आपलोगों के इच्छानुसार इसके पहलेवाली मैथिली कविता का हिंदी अनुवाद (थोड़ी-बहुत हेर-फेर के साथ).
आइये 'कॉमन वेल्थ गेम'
आइये,
सब लगे हैं आपकी
ख़ातिरदारी में,
कुछ हमें भी तो
बताइए .
आपकी खुराक,
हमारे जैसे
अज्ञानियों की
समझ से,
बाहर हों गयी है,
सच मानिए,
हर तरफ़
सनसनी
फ़ैल गयी है .
स्वागत की थाली में,
क्या -क्या परोसा गया,
सोच-सोच कर,
दिमाग डोल गया .
इतना कौन ले सकता है?
परसन पर परसन,
परसन पर परसन
जैसा आप लेते रहे,
बलिहारी है,
आपके सामर्थ्य की,
गाली सुन- सुन कर,
जीमते रहे .
आपकी भोजन-शैली
देखकर,
हम चकित रह जाते हैं,
कहिये तो......
इतना कैसे पचाते हैं?
इंग्लैंड की महारानी के,
खास 'अर्दली' बनकर आये,
जहाँ छूरी-कांटा से
काट - छांट कर,
'नैपकिन' से होंठ
पोछ-पोछ कर,
नफ़ासत के साथ,
छोटे-छोटे ग्रास
खाने की प्रथा है,
आप दोनों हाथ से
लगातार,
निरंकुश व्यभिचारी की तरह
खा रहे हैं,
दूसरे देश में आकर,
कितने
निर्लज्ज हों रहे हैं .
अनपच,अजीर्ण, अफारा,
चालीस करोड़ के
गुव्वारा से
मात हों गया,
ऐसी पाचन-शक्ति,
देखनेवाला
गश खा गया.
बुद्दिजीवी नि:सहाय,
जनता निरुपाय,
बता दीजिये 'कॉमन वेल्थ गेम',
कुल मिलाकर,
कितना खाए?
इठलाते हुए,जवाब आया.......
धैर्य रखिये,
अंतिम चरण है,
अब तो बस,
मधुरेन समापयेत.
कुछ खायेंगे,
कुछ साथ ले जायेंगे,
हँसते-खेलते
निकल जायेंगे,
और
यहाँ आपलोग.........
हिसाब लगाते रहिये,
बही-खाता
मिलाते रहिये,
अतिथि देवो भव:
गाते रहिये
और
कुछ नहीं हो
तो ..............बस
जय हो !
जय हो !
गुनगुनाते रहिये.
आइये 'कॉमन वेल्थ गेम'
आइये,
सब लगे हैं आपकी
ख़ातिरदारी में,
कुछ हमें भी तो
बताइए .
आपकी खुराक,
हमारे जैसे
अज्ञानियों की
समझ से,
बाहर हों गयी है,
सच मानिए,
हर तरफ़
सनसनी
फ़ैल गयी है .
स्वागत की थाली में,
क्या -क्या परोसा गया,
सोच-सोच कर,
दिमाग डोल गया .
इतना कौन ले सकता है?
परसन पर परसन,
परसन पर परसन
जैसा आप लेते रहे,
बलिहारी है,
आपके सामर्थ्य की,
गाली सुन- सुन कर,
जीमते रहे .
आपकी भोजन-शैली
देखकर,
हम चकित रह जाते हैं,
कहिये तो......
इतना कैसे पचाते हैं?
इंग्लैंड की महारानी के,
खास 'अर्दली' बनकर आये,
जहाँ छूरी-कांटा से
काट - छांट कर,
'नैपकिन' से होंठ
पोछ-पोछ कर,
नफ़ासत के साथ,
छोटे-छोटे ग्रास
खाने की प्रथा है,
आप दोनों हाथ से
लगातार,
निरंकुश व्यभिचारी की तरह
खा रहे हैं,
दूसरे देश में आकर,
कितने
निर्लज्ज हों रहे हैं .
अनपच,अजीर्ण, अफारा,
चालीस करोड़ के
गुव्वारा से
मात हों गया,
ऐसी पाचन-शक्ति,
देखनेवाला
गश खा गया.
