों से होती 'एलर्जी'
इसीलिए
'डस्टिंग' करबा दो ,
बाकी दिन की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
मेज़ लगी है
खा लो जल्दी,
ऑफिस को देरी
होती है,
मगर ज़रा तुम 'टोस्ट'
करा दो......
क्योंकि मैंने अभी-अभी
नाखूनों पर,
'पॉलिश' कर ली है.
सब कुछ रखा है
टेबल पर,
तुम सिर्फ ज़रा
अंडे छिलबा दो,
बाकी दिन की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
कल मैंने देखा
पेपर में,
कि नई एक दुकान
खुली है,
'कनॉट-प्लेस' के
चक्कर में ,
शुरू-शुरू में शायद वो
कुछ सस्ता दे,
सो ऐसा करना ,
आते वख्त वहीँ से,
'तंदूरी-चिकेन'
ले आना दो,
बाकी खाने की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
छः-आठ समोसे
रख लेना,
मीठा जैसा तुमको भावे,
आते ही शोर मचाओगे
कि जल्दी से,
कुछ खाना दो,
सब चीज़ें लेकर
छः बजते ही, वापस
घर को
आ जाना,
सुबह-सबेरे तुमने मुझको
चाय पिलाई,
शाम चाय की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
हा हा हा ...कश ऐसा हो पाए ..बाकी ज़िम्मेदारी तो उठाई ही जा सकती है ...
ReplyDeleteआज के समय की कविता ही लगती है.. बहुत सुन्दर... समय से परे भावों की कविता है..
ReplyDeletekaash aisa hi ho pata...hehehhe
ReplyDeleteलीजिए मृदुला जी! आपने तो आज से तीस चालीस साल पहले इस कविता के सृजन की जिम्मेदारी ली थी और आज इसे प्रकाशित करने की भी जिम्मेदारी निभाई.. अब हमारे ऊपर जिम्मेदारी है ईमानदारी के साथ प्रतिक्रया देने की.. ऐसा लगता है मानो किसी नयी नवेली दुल्हन के घर झाँक रहे हैं हम और अंदर से आवाज़ आ रही है कि बड़े अरमान से रक्खा है बालम तेरी कसम, प्यार की दुनिया में ये पहला कदम!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
नई नई गृहस्थी में यह सब चलता है...कितनी मासूमियत से सारी जिम्मेदारी उठाई जाती है कि सामने वाले को खबर भी नहीं होती...
ReplyDeleteइतनी पुरानी कविता में पूरा का पूरा "आज" झलक रहा है !
ReplyDeleteआभार !
बहुत रोचक प्रस्तुति...आज के हालात पर भी उतनी ही खरी बैठती है.
ReplyDeletemridula ji nahi janti aap umr ke kis padaav par hain ...han jab apne ye post likhi tab hi shayed hamne is zami par kadam rakkha tha...ye b nahi janti ki kya aap tab grahsth me kadam rakh chuki thi...jo aisi rachna rach dali...lekin sach maine ise enjoy kiya aur vichar kiya ki aisi soch us waqt ki grahniyon ki hoti thi?
ReplyDelete:):):)
http://anamka.blogspot.com/2011/08/blog-post_20.html
मनोभावों को पूरी शिद्दत से अभिव्यक्त किया है आपने इस रचना के माध्यम से .....!
ReplyDeleteऐसी समझदार पत्नी को नमन :)
ReplyDeleteहास्य भी और व्यंग्य भी ! बहुत सुंदर ...
ReplyDeletekya khoob kaha hai kash aesa ho jaye ........pr kahan ............
ReplyDeleterachana
आज ये गुज़ारिश नहीं है...अब तो है...करवाओगे नहीं तो कहाँ जाओगे...बच्चू...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.. अच्छा लिखा है.
ReplyDeleteजीवन्त विचारों की बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
ReplyDeleteहा हा हा हा .....दीदी ये तब कि नहीं आज की सोच है ...बहुत बढ़िया लिखा है आपने
ReplyDeletekya khoob likha....
ReplyDeleteus jamanein mein is tarah ki likhavat..kya baat hai...
bahut hi pasand aayi:-)
सुबह-सबेरे तुमने मुझको
ReplyDeleteचाय पिलाई,
शाम चाय की
जिम्मेवारी
मैं ले लूंगी.
bahut achchha laga padhkar .
जी मिलजुल कर चलना ही चाहिए .....
ReplyDelete:))
kya baat hai Mridula ji.....ye pati...bechare pati....pahali baar apke blog pr aayi...aapki kavitayain bahaut hi khubsurat ....lagin...
ReplyDeleteबडी ईमानदारी से लिखी गई सुन्दर कविता ।
ReplyDeletebeautiful poem
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब लिखा है आपने! मन की गहराई को बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपकी लेखनी को सलाम.
ReplyDeletewaah ..kya baat hai..bahut sundar pyaari c rachna...
ReplyDeletewow aise lag aaj ke dhor par lekha hai ...bhot acha hai ...
ReplyDeleteफूलों का मेहराब............
ReplyDeletebahut sunder