प्रिय
जब मैं तुमसे दूर रहूँ
तुम मन-ही-मन में
मन-से-मन की
कह लेना
मैं सुन लूँगा ..
प्रिय साँझ ढ़ले
आँगन में
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना
मैं चुन लूँगा ..
प्रिय तम में
पलकों पर तुम
सुन्दर सपनों को लाना
लेकर अपनी
आँखों में
मैं बुन लूँगा ..
प्रिय
जब मैं तुमसे दूर रहूँ
तुम मन-ही-मन में
मन-से-मन की
कह लेना
मैं सुन लूँगा ..
जब मैं तुमसे दूर रहूँ
तुम मन-ही-मन में
मन-से-मन की
कह लेना
मैं सुन लूँगा ..
प्रिय साँझ ढ़ले
आँगन में
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना
मैं चुन लूँगा ..
प्रिय तम में
पलकों पर तुम
सुन्दर सपनों को लाना
लेकर अपनी
आँखों में
मैं बुन लूँगा ..
प्रिय
जब मैं तुमसे दूर रहूँ
तुम मन-ही-मन में
मन-से-मन की
कह लेना
मैं सुन लूँगा ..
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका..
Deleteबहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया ...
ReplyDeleteबहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
ReplyDeleteयहाँ हम लोगों का आना फिर से आरम्भ हुआ .. खुशी की बात ..
Deleteवाह ! होली पर प्रीत की बौछार !
ReplyDeleteकितने दिनों बाद आपको देखी .. बहुत अच्छा लगा ..
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक - 3639) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
आँचल पाण्डेय
बहुत-बहुत धन्यवाद ..
Deleteप्रीत के तार मन से मन को जोड़े रखता है।
ReplyDeleteबहुत लाजवाब रचना।
नई पोस्ट - कविता २
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआभार
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