तुम सृजन की
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
Wah! Bahut sundar chhavee aankhon ke aage chha gayee!
ReplyDeletebhut sunder..waah
ReplyDeleteसुन्दर..
ReplyDeleteमाणिक की छठा
ReplyDeleteहै डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती
सुन्दरता की पराकाष्ठ लिए है सृजन ...
बहुत खूबसूरत रचना ...
bahut sundar !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना...
ReplyDeleteइस बेहतरीन सुंदर रचना के लिए बधाई,...
ReplyDeleteNEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
खूबसूरत कविता.. बहुत सुद्नर...
ReplyDeleteफागुन के महीने में रूमानियत की ये चरम स्थिति है!!
ReplyDeleteतुम सृजन का स्रोत ...
ReplyDeleteकितनी प्यारी स्वीकारोक्ति है !
खूबसूरत भावप्रवण रचना..
ReplyDeleteमाणिक की छठा
ReplyDeleteहै डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती...bahut sundar bhaav pravan rachna.
bahut hee sundar !
ReplyDeletespeechless!!
हे रूपसि,
ReplyDeleteबिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती ... poorn ehsaas
khubsurat.. bahut pyari!!
ReplyDeleteहे रूपसि, बिंदी में, माणिक की छठा, है डोलती,
ReplyDeleteतुम सृजन का, स्रोत बन, मेरी कलम में बोलती..
bahut hi sundar pankityaan :)
palchhin-aditya.blogspot.in
अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteबेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteदो नयन
ReplyDeleteस्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
..बहुत सुन्दर भाव...
वाह बहुत खूब .........हर बिम्ब को खूबसूरती से लिख दिया
ReplyDeleteबहूत हि सुकोमल सी रचना है
ReplyDeleteबेहतरीन भाव अभिव्यक्ती:-)
सुन्दरता शब्दों में ढल गयी.. एक सुन्दर छवि आँखों के सामने घूम गई...
ReplyDeleteतुम सृजन का
ReplyDeleteस्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
मुझे ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं।
अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteGyan Darpan
..
हे रूपसि,
ReplyDeleteबिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
सुंदर भाव सृजन.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, कमनीय एवं नयनाभिराम छवि आँखों के आगे साकार हो उठी है ! इतनी खूबसूरत रचना के लिये आभार !
ReplyDeleteसुंदर कविता !
ReplyDeleteखूबसूरत रचना.
ReplyDeleteतुम सृजन का
ReplyDeleteस्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .
अनेक सृजनकर्ता इस ‘तुम‘ के सहारे साहित्य के समंदर में कूद पड़ते हैं।
यथार्थ को उद्घाटित करती अच्छी कविता।
गहरे भाव और सुन्दर शब्दों से सजी कविता |
ReplyDeleteमनको छूते भाव |
आशा
ATI SUNDAR BHAWPURNA RACHANA
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव!
ReplyDeletenihshabd hun... kuchh bhi kaha to shayad apmaan hoga is bahumulya shabd bandhan ka...
ReplyDeleteप्रभावशाली शब्द सामर्थ्य !
ReplyDeleteरंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !
waah vo kitni saubhagyshaali hongi jo is kalam me chha gayi.
ReplyDeletesunder prastuti.
holi mubarak.
तुम सृजन का
ReplyDeleteस्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती ....वाह!
बहुत सुन्दर सरस प्रवाही रचना...
सादर.
कोमल शब्दों के साथ मन की सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletebeautiful. it narrates a creative message
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