आत्मीयता से भरी बातों को
"कुरियर" के सहारे,
मुझ तक पहुँचा दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
बाकायदा निभा दिया .
विश्वास और अविश्वास के
पलड़े में
झूलता हुआ
अंतर्द्वंद,
मौसम के ढलान पर
अप्रत्याशित परिस्थितियों का
सामना करते हुए,
अपेक्षाओं के मापदंड से
फिसलता गया,
विधिवत प्रक्रियाओं को
कार्यान्वित करना,
भूलता गया
और काट-छाँटकर
निकाले हुए समय ने ,
इस लाचार मनःस्थिति को
अपराध मानकर,
अपनी बहुमूल्यता का एलान
इस अंदाज़ में
किया
कि मुजरिम बनाकर,
हमें
कठघरे में
खड़ा कर दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
अपने ढंग से निभा दिया.
"कुरियर" के सहारे,
मुझ तक पहुँचा दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
बाकायदा निभा दिया .
विश्वास और अविश्वास के
पलड़े में
झूलता हुआ
अंतर्द्वंद,
मौसम के ढलान पर
अप्रत्याशित परिस्थितियों का
सामना करते हुए,
अपेक्षाओं के मापदंड से
फिसलता गया,
विधिवत प्रक्रियाओं को
कार्यान्वित करना,
भूलता गया
और काट-छाँटकर
निकाले हुए समय ने ,
इस लाचार मनःस्थिति को
अपराध मानकर,
अपनी बहुमूल्यता का एलान
इस अंदाज़ में
किया
कि मुजरिम बनाकर,
हमें
कठघरे में
खड़ा कर दिया,
चलो अच्छा किया,
एक शिष्टाचार था
अपने ढंग से निभा दिया.
सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार
Deleteआत्मीयता भरी बातें किसी भी तरह पहुँचे, स्वागत के योग्य हैं...
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