Thursday, May 5, 2011

आइये 'कॉमन वेल्थ गेम'........

आपलोगों के इच्छानुसार इसके पहलेवाली मैथिली कविता का हिंदी अनुवाद (थोड़ी-बहुत हेर-फेर के साथ).

आइये 'कॉमन वेल्थ गेम'
आइये,
सब लगे हैं आपकी
ख़ातिरदारी में,
कुछ हमें भी तो
बताइए .
आपकी खुराक,
हमारे जैसे
अज्ञानियों की
समझ से,
बाहर हों गयी है,
सच मानिए,
हर तरफ़
सनसनी
फ़ैल गयी है .
स्वागत की थाली में,
क्या -क्या परोसा गया,
सोच-सोच कर,
दिमाग डोल गया .
इतना कौन ले   सकता है?
परसन पर परसन,
परसन पर परसन
जैसा आप लेते रहे,
बलिहारी है,
आपके सामर्थ्य की,
गाली सुन- सुन कर,
जीमते रहे .
आपकी भोजन-शैली
देखकर,
हम चकित रह जाते हैं,
कहिये तो......
इतना कैसे पचाते हैं?
इंग्लैंड की महारानी के,
खास 'अर्दली' बनकर आये,
जहाँ छूरी-कांटा से
काट - छांट कर,
'नैपकिन' से होंठ
पोछ-पोछ कर,
नफ़ासत के साथ,
छोटे-छोटे ग्रास
खाने की प्रथा है,
आप दोनों हाथ से
लगातार,
निरंकुश व्यभिचारी की तरह
खा रहे हैं,
दूसरे देश में आकर,
कितने
निर्लज्ज हों रहे हैं .
अनपच,अजीर्ण, अफारा,
चालीस करोड़ के
गुव्वारा से
मात हों गया,
ऐसी पाचन-शक्ति,
देखनेवाला
गश खा गया.
बुद्दिजीवी नि:सहाय,
जनता निरुपाय,
बता दीजिये 'कॉमन वेल्थ गेम',
कुल मिलाकर,
कितना खाए?
इठलाते हुए,जवाब आया.......
धैर्य रखिये,
अंतिम चरण है,
अब तो बस,
मधुरेन समापयेत.
कुछ खायेंगे,
कुछ साथ ले जायेंगे,
 हँसते-खेलते
निकल जायेंगे,
और
यहाँ आपलोग.........
हिसाब लगाते रहिये,
बही-खाता
मिलाते रहिये,
अतिथि देवो भव:
गाते रहिये
और
कुछ नहीं हो
तो ..............बस
जय हो !           
जय हो !
गुनगुनाते  रहिये.





20 comments:

  1. जी अब हिंदी रूपांतर समझ में आया,बहुत अच्छा लिखा है आपने.

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  2. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

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  3. अरे वाह ..मृदुला जी ..!!
    इसका असली स्वाद तो अब आया ...!!बहुत अच्छा लिखा है |एकदम सटीक ..एक एक शब्द सही है ...!!

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  4. जय हो!
    जय हो!!
    बहुत सुंदर कविता।

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  5. वाह! बहुत अच्छी खबर ली है आपने जनाब की!

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  6. अंतिम चरण है,
    अब तो बस,
    मधुरेन समापयेत.
    कुछ खायेंगे,
    कुछ साथ ले जायेंगे,
    हँसते-खेलते
    निकल जायेंगे,
    और
    यहाँ आपलोग.........
    हिसाब लगाते रहिये,
    बही-खाता
    मिलाते रहिये,
    अतिथि देवो भव:
    गाते रहिये ... jai ho...

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  7. बहुत सटीक ,सार्थक और सलीके की धारदार व्यंग्य रचना ....

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  8. अब तो बस,
    मधुरेन समापयेत.
    कुछ खायेंगे,
    कुछ साथ ले जायेंगे,
    हँसते-खेलते
    निकल जायेंगे,
    और
    यहाँ आपलोग.........
    हिसाब लगाते रहिये,
    बही-खाता
    मिलाते रहिये,


    रचना सुन्दर है ... और बात भी सही है ... आम आदमी कर ही क्या सकता है ... जिसको जितना खाना होता है खाके डकार तक नहीं लेता है

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  9. मृदुला जी आपने तो सच्चाई वयां कर दी रचना के माध्यम से और हमने कहा वाह वाह .....

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  10. बहुत सटीक
    बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये रचना ।

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  11. बेहद प्रभावशाली प्रश्तुती बधाई

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  12. yeh rachna dono hi bhasha me rochak lagi.achchi haasya ka put dete hue vyangatmak rachna sarrhniye hai.

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  13. translation और मूल रचना दोनों ही कमाल की CWG means common wealth घोटाला...

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  14. बिल्‍कुल सच कहा है इस रचना में आपने ...।

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  15. मृदुला जी!
    इतनी भर्त्सना के बाद जिन दोनों हाथों से उन्होंने खाया, उसी हाथ से चुल्लू बनाकर उसमें पानी भर कर डूब मरना चाहिए..

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  16. अच्छा किया अन्यवाद कर के ... अब ज़्यादा आबाद ले सकते हैं इस व्यंग का ..

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  17. वृद्ध होती जा रही.......
    असमर्थ ममता,
    मांगतीं हैं
    उँगलियाँ, मेरी
    पकड़ने के लिए
    और मुझको वहम है
    कि
    उँगलियाँ मेरी
    बड़ी अब,
    हो गयीं हैं.

    मृदुला जी इस तरह की छोटी क्षणिकायें हो तो भेजिएगा सरस्वती-सुमन पत्रिका के लिए ....
    अपने रचिचाये व तस्वीर के साथ .....

    harkirathaqeer@gmail.com

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  18. वाह !क्या बात है !
    बहुत बढ़िया !

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  19. बहुत अच्छी रचना ...सटीक व्यंग

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