Friday, February 24, 2012

.......कि बगल की कुर्सी पर

कैसी है ये यात्रा,
कैसा है ये सफ़र,
इधर
और उधर,
सिर्फ़
नए,अपरिचित
चेहरे.
कहीं बच्चों की
कतार,
कहीं सरदारजी
सपरिवार,
कोई खा रहा
'चौकलेट'
कोई पी रहा
सिगार,
किसे दिखाऊँ
उस औरत का
जूड़ा,
किसे दिखाऊँ 
उन महाशय की
मूंछें,
किससे कहूँ
'एयर-बैग' उतारो,
किससे कहूं 
'सीट-बेल्ट' बाँधो.
किसे पिलाऊँ 
अपने हिस्से का
'कोल्ड-ड्रिंक',
किसके कन्धों पर
सोऊँ
उठंगकर.......कि
बगल की कुर्सी पर
न तुम,न तुम
और
न तुम.






28 comments:

  1. बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,मृदुला जी,...
    सुंदर भाव की रचना के लिए बधाई,.....

    MY NEW POST...आज के नेता...

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  2. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

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  3. Kitna akelapan chhupa hai is rachana me!

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  4. akela safar ajnabi chehre kisi ki yadon ke sahare.bahut sundar....vaah

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  5. बड़ा लिमिटेड यूज़ है...तुम्हारा...हा...हा...हा...खूबसूरत भाव...

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  6. सिर्फ और सिर्फ सन्नाटा है ...

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  7. सांझ ढाले गगन तले हम कितने एकाकी!!

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  8. कहाँ घूम कर आई हैं अकेली ? सफर में यादों का सफर किया ...

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  9. एक यात्रा तेरे बिन.....

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  10. यात्रा में सिगार? अकेले मत घूमने जाइए, कभी कोई कंधा मिल गया तो तकलीफ होगी।

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  11. वाह ...बहुत खूब ।

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  12. यात्रा में कोई साथ हो तो आनंद दुगना हो जाता है...सुंदर अहसास !

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  13. किसी खास की अनुपस्थिति का अहसास।

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  14. Replies
    1. तेरी याद आ रही हैं.....तेरे जाने के बाद आ रही हैं

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  16. न तुम, न तुम, न तुम, कितने तुम हैं । मज़ाक कर रही हूँ । अकेलेपन का अहसास बखूबी व्.क्त हो रहा है इस रचना में ।

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  17. कितने सच्चे और महसूस किये हुये बिम्ब!
    एकाकी मन यात्रा में भी जैसे ठहरा हुआ एक ही बिन्दु पर!

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  18. अकेलेपन का सुंदर चित्रण.....

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  19. ये बगल की कुर्सी पर हमेशा अनजान यात्री ही क्यों आ विराजते हैं?

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  20. किसी केनवास पे जैसे चित्र खींच दिया हो ... लाजवाब ...

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  21. bahut hi sidhe saade shbdon me ek bahut umda rachna,bdhaai ap ko

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  22. अपरिचितों के बीच यात्रा की झीनी सी टेंशन...बहुत खूब.

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