मेरी मदर इन लॉ कहती थीं……कि अपने ज़माने में वो पापड़ दाल में भिंगोकर खाती थीं ताकि बाहर उनके खाने की आवाज़ सुनायी न दे. सोचती हूँ ,तब की औरतोँ में संकोच और लज्जा का कितना अलग रूप था……
Wednesday, November 20, 2013
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घरों से लड़कियों कि आवाज़ बाहर न जाये ये सुना था...पापड़ खाने का ये तरीका गज़ब है...
ReplyDeleteपता नहीं संकोच था या "शोषण".....यह डर कि कोई टोक न दे......
ReplyDeleteaisi kahaniya sunne ko mil hi jaati hai jo naari ki bebas sthiti ko darsati hai.................
ReplyDeleteबहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
ReplyDeleteशुभकामनाएं.