Thursday, March 13, 2014

अभी-अभी साहित्य-अकादमी से लौटी......

अभी-अभी साहित्य-अकादमी से लौटी . नए कवियों के कविता -पाठ  में एक लड़की बोली.....इतिहास में कभी ये नहीं लिखा गया कि रावण का आकर्षक व्यक्तित्व और अपने प्रति आशक्ति देखकर सीता जी मन- ही- मन उससे प्रेम करने लगी थीं…… (प्रेम को वो काफी खोलकर,कुछ अशोभनीय शब्दों के माध्यम से बोली थी ). प्रोग्राम के बाद मैं उसे अपने पास बुलायी और पूछी कि तुम जो ये सीता जी के प्रेम वाली बात लिखी हो ,ये कहीं पढ़ी हो या तुम्हारी कल्पना है ?वो बोली , हाँ मेरी कल्पना है लेकिन इस बारे में काफी लिखा जा चुका है . मैं फिर पूछी कि तुमने ऐसी कोई बात कभी किसी ऐतिहासिक किताब में भी पढ़ी है क्योंकि मैं तो कभी नहीं पढ़ी हूँ....... इस पर उसका जबाब था, नहीं.……तो क्या ये तुम्हारे दिमाग की उपज है ?हाँ ,उसने मुस्कुराकर  जबाब दिया और मुझे आश्चर्य हुआ……कि उसके चेहरे पर गर्व का भाव था ....... और मैं, मेरी तो जैसे बोलती ही बंद हो गयी…… 

7 comments:

  1. मृदुला जी , चर्चित होने के लिये ऐसे लोग पौराणिक पात्रों को अपनी मानसिकता से गढते हैं और बेस्टसेलर होने का सपना देखते हैं । एक करोडों कमाने वाले लेखक ने भगवान शिव को लेकर ऐसा ही प्रयास किया है । और उसमें सफल भी हुआ है ।
    इसे साहित्य का नाम तो नही दिया जासकता ।

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  2. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि...किसी ने उर्मिला की व्यथा का बखान किया...अभी कुछ दिन पूर्व किसी ने रावण से सीखने वाली दस बातें लिखीं थीं...

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  3. shayad use apni kavita par garv ho lekin sach to ye hai ki ek naari ne hi ek naari ka apman kiya , uske satitav par sawal uthye jo sadiyo se hota raha hai............

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  4. एक स्थापित महिला ब्लॉगर ने एक बार एक हास्य-प्रधान आलेख लिखा था, जिसपर मैं मात्र स्माइली बनाकर चला आया. उनका मेसेज मिला मुझे कि क्या हुआ सलिल जी, आपको अच्छा नहीं लगा. तब मैं ने कहा कि मैं पुराने विचारों का सही लेकिन पौराणिक कथाओं के सन्दर्भ में मज़ाक सहन नहीं कर सकता. आपने जिन महिला/युवा लेखिका की बात कही वो उनका अधकचरापन ही व्यक्त करता है या फिर प्रगतिशील लेखन के नाम पर फूहड़ता का प्रदर्शन. ऐसे लोगों के सामने कोई तार्किकता काम नहीं करती, क्योंकि उन्हें पता है वो क्या कर रहे/रही हैं. पहली बार गिरिजा दी से अपना मतभेद प्रस्तुत रहा हूँ. जिस व्यक्ति ने शिव के जीवन चरित के ऊपर अपने तीन खण्डों का उपन्यास लिखा है, उसने बहुत गहन शोध के बाद, शिव के प्रति पूरी भक्ति प्रदर्शित करते हुये और बड़े ही तार्किक एवम वैज्ञानिक ढ़ंग से शिव की परिकल्पना की है. मैंने तीनों उपन्यास पढ़े हैं और लगातार एक साथ पढ़े हैं, तभी इतना दावे के साथ कह पा रहा हूँ.
    पहले भी इस तरह के प्रयास होते रहे हैं. रामायण तथा महाभारत के कई चरित्रों को हम अपने मनोनुकूल नहीं पाते हैं. ऐसे में कई लेखकों ने अपनी कल्पना के आधार पर अपनी बात कहनी चाही है. शिवाजी सावंत का ‘मृत्युंजय’ कर्ण के दृष्टिकोण से लिखा गया है, आचार्य चतुरसेन का ‘वयम रक्षाम:’ रावण को देखने का एक नया पहलू प्रदान करता है, नरेन्द्र कोहली की ‘महासमर’ तथा महाभारत के पात्रों को लेकर लिखी गयी महागाथा मुग्ध करती है.
    वास्तव में इस तरह की रचनाधर्मिता वही निभा सकता है जिसने इनका गहन अध्ययन किया हो और वही उसपर अपनी बात नये सन्दर्भ में रखने की स्वतंत्रता ले सकता है. जिसका ज्ञान और समझ अपूर्ण हो उसकी रचनाएँ अधकचरी और विद्रूप ही होंगी!

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    1. सलिल भैया , आपकी टिप्पणी पढकर मैं बात के दूसरे पक्ष को भी सोच रही हूँ । यह सच है कि मैंने वे पुस्तकें पढीं नही हैं और बिना पढे ही मैंने वह राय लिखदी है लेकिन जिन्होंने पढीं हैं उनके विचारों पर भी मैं आपकी तरह भरोसा करती हूँ । उन्होंने कई प्रसंग ऐसे बताए जिन पर सवाल उठाए जासकते हैं जैसे कि सती और पार्वती विषयक । हाँ लेखन व वर्णन बेशक बहुत रोचक है । मेरा मानना है कि विचारों को नई दृष्टि दी जासकती है लेकिन कथा को तोडना-मरोडना ठीक नही । उदाहरण के लिये मैथिलीशरण जी को लें । कैकेयी का चित्रण उन्होंने इस तरह किया है कि उस पर दया व करुणा जागती है रोष या घृणा नही । पर कथा में कोई अन्तर नही । राम को उसने वनवास दिलवाया वह तथ्य वहीं स्थिर है । कोहली जी , चतुरसेन आदि ने चरित्र चित्रण बदला है न कि कथा । कई पाठकों के अनुसार अमीष जी ने यह किया है । कुछ इस तरह कि भगवान शिव की परम्परागत छवि धूमिल होती है । खैर अब मैं उन पुस्तकों को पढूँगी और देखूँगी कि उनके व आपके मत में क्या भेद है ।

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  5. बेहूदगी की हद आसानी से पार कर देते हैं यह नौसिखिया " लेखक " और कविताओं की तो खैर ऎसी तैसी कर ही रहे हैं !
    समाज और लोगों की आस्था का मज़ाक सहन नहीं होना चाहिए , इन नौजवानों के मातापिता लोक संस्कृति न सिखाने के दोषी हैं, इन मूर्खों पर लिखकर आपने इसकी मूर्खता को बेवजह महत्व दे दिया !
    मंगलकामनाएं आपको !

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  6. इस घटना को लिखने कि बजाय उस भद्र महिला का पूरा पता और चित्र भी डालिये मेरा आपसे आग्रह एक घटना रायपुर में भी इसी तरह हुई थी जिसका आदरणीय राहुल सिंह जी [ सिंहावलोकन] द्वारा विरोध दर्ज किया गया ये शर्मनाक है किसी भी का अपमान करना

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