Monday, January 2, 2012

यह महानगर की धूप है.......

यह महानगर की धूप है,
गांवों,कस्बों की तरह
भर-भर आँगन
नहीं आती,
तार पर फैले
बीसियों कपड़े,
नहीं सुखाती......
अट्टालिकाओं के पीछे से
नपी-तुली
छनी  हुई,कट-छंट कर
आती है,
आरी -तिरछी होती हुई,
कहीं से भी
निकल जाती है.....
कभी मुंडेड़ों
कभी छज्जों पर
अटक जाती है,
दरवाज़ों को छूकर
फिसल जाती है,
कभी
जल्दी आती है
कभी
जल्दी जाती है,
यह महानगर की धूप है,
बिजली और पानी की तरह
कभी आती है
कभी
नहीं आती है.

             
        



31 comments:

  1. jaadon me dhoop kitni pyaari lagti hai hum use kina chahne lagte hain kintu vahi aankh michauli khele to kavita banti hai.bahut achchi kavita likhi hai.nav varsh ki shubhkamnaayen.

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  2. dhoop ko taraste hain log ... suraj bhi jagah dhoondhta hai aane ko

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  3. मृदुला जी!
    महानगर के महाभावनों (अपार्टमेंट्स) में रहने वाले महामानवों की किस्मत में यह धूप कहाँ!! चमन में फूल खिलते हैं, वन में हंसते हैं!! वैसे ही गाँवों में धूप "खिलती" है, महानगरों में "मिलती" है. धूप की आँख मिचौनी पर बहुत सुन्दर कविता!!

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  4. महानगर की धूप सच ऐसी ही आँख मिचौली खेलती है ... हमें तो फ़्लैट से नीचे उतर कर धूप को पकडना पड़ता है :)बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  5. बहुत सच कहा है...तरसते हैं धूप को लोग...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  6. बिल्कुल सटीक चित्रण किया है…………शानदार प्रस्तुति।

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  7. यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.
    बहुत सार्थक व सटीक बात कही है आपने ...इन पंक्तियों में ।

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  9. बहुत सुंदर,सार्थक सटीक रचना,
    नया साल आपके जीवन को प्रेम एवं विश्वास से महकाता रहे,

    --"नये साल की खुशी मनाएं"--

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  10. महानगरों में धूप भी कितनी कीमती हो जाती है... बहुत सुंदर और सही वर्णन, बधाई !

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  11. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    नव वर्ष की शुभकामनायें|

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  12. यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.


    behad khub mridula ji... liked it... :)

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  13. Sach! Mahanagar kee dhoop aisee hee hoti hai!
    Naya saal mubarak ho!

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  14. बहुत सुंदर चित्रण ...नववर्ष की शुभकामनाएँ ।

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  15. कभी
    जल्दी जाती है,
    यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.

    सही वर्णन.
    नववर्ष की शुभकामनाएँ

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  16. आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को नये साल की ढेर सारी शुभकामनायें !
    बहुत सुंदर रचना !

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  17. वंचितों के दर्द, उनकी समस्या को प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है। बहुत अच्छा लगा।

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  18. बहुत अच्छी रचना...
    अनोखी सी :-)
    आपके जीवन में सदा कच्ची और गुनगुनी धूप रहे.
    नववर्ष मंगलमय हो!

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  19. महानगर की यही त्रासदी है.. प्रकृति का दमन करने वाला धूप को तरसता है!! यथार्थवादी चित्रण!!

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  20. sach kaha mridula ji , chutki bhar dhoop

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  21. यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.

    bahut khoob...yahi to he jiban...jahan jina pare wahi jinaa pare..kashak rah jati hi fir bhi

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  22. wah bahut khoob ...mumba ki yaad phir se taza ho gayi ........sunder abhivyakti .

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  23. महानगर की महान बातें..अच्छा लिखा है ..

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  24. अच्छी रचना। यह तो महानगर की सुविधाओं की मामूली सी कीमत है।

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  25. बढिया है, उँची इमारतों के पीछे धूप तो छिप ही जाती है।

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  26. सुंदर प्रस्तुति,ऊँची इमारतों से धूपका छिपना स्वाभाविक है,..
    मेरे पोस्ट में आपका स्वागत है,'काव्यान्जलि'में....

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  27. यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.

    अच्छी रचना!

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  28. बढिया है. नववर्ष मंगलमय हो.

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  29. जल्दी आती है कभी जल्दी जाती है
    सुंदर प्रस्तुति

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  30. यह महानगर की धूप है,
    बिजली और पानी की तरह
    कभी आती है
    कभी
    नहीं आती है.badhiya.

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  31. Your all creation is very cool.... A decent & realistic compositions. i liked them .

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