यह महानगर की धूप है,
गांवों,कस्बों की तरह
भर-भर आँगन
नहीं आती,
तार पर फैले
बीसियों कपड़े,
नहीं सुखाती......
अट्टालिकाओं के पीछे से
नपी-तुली
छनी हुई,कट-छंट कर
आती है,
आरी -तिरछी होती हुई,
कहीं से भी
निकल जाती है.....
कभी मुंडेड़ों
कभी छज्जों पर
अटक जाती है,
दरवाज़ों को छूकर
फिसल जाती है,
कभी
जल्दी आती है
कभी
जल्दी जाती है,
यह महानगर की धूप है,
बिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
गांवों,कस्बों की तरह
भर-भर आँगन
नहीं आती,
तार पर फैले
बीसियों कपड़े,
नहीं सुखाती......
अट्टालिकाओं के पीछे से
नपी-तुली
छनी हुई,कट-छंट कर
आती है,
आरी -तिरछी होती हुई,
कहीं से भी
निकल जाती है.....
कभी मुंडेड़ों
कभी छज्जों पर
अटक जाती है,
दरवाज़ों को छूकर
फिसल जाती है,
कभी
जल्दी आती है
कभी
जल्दी जाती है,
यह महानगर की धूप है,
बिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
jaadon me dhoop kitni pyaari lagti hai hum use kina chahne lagte hain kintu vahi aankh michauli khele to kavita banti hai.bahut achchi kavita likhi hai.nav varsh ki shubhkamnaayen.
ReplyDeletedhoop ko taraste hain log ... suraj bhi jagah dhoondhta hai aane ko
ReplyDeleteमृदुला जी!
ReplyDeleteमहानगर के महाभावनों (अपार्टमेंट्स) में रहने वाले महामानवों की किस्मत में यह धूप कहाँ!! चमन में फूल खिलते हैं, वन में हंसते हैं!! वैसे ही गाँवों में धूप "खिलती" है, महानगरों में "मिलती" है. धूप की आँख मिचौनी पर बहुत सुन्दर कविता!!
महानगर की धूप सच ऐसी ही आँख मिचौली खेलती है ... हमें तो फ़्लैट से नीचे उतर कर धूप को पकडना पड़ता है :)बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सच कहा है...तरसते हैं धूप को लोग...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक चित्रण किया है…………शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteयह महानगर की धूप है,
ReplyDeleteबिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
बहुत सार्थक व सटीक बात कही है आपने ...इन पंक्तियों में ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुंदर,सार्थक सटीक रचना,
ReplyDeleteनया साल आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,
--"नये साल की खुशी मनाएं"--
महानगरों में धूप भी कितनी कीमती हो जाती है... बहुत सुंदर और सही वर्णन, बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें|
यह महानगर की धूप है,
ReplyDeleteबिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
behad khub mridula ji... liked it... :)
Sach! Mahanagar kee dhoop aisee hee hoti hai!
ReplyDeleteNaya saal mubarak ho!
बहुत सुंदर चित्रण ...नववर्ष की शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteकभी
ReplyDeleteजल्दी जाती है,
यह महानगर की धूप है,
बिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
सही वर्णन.
नववर्ष की शुभकामनाएँ
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना !
वंचितों के दर्द, उनकी समस्या को प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है। बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteअनोखी सी :-)
आपके जीवन में सदा कच्ची और गुनगुनी धूप रहे.
नववर्ष मंगलमय हो!
महानगर की यही त्रासदी है.. प्रकृति का दमन करने वाला धूप को तरसता है!! यथार्थवादी चित्रण!!
ReplyDeletesach kaha mridula ji , chutki bhar dhoop
ReplyDeleteयह महानगर की धूप है,
ReplyDeleteबिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
bahut khoob...yahi to he jiban...jahan jina pare wahi jinaa pare..kashak rah jati hi fir bhi
wah bahut khoob ...mumba ki yaad phir se taza ho gayi ........sunder abhivyakti .
ReplyDeleteमहानगर की महान बातें..अच्छा लिखा है ..
ReplyDeleteअच्छी रचना। यह तो महानगर की सुविधाओं की मामूली सी कीमत है।
ReplyDeleteबढिया है, उँची इमारतों के पीछे धूप तो छिप ही जाती है।
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,ऊँची इमारतों से धूपका छिपना स्वाभाविक है,..
ReplyDeleteमेरे पोस्ट में आपका स्वागत है,'काव्यान्जलि'में....
यह महानगर की धूप है,
ReplyDeleteबिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.
अच्छी रचना!
बढिया है. नववर्ष मंगलमय हो.
ReplyDeleteजल्दी आती है कभी जल्दी जाती है
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
यह महानगर की धूप है,
ReplyDeleteबिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.badhiya.
Your all creation is very cool.... A decent & realistic compositions. i liked them .
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