Wednesday, February 29, 2012

तुम सृजन की छाँव में.......

तुम सृजन की
छाँव में,
मधु-रागिनी सी
आ गयी,
तुम सरल किरणें लिए
मेरी
यामिनी में
आ गयी.
कमनीय काया,कनक
कुंदन बदन,
कोमल लता,
चंपा-कली अधरें,
भ्रमर
काली लटों से
झांकता.
दो नयन
स्वप्निल कमल,
पलकों में जागी
पंखुड़ी,
तुम सुबह की
ज्योत्स्ना
मुस्कान में मोती जड़ी.
सुर्ख जोड़ा,पांव में
पायल,
महावर की ये
लाली,
झुक के पलकों  ने
भरी
मदिरा से है.....
आँखों की प्याली.
हे रूपसि,
बिंदी में
माणिक की छठा
है डोलती,
तुम सृजन का
स्रोत बन
मेरी कलम में
बोलती .



40 comments:

  1. Wah! Bahut sundar chhavee aankhon ke aage chha gayee!

    ReplyDelete
  2. माणिक की छठा
    है डोलती,
    तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती

    सुन्दरता की पराकाष्ठ लिए है सृजन ...
    बहुत खूबसूरत रचना ...

    ReplyDelete
  3. बहुत ही खूबसूरत रचना...

    ReplyDelete
  4. खूबसूरत कविता.. बहुत सुद्नर...

    ReplyDelete
  5. फागुन के महीने में रूमानियत की ये चरम स्थिति है!!

    ReplyDelete
  6. तुम सृजन का स्रोत ...
    कितनी प्यारी स्वीकारोक्ति है !

    ReplyDelete
  7. खूबसूरत भावप्रवण रचना..

    ReplyDelete
  8. माणिक की छठा
    है डोलती,
    तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती...bahut sundar bhaav pravan rachna.

    ReplyDelete
  9. हे रूपसि,
    बिंदी में
    माणिक की छठा
    है डोलती,
    तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती ... poorn ehsaas

    ReplyDelete
  10. हे रूपसि, बिंदी में, माणिक की छठा, है डोलती,
    तुम सृजन का, स्रोत बन, मेरी कलम में बोलती..

    bahut hi sundar pankityaan :)


    palchhin-aditya.blogspot.in

    ReplyDelete
  11. अनुपम भाव संयोजन के साथ बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  12. बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....

    ReplyDelete
  13. दो नयन
    स्वप्निल कमल,
    पलकों में जागी
    पंखुड़ी,
    तुम सुबह की
    ज्योत्स्ना
    मुस्कान में मोती जड़ी.
    ..बहुत सुन्दर भाव...

    ReplyDelete
  14. वाह बहुत खूब .........हर बिम्ब को खूबसूरती से लिख दिया

    ReplyDelete
  15. बहूत हि सुकोमल सी रचना है
    बेहतरीन भाव अभिव्यक्ती:-)

    ReplyDelete
  16. सुन्दरता शब्दों में ढल गयी.. एक सुन्दर छवि आँखों के सामने घूम गई...

    ReplyDelete
  17. तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती .
    मुझे ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं।

    ReplyDelete
  18. अच्छी प्रस्तुति

    Gyan Darpan
    ..

    ReplyDelete
  19. हे रूपसि,
    बिंदी में
    माणिक की छठा
    है डोलती,
    तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती .

    ReplyDelete
  20. सुंदर भाव सृजन.

    ReplyDelete
  21. बहुत सुन्दर, कमनीय एवं नयनाभिराम छवि आँखों के आगे साकार हो उठी है ! इतनी खूबसूरत रचना के लिये आभार !

    ReplyDelete
  22. सुंदर कविता !

    ReplyDelete
  23. खूबसूरत रचना.

    ReplyDelete
  24. तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती .

    अनेक सृजनकर्ता इस ‘तुम‘ के सहारे साहित्य के समंदर में कूद पड़ते हैं।
    यथार्थ को उद्घाटित करती अच्छी कविता।

    ReplyDelete
  25. गहरे भाव और सुन्दर शब्दों से सजी कविता |
    मनको छूते भाव |
    आशा

    ReplyDelete
  26. बहुत सुन्दर भाव!

    ReplyDelete
  27. nihshabd hun... kuchh bhi kaha to shayad apmaan hoga is bahumulya shabd bandhan ka...

    ReplyDelete
  28. प्रभावशाली शब्द सामर्थ्य !
    रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !

    ReplyDelete
  29. waah vo kitni saubhagyshaali hongi jo is kalam me chha gayi.

    sunder prastuti.

    holi mubarak.

    ReplyDelete
  30. तुम सृजन का
    स्रोत बन
    मेरी कलम में
    बोलती ....वाह!
    बहुत सुन्दर सरस प्रवाही रचना...
    सादर.

    ReplyDelete
  31. कोमल शब्दों के साथ मन की सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  32. beautiful. it narrates a creative message

    ReplyDelete