यह कोई लेन-देन का
कारोबार नहीं,
नफ़ा-नुकसान
इसका आधार नहीं,
निःस्वार्थ प्रेम
माँ के आँचल का
खज़ाना है,
यह स्नेह का
बंधन है,
व्यापार नहीं.
मेरे दोस्त.......
कभी उँगलियों पर
मत गिनना,
इसकी
तौहिनी होती है,
यह ममता की
अनुभूति है,
बस......
मन में सोती है.
और पिता........
हर उम्र में पिता
बच्चे के
मन से कहीं ज़्यादा,
दिमाग में ठहरता है
और दिमाग
मन की तरह,
अँधा
नहीं होता.
विश्लेषण करता रहता है,
सोचता रहता है,
खोजता रहता है
और
इस प्रक्रिया में,
पिता से प्यार
बढ़ता रहता है.......
बहुत अच्छा सन्देश देती कविता.
ReplyDeleteसादर
हमेशा की तरह बेहतरीन भावप्रधान कविता, पारिवारिक संस्कारों को भावप्रवण तरीके से निखारती, मृदुला जी बधाई, सामयिक साहित्यक रचना के लिए.
ReplyDeleteभावना प्रधान सुन्दर रचना ...लेकिन भले ही माँ का प्यार अंधा होता हो मुझे लगता है कि हर बच्चा माँ से ज्यादा प्यार करता है :):) या यह भी हो सकता है कि मेरी बात अंधे प्यार की ही निशानी हो :):
ReplyDeleteपिता से प्यार बढ़ते रहने की गुंजाइश शेष रहती है पर माँ से तो अधिकतम पहले से ही होता है...बधाई इस भावपूर्ण रचना के लिये !
ReplyDeletedil se likhee paripakv soch kee behtareen abhivykti.
ReplyDeleteसचिन ने क्रिकेट में रिकार्ड तोड़ा, अन्ना हजारे ने अनशन तोड़ा, प्रदर्शन-कारियों रेलवे-ट्रैक तोड़ा, विकास-प्राधिकरण ने झुग्गी झोपड़ियों को तोड़ा। हमारे नेताओं ने जनता का दिल तोड़ा। अनेक लोगों ने लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अपने-अपने तरीके से बहुत कुछ तोड़ा है। तोड़ा-तोड़ी की परंपरा हमारे देश में सदियों पुरानी है। आपने कुछ तोड़ा नहीं अपितु माँ-पिता की ममता से उनकी संतानों को जोड़ा है। आपने साहित्यकार का हृदय पाया है। इस प्रेम, करुणा और ममत्व को बनाए रखिए। भद्रजनों के जीवन की यही पतवार है। आपकी रचना का यही सार है। साधुवाद!
ReplyDelete=====================
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर संदेश देती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteप्यार तो माता पिता दोनो से ही होता है ... सुंदर भाव संजोए अहीं रचना में ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण और सार्थक रचना...
ReplyDeleteसारगर्भित तुलना प्रस्तुत की है इन पंक्तिओं में।
ReplyDeleteप्रेम तो दिल और दिमाग दोनो से होता है
दिल अंधा नहीं आस्थावान होता है।
दिमाग़ व्यापारी नहीं विवेकवान होता है
भावपूर्ण तथा सारगर्भित रचना है.
ReplyDeletegyan vardhak rachna....
ReplyDeleteमन को छू लेने वाली रचना।
ReplyDeleteकई बार ऐसा लिख देते हो की समझने के लिए टैम नहीं होता .....क्या करें ?
ReplyDeleteहम तो बाद में फिर पढेंगे ! शुभकामनायें !
यह बहुत अधिक नहीं समझ सका ....फिर भी बच्चे का हक़ दोनों पर होना चाहिए ...
ReplyDeleteनिस्संदेह पिता , माँ के स्नेह और प्यार का मुकाबला नहीं कर सकता और हर बच्चा देर सबेर इसे जानता है !
