Friday, September 11, 2009

अंगारों सी हो चुभन-जलन......

अंगारों सी हो चुभन-जलन
कुछ इधर-उधर की बातों में,
मेरा मन जब कुम्हला जाये
कुछ रातों में, कुछ प्रातों में,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना,
तुम हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।
तुम रच-बसकर इन प्राणों में,
साँसों के मध्यम तारों में,
नख से लेकर शिख तक मेरे,
पायल से बिंदी तक मेरे,
नव किसलय की पंखुरियों सी
औ’ मंद हवा के झोंकों सी,
वर्षा में भींगे किसी कुसुम की,
हर्षित-कंपित आहट सी,
तुम सघन विटप अमराई बन,
उस पल मुझपर छाया करना
या हरित तृणों के अंकुश से,
भींगी आँखों को सहलाना ।

18 comments:

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  2. तुम सघन विटप अमराई बन
    उस पल मुझ पर छाया करना

    उत्तम भावनाओं को सुन्दरता से व्यक्त
    करते हुए श्रेष्ठ विचार
    बहुत ही अच्छी नज़्म ......
    अभिवादन स्वीकारें .

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  3. चुभन कोई भी हो, वह अंगारों सा ही एहसास दिलाती है।

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    ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
    नाइट शिफ्ट की कीमत..

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  4. बहुत सुन्दर भाव भरे हैं इस रचना में

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.....

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  6. सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  7. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल आज 08 -12 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज... अजब पागल सी लडकी है .

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  8. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
    वास्तव में संगीता जी की हलचल का अनमोल मोती.

    बहुत बहुत आभार आपका.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,मृदुला जी.

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  9. वाह ...बहुत बढिया।

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  10. ये चुभन भी सहलाती सी लगी ......

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  11. बेहतरीन भावों से भरी सुंदर रचना,...बधाई
    मेरे नए पोस्ट में आपका इंतजार है,...

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  12. कोमल भावों से परिपूर्ण बहुत ही सुन्दर रचना ! हर शब्द मन पर अक्षुण्ण प्रभाव छोड़ता है ! अति सुन्दर !

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  13. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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