बुद्दिजीवी नि:सहाय,
जनता निरुपाय,
बता दीजिये 'कॉमन वेल्थ गेम',
कुल मिलाकर,
कितना खाए?
इठलाते हुए,जवाब आया.......
धैर्य रखिये,
अंतिम चरण है,
अब तो बस,
मधुरेन समापयेत.
कुछ खायेंगे,
कुछ साथ ले जायेंगे,
हँसते-खेलते
निकल जायेंगे,
और
यहाँ आपलोग.........
हिसाब लगाते रहिये,
बही-खाता
मिलाते रहिये,
अतिथि देवो भव:
गाते रहिये
और
कुछ नहीं हो
तो ..............बस
जय हो !
जय हो !
गुनगुनाते रहिये.
जी अब हिंदी रूपांतर समझ में आया,बहुत अच्छा लिखा है आपने.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteअरे वाह ..मृदुला जी ..!!
ReplyDeleteइसका असली स्वाद तो अब आया ...!!बहुत अच्छा लिखा है |एकदम सटीक ..एक एक शब्द सही है ...!!
जय हो!
ReplyDeleteजय हो!!
बहुत सुंदर कविता।
bahut khoob...jai ho......:))
ReplyDeleteवाह! बहुत अच्छी खबर ली है आपने जनाब की!
ReplyDeleteअंतिम चरण है,
ReplyDeleteअब तो बस,
मधुरेन समापयेत.
कुछ खायेंगे,
कुछ साथ ले जायेंगे,
हँसते-खेलते
निकल जायेंगे,
और
यहाँ आपलोग.........
हिसाब लगाते रहिये,
बही-खाता
मिलाते रहिये,
अतिथि देवो भव:
गाते रहिये ... jai ho...
बहुत सटीक ,सार्थक और सलीके की धारदार व्यंग्य रचना ....
ReplyDeleteअब तो बस,
ReplyDeleteमधुरेन समापयेत.
कुछ खायेंगे,
कुछ साथ ले जायेंगे,
हँसते-खेलते
निकल जायेंगे,
और
यहाँ आपलोग.........
हिसाब लगाते रहिये,
बही-खाता
मिलाते रहिये,
रचना सुन्दर है ... और बात भी सही है ... आम आदमी कर ही क्या सकता है ... जिसको जितना खाना होता है खाके डकार तक नहीं लेता है
मृदुला जी आपने तो सच्चाई वयां कर दी रचना के माध्यम से और हमने कहा वाह वाह .....
ReplyDeleteबहुत सटीक
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी आपकी ये रचना ।
बेहद प्रभावशाली प्रश्तुती बधाई
ReplyDeleteyeh rachna dono hi bhasha me rochak lagi.achchi haasya ka put dete hue vyangatmak rachna sarrhniye hai.
ReplyDeletetranslation और मूल रचना दोनों ही कमाल की CWG means common wealth घोटाला...
ReplyDeleteबिल्कुल सच कहा है इस रचना में आपने ...।
ReplyDeleteमृदुला जी!
ReplyDeleteइतनी भर्त्सना के बाद जिन दोनों हाथों से उन्होंने खाया, उसी हाथ से चुल्लू बनाकर उसमें पानी भर कर डूब मरना चाहिए..
अच्छा किया अन्यवाद कर के ... अब ज़्यादा आबाद ले सकते हैं इस व्यंग का ..
ReplyDeleteवृद्ध होती जा रही.......
ReplyDeleteअसमर्थ ममता,
मांगतीं हैं
उँगलियाँ, मेरी
पकड़ने के लिए
और मुझको वहम है
कि
उँगलियाँ मेरी
बड़ी अब,
हो गयीं हैं.
मृदुला जी इस तरह की छोटी क्षणिकायें हो तो भेजिएगा सरस्वती-सुमन पत्रिका के लिए ....
अपने रचिचाये व तस्वीर के साथ .....
harkirathaqeer@gmail.com
वाह !क्या बात है !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया !
बहुत अच्छी रचना ...सटीक व्यंग
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