बाय द वे, आप कह क्या रही हैं ?? ( नाराज नहीं होना ) !
आपके अच्छे दिल के लिए हार्दिक शुभकामनायें !
बस यही रिश्ते हैं जिनमें लेनदेन नहीं होता लेकिन अब तो उसका कोई मोल भी नहीं समझता है. माँ ने जो किया उसका फर्ज था और पिता ने जो किया उसका फर्ज था. बेटे भी अपने फर्ज निभा रहे हैं. फिर क्या लेना और क्या देना?
ReplyDeleteयही शेष रह गया है.
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
ReplyDeleteमेरे दोस्त.......
ReplyDeleteकभी उँगलियों पर
मत गिनना,
इसकी
तौहिनी होती है,
यह ममता की
अनुभूति है,..mamtamayee pyar ko nahi tola ja sakta, nahi ungliyon mein gina jaa sakta hai... bahut badiya bhavpurn rachna
जीवन में ये दोनों ही संतान को सच्चे अर्थ में इंसान बनाते हैं
ReplyDeleteयदि सफलतापूर्वक बना पाए तो....!!
एक भाव प्रधान तो दूसरा विवेक प्रधान है
और जिन्दगी में इन दोनों का बैलेंस बहुत जरूरी है !
बहुत सुन्दर...!
maatr prem pitrprem dono ho aadhar hai ek bchche ko safal banane ke liye.pyar to dono barabar karte hain.fark itna hai ki maa ka pyaar bachche ke liye poorntah bhaavnatmak hota hai jab ki pita ka pyaar bhavnaaon ke saath vyavharik bhi hota hai.yahi aapki is kavita ka bhavarth hai.bahut achcha likha hai .badhaai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति.धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण और सार्थक रचना...
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Hearwarming !Loved it .
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteऐ अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया,
ReplyDeleteमां ने आंखे खोल दी घर में उजाला हो गया।
भावपूर्ण रचना, बहुत बहुत बधाई
BAHUT SUNDER BHAV BHARI RACHNA
ReplyDeleteMATA KE SNEH KA KOI SANI NAHI
BADHAI
RACHANA
बहुत सुन्दर भावपूर्ण और सार्थक रचना| धन्यवाद|
ReplyDeletenice analysis...
ReplyDeleteभावपूर्ण शव्द चित्र.
ReplyDeletewaah mridula ji , pita se pyar badhta rahta hai , bahut khoob
ReplyDeleteयह कोई लेन-देन का
ReplyDeleteकारोबार नहीं,
नफ़ा-नुकसान
इसका आधार नहीं,
निःस्वार्थ प्रेम
माँ के आँचल का
खज़ाना है,
यह स्नेह का
बंधन है,
व्यापार नहीं.
मेरे दोस्त.......
wah ! niswaarth kya prem to sirf prem hota hai
jahaan swarth ho wahaan prem ka kya kaam
prem ki achchhi paribhaasha bataai hai aapne
badhaai sweekar karen
टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति , बधाई ....
ReplyDeleteदिल और दिमाग कि लड़ाई चलती रहती है...दिमाग वाले दुनिया जीतते हैं और दिल वाले इंसान...इसीलिए शायद माँ की ममता के आगे बाप की बापता हार जाती है...
ReplyDeleteShabd bhi kam par jaate hain...man ke liye...
ReplyDelete"नीम की डालों से हम,
ReplyDeleteपर्दा करेगें.
पतझड़ों में सूखकर
पीले हुए पत्ते,
ओसारे-'लान' पर जब
आ बिछेगें,
सरसराहट सी उठेगी,
हवा सरकायेगी जब-तब,
मर्मरी आवाज"
आपकी सभी कविताओं में बहुत गहन अवलोकन है । एक से एक बढकर हैं सारी कविताएं । बधाई और धन्यवाद ।