औंधे मुंह गिर गयी शर्म,
पल्लू बाहर
रोता था,
ध्वस्त हया की
सिसकी पर
जब ,
'कैट-वॉक' होता था.
कुछ ऐसे,कुछ वैसे
कपड़ों की
ताकत से , शायद........
मंच हिला था,
लज्जा की दीवारों पर,
कितना कीचड़
फैला था.
गीत की लय पर
वहां,
आँखों की पुतली
बोलती थी ,
धज्जियां
बेवाक फैशन की
चमक-कर,
डोलती थी,
कतरनें
फैशन-परस्ती से
बदन पर,
सज रहीं थीं,
थान-दर-थानों के
कपड़े
सरसराकर,
चल रहे थे .
पीढ़ियों की सीढ़ियों पर
रूढ़ियाँ थीं
सर झुकाए,
रेशमी पैबंद पर
ख़ामोश थीं,
धमनी-शिराएँ.
बत्तियों का था धुआं
और
शोख़ियों का
शोर था,
रोशनी के दायरों में,
चल रहा
एक होड़ था .
पारदर्शी था कोई,
बेखौफ़ था
उनका जुनून,
झिलमिलाती सलवटों पर,
रात ने
खोया सुकून.
थी कोई आंधी चली
या कि कोई,
तूफाँ रूका था,
देखता कोई ,कोई
आँखें
झुकाने में लगा था .
नए फैशन की
नुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था,
आँचल का
अभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.
Saturday, December 4, 2010
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bejod rachna
ReplyDeleteला-जवाब" जबर्दस्त!!
ReplyDeleteआदरणीय मृदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार
नए फैशन की
नुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था,
आँचल का
अभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.
.................. बेहतरीन रचना
लाजबाब रचना और उतने ही सुन्दर ‘शब्द संयोजन।
ReplyDeleteलगता है आप भी उन ऑंखें झुकाने वालों में ही शामिल होंगी, फैशन के नाम पर जो अभद्रतापूर्ण कार्यक्रम होते हैं वे किसी भी शालीन व्यक्ति को खलेंगे ही , एक सशक्त रचना के लिए बधाई!
ReplyDeleteBahut Shaandaar
ReplyDeleteनए फैशन की
ReplyDeleteनुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था,
आँचल का
अभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.
बहुत सशक्त रचना..आभार
मृदुला जीः
ReplyDeleteरैम्प पर खुले आम होता है चीर हरण
क्या स्वेच्छा से करती है द्रौपदी इसका वरण
चलती है एक ज़िंदा लाश की तरह
आँखों में पथराए भाव,
होठों पर मौत की ख़ामोशी
बाल बिखरे बेतरह..
कम से कम कपड़े
और वार्डरोब मैलफ़ंक्शन!
सच कहा है आपने
पीढियों और परम्पराओं की कुचली कोख पर
हो रहा है यह नग्न नृत्य
और कृष्ण चुपचाप देख रहा है यह कृत्य!!
बेहद उम्दा रचना आज के सच को दर्शाती हुई।
ReplyDeleteआपने तो सारा पोल खोल कर रख दिया है। एक बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteनए फैशन की
ReplyDeleteनुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था,
आँचल का
अभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.
Aisahee chalta aa raha hai...chalta hee rahega! Ham aap sharm saar ho aankhen jhuka lenge,tamasha khuleaam chaltaa hee rahega.
फैशन शो का जीवंत चित्रण।
ReplyDelete---------
ईश्वर ने दुनिया कैसे बनाई?
उन्होंने मुझे तंत्र-मंत्र के द्वारा हज़ार बार मारा।
पहली बार आपकी रचनाएं पढ़ीं.
ReplyDeleteफैसन शो का चित्रण अच्छा लगा.
आपका हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय मृदुला जी ....
ReplyDeleteथी कोई आंधी चली
या कि कोई,
तूफाँ रूका था,
देखता कोई ,कोई
आँखें
झुकाने में लगा था .
नए फैशन की
नुमायश पर
नया ,
नग़मा बजा था
सच्चाई को आमने लाकर रख दिया आपने ...बेहद प्रभावी पंक्तियाँ ...शुक्रिया
फैशन के नाम पर जो हो रहा है उस पर सटीक रचना ..
