वो जो मुश्किलों का दौर था
कुछ इस तरह से गुजर गया
कि जो साँस थी चलती रही
मेरी नब्ज़ पर वो ठहर गया ..
आँखें समन्दर हो गयीं
दिल छुप गया जाने कहाँ
वो दरअसल मेरी ज़ीस्त
मेरी दास्ताँ ही बदल गया ..
कुछ इस तरह से गुजर गया
कि जो साँस थी चलती रही
मेरी नब्ज़ पर वो ठहर गया ..
आँखें समन्दर हो गयीं
दिल छुप गया जाने कहाँ
वो दरअसल मेरी ज़ीस्त
मेरी दास्ताँ ही बदल गया ..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 13 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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