वह ममता कितनी प्यारी थी ,
वह आँचल कितना सुन्दर था,
जिसके कोने की गिरहों में
थी मेरी ऊँगली बंधी हुई .
तब ........
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
ऊँगली भर की आकांछा थी,
उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.....
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
ReplyDeleteऊँगली भर की आकांछा थी,
उस आँचल की उन गिरहों में
बस, अपनी सारी दुनिया थी.....
भावों से भरी खुबशुरत पंक्तियाँ,....लाजबाब रचना
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
माँ के प्यार में निस्वार्थ भाव को समेटती आपकी खुबसूरत रचना.....
ReplyDeleteक्या बात है । अति प्रशंसनीय । मेरे पस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमां का प्यार था वह।
ReplyDeleteसच वह ममता कितनी प्यारी थी
ReplyDeletemaa ki mamta badi pyari thi
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम !
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सेहत के दुश्मन चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ - ब्लॉग बुलेटिन
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लोग कहते हैं आज माँ का खास दिन है पर माँ का दिन कब खास नहीं होता ? माँ को हमारा सलाम सुन्दर रचना |
ReplyDeleteमहतारी दिवस की बधाई
ReplyDeleteमाँ ने जिन पर कर दिया, जीवन को आहूत
ReplyDeleteकितनी माँ के भाग में , आये श्रवण सपूत
आये श्रवण सपूत , भरे क्यों वृद्धाश्रम हैं
एक दिवस माँ को अर्पित क्या यही धरम है
माँ से ज्यादा क्या दे डाला है दुनियाँ ने
इसी दिवस के लिये तुझे क्या पाला माँ ने ?
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
ReplyDeleteऊँगली भर की आकांछा थी,
उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.
मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteआपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
माँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
माँ के आँचल में ही सारी दुनिया समाई थी कम शब्दों में कितनी बड़ी बात अति सुन्दर मृदुला जी बधाई
ReplyDeleteमृदला जी आपकी रचनाओं की यह खूबसूरती मुझे बहुत अच्छी लगती है, कि आप बात बिम्बों के माध्यम से बड़ी खूबसूरती से कह देती हैं।
ReplyDeleteमाँ को नमन ..... सच में सारी दुनिया उसी में समाई रहती है..... अति सुंदर रचना
ReplyDeleteतब की छोटी सी दुनिया बेहद प्यारी थी...
ReplyDeleteसुंदर रचना!
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
ReplyDeleteऊँगली भर की आकांछा थी,
..सच जब बच्चे थे तब वे दिन कितने अच्छे थे.. थोड़ी खुशियाँ में ही सारा जहाँ होता है और अब..पूछो मत ...
बहुत सुन्दर कोमल भाव ...
बित्ते भर की खुशियाँ थी,
ReplyDeleteऊँगली भर की आकांछा थी,
उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.....
चाहे कितने ही बड़े क्यूँ न हो जाएँ आज भी वो आँचल हमारी सारी दुनिया समेटे हुए है, बड़े ही प्यार से. सुन्दर प्रस्तुति.
बहुत प्यारी , निश्चल कविता ...!
ReplyDeleteसच में माँ शब्द्में सारी दुनिया समाई हुई है..सुन्दर मासूम रचना..
ReplyDeleteथी तो बित्ते भर की पर आज भी सबसे ज्यादा उसे ही पाने का दिल करता है ... निश्छल रचना ...
ReplyDeleteबित्ते भर की खुशियाँ थी,
ReplyDeleteऊँगली भर की आकांछा थी,
उस आँचल की उन गिरहों में
बस,अपनी सारी दुनिया थी.....
फिर भी कितनी विस्तृत थी हमारे प्यार की दुनिया ... अनुपम प्रस्तुति।
बहुत सुंदर ....
ReplyDeleteबित्ते भर की खुशियाँ थी,
ऊँगली भर की आकांछा थी,... इसी में सारी दुनिया जहां की खुशियाँ मिल जाती थीं
क्या खूब!
ReplyDeleteकभी बित्ते भर की खुशियों से उछल पड़ते थे और आज.. हंसी आती है.. पर ज़िंदगी इसी का नाम है!
उस आँचल की उन गिरहों में
ReplyDeleteबस,अपनी सारी दुनिया थी....bahut accha.....
बहुत सुंदर .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना....:-)
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