हर रोज़
नए-नए तरक़ीब से ,
मन को
उठाने ,बैठाने,बहलाने के,
पचीसों वज़ह,
ढूंढकर लाती हूँ......और
कभी बेवज़ह,
वज़ह बनाकर,
ख़ुद को
समझाकर,
खड़ी हो जाती हूँ.
समय के साथ
खिट-पिट
चलती है,
घड़ी
लगातार
मुश्तैद रहती है,
दस बज गए-
'नाश्ता कर लो',
बारह बज गए-
'चाय पी लो',
ये बज गया-
'वो कर लो ',
वो बज गया -
'ये कर लो '.
नियंत्रण
कड़ा रहता है,
मैं सोचती हूँ ........
अच्छा रहता है,
एक
पहरा रहता है.
रोक-टोक
बनी रहती है ,
नोक -झोंक
बनी रहती है
वरना......
मनमानी की
ज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteवाह..
ReplyDeleteबहुत गहरी बात कह दी आपने..
वरना......
ReplyDeleteमनमानी की
ज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
बहुत बढ़िया ....
मनमानी की
ReplyDeleteज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
सुन्दर भाव..
संवेदनशील रचना। बधाई।
ReplyDeleteस्वयं को अन्य-पुरुष की तरह देखना और स्वयं के अहंकार पर नियत्रण के उपक्रम!! बहुत गहरी कविता!!
ReplyDeletekuch chuni hui panktiyaan nahi likh paya yahan..
ReplyDeletehar ek lafz guthaa hua hai ek doosre mein..
behtareen rachna.. :)
palchhin-aditya.blogspot.in
खूबसूरत ...
ReplyDeletekalamdaan.blogspot.in
bahut hi khoobsoorat prastuti pardhan ji ...badhai.
ReplyDeleteमनमानी की
ReplyDeleteज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
sahi kaha aapne sunder abhivyakti
rachana
अच्छा रहता है,
ReplyDeleteएक
पहरा रहता है.
रोक-टोक
बनी रहती है ,
नोक -झोंक
बनी रहती है
वरना......
मनमानी की
ज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
...bahut sudnar prerak rachna..
..... ..bahut sundar man ki udhedbun
मनमानी की
ReplyDeleteजमीन पर,
अहंकार की फसल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
अच्छी उपमाएं,
यथार्थपरक कविता।
ये बज गया-
ReplyDelete'वो कर लो ',
वो बज गया -
'ये कर लो '.
बहुत बढ़िया...
विचारणीय..... सशक्त अभिव्यक्ति .
ReplyDeletebahut hi umda rachna hai ,bdhai aap ko
ReplyDeleteगौ वंश रक्षा मंच: श्री गोपाल गौशाला
ReplyDeletegauvanshrakshamanch.blogspot.com
par aap saadar aamntrit hai ...shukriya
प्रत्युत्तर दें
kitni gahanta aur gudhta hai...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
अच्छी प्रस्तुति,बेहतरीन सुंदर रचना,...
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeletebahut hi sarthak prastuti .
ReplyDeletesamay ki pabandi bahut hi jaruri hai varna sab kuchh asamany sa ho jaata hai-----
poonam
bahut sundar ....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति...
ReplyDeleteहलके फुल्के शब्दों मे कितनी बड़ी बात कह दी आपने ...
ReplyDeleteदस बज गए-
ReplyDelete'नाश्ता कर लो',
बारह बज गए-
'चाय पी लो',
ये बज गया-
'वो कर लो ',
वो बज गया -
'ये कर लो '.
नियंत्रण
कड़ा रहता है,
aisa hi to hota hai:))
bahut gahri soch...
ReplyDeleteमनमानी की
ज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
shayad aise hi jivan sukhmay chalta hai warna...
यथार्थ से सकारात्मक समझौता , सुंदर रचना.
ReplyDeleteमनमानी की
ReplyDeleteज़मीन पर,
अहंकार की फ़सल
तैयार
होने में,
देर कहाँ लगती है?
sach k roobroo karati panktiyaan,sunder....
सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआभार !
बेहतरीन सुंदर रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
बहुत ही भाव प्रवण कविता । मन को आंदोलित कर गयी । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है |
ReplyDeleteआशा
कभी बेवज़ह,
ReplyDeleteवज़ह बनाकर,
ख़ुद को
समझाकर,
खड़ी हो जाती हूँ.
समय के साथ...gahan behad gahen.............
बढ़िया कविता... बहुत सुन्दर....मन में उतर जाती हैं आपकी कवितायें... सादर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeletepasand aai.sada,sparsh karti.
ReplyDeleteबहूत हि सुंदर रचना है
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ती..