ReplyDeleteवाह सुन्दर रचना है! मुझे काका हाथरसी की वो पंक्तियां याद आ रही हैं:
ReplyDelete’यदि अंग प्रदर्शन ही फ़ैशन है!
तो हम बहुत अभागे है,
जानवर इस दौड में,
हम से बहुत आगे है!’
Waah !
ReplyDeleteफैशन पर गहरा कटाक्ष . शब्द मोती की माला में लग रहा है पिरोया हुआ . सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना.... सुंदर और सार्थक...
ReplyDeleteअद्भुत व्यंग्य
ReplyDeleteसच पूछिए तो हाल में वो तालियाँ किसिस तमाचे से कम नहीं, बस फर्क समझने का है.....
हम उन तमाचों को तालिय समझते हैं....
बहुत सुन्दर मृदुला जी .अनोखा अंदाज ..खूबसूरत प्रस्तुति.
ReplyDeleteपर कौन कररहा है यह सब, क्यों कबतक--?? सोचने का मुद्दा तो यह है---सिर्फ़ कहने का नही...
ReplyDelete" ध्वस्त हया की
ReplyDeleteसिसकी पर......... "
वाह! बहुत सटीक लिखा है ...
सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सटीक चित्रण. लाजवाब, अच्छा विश्लेषण. हालाँकि मेरे बच्चे इसी फील्ड में हैं
ReplyDelete'aanchal ka
ReplyDeleteabhiman kuchalkar
hall
taliyon se goonja tha'
fashion ke naam par ho rahe angpradarshan par marmik kavita...
मृदुला जी,
ReplyDeleteबधाई आपको इस रचना पर ......ऐसा लिखने का माद्दा बहुत कम लोग रखते हैं......बहुत बेबाक और तीखा व्यंग्य है आपकी इस रचना में.....वाह बहुत सुन्दर|
फैशन शो को साख्शात दिखा दिया शब्दों के माध्यम से आपने ... इसमें फैली गंदगी और हलके एहसास को लोग मज़े ले कर देखते हैं .. ये आज का दौर है ..
ReplyDeleteक्या खूबसूरती से भाव प्रकट किये हैं आपने.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लगा पढ़ के..
आभार
bhut khoob
ReplyDeleteकविता थी कि कड़ी बात कोई
ReplyDeleteदिल को जा चुभी थी
इन शब्दों की नुकीली धार
मेरे सीने में जा घुसी थी....
शब्द तेरे थे बेशक मृदला
मगर बात सबके पते की थी....!!
अच्छी कविता ! शायद आज हम इसे आधुनिकता मानते हैं ! मैं आप के ब्लोग को फ़ोलो कर रह हूं १ कृप्या मेरे ब्लोग को फ़ोलो करें !
ReplyDeleteआप तो बहुत सुन्दर लिखती हैं...बधाई.
ReplyDelete______________
'पाखी की दुनिया' में छोटी बहना के साथ मस्ती और मेरी नई ड्रेस
फैशन शो... किसी की चाहत अलग, किसी की अलग । लेकिन इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की ऐसे फैशन शो में बार-बार की पुनरावृत्ति इसकी आकस्मिकता पर प्रश्नचिन्ह अवश्य लगाती है.
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा रहेगी...
www.najariya.blogspot.com नजरिया
आँचल का
ReplyDeleteअभिमान कुचलकर,
'हॉल'
तालियों से गूँजा था.
फैशन शो की धज्जियां उडाती आपकी कविता तालियों की हकदार है .....!!
very nice...fashion show ka vrnan karte hue ek rochak kavita....thanks a lot for this excellent post...
ReplyDeletenice poem,
ReplyDeletelovely blog.
बढ़िया लिखती हो ...भविष्य में पढने के लिए अनुसरण कर रहा हूँ ...शुभकामनायें !
ReplyDeleteसही कहा है आपने...फैशन और आधुनिकता के नाम पर इंसान क्या कुछ नहीं कर डालता..आधुनिक विचारधारा अलग चीज़ है और उसका अन्धानुकरण अलग चीज़...आज का व्यक्ति अन्धानुकरण तो करता है पर विचारधारा संकुचित हो जाती है जब उसका प्रतिफल मिलने लगता है तब...हम सब शायद उनमे से ही एक हैं....सुंदर चित्रण....
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति...