Wednesday, November 20, 2013

मेरी मदर इन लॉ कहती थीं……कि अपने ज़माने में वो पापड़ दाल में भिंगोकर खाती थीं ताकि बाहर उनके खाने की आवाज़ सुनायी न दे. सोचती हूँ ,तब की  औरतोँ में  संकोच और लज्जा का   कितना अलग रूप था……

4 comments:

  1. घरों से लड़कियों कि आवाज़ बाहर न जाये ये सुना था...पापड़ खाने का ये तरीका गज़ब है...

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  2. पता नहीं संकोच था या "शोषण".....यह डर कि कोई टोक न दे......

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  3. aisi kahaniya sunne ko mil hi jaati hai jo naari ki bebas sthiti ko darsati hai.................

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  4. बहुत खूब !खूबसूरत रचना,। सुन्दर एहसास .
    शुभकामनाएं.

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