परिस्थितियां बदल जातीं हैं लेकिन कवितायेँ,
जब जिस मनःस्थिति में,जिस परिवेश में लिखी जातीं हैं,उसी रूप में जिंदा रह जातीं हैं........उनके भाव कभी नहीं बदलते ,
यही सोचकर आज यहाँ एक पुरानी कविता उस समय की ........
जब आसमान नीला होता था ,पानी का रंग पन्ने जैसा ,रूबी जैसा मन रहता था.....
अलसुबह हम
मानसर की झील में
कल्लोल कर ,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप,गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रिंखलों पर
उत्तंग पर्वत श्रिंखलों पर
बैठकर
बातें करेंगे,
बोलो प्रिय ,
कब हम चलेंगे ....
शाम को
पर्वत की पगडण्डी से
होकर,
दूर तक जाकर
मुड़ेंगे,
वापसी में
और
हम,हर मोड़ पर
थक कर ज़रा
रुक कर चलेंगे,
उस रात को हम,
चांदनी में,
भींगकर ,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर .....
मानसर की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप,गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रिंखलों पर
बैठकर
बातें करेंगे,
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे......
श्रृंगार की, प्रेम रंग में रँगी बहुत ही मनमोहक रचना ...
ReplyDeleteमन के कोमल भाव और कल्पनाओं की सुन्दरता ....सहज प्रवाहयुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...दर्शनीय है
स्मृतियों और कल्पनाओं के अदभुत संयोजन के बीच संस्कृत निष्ठ भाषा के माध्यम से एक मन मोहक दृश्य प्रस्तुत करती कविता !
ReplyDeleteगिरि-खंड के ओटों में
ReplyDeleteछुप,गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रीखलों पर
बैठकर
बातें करेंगे,
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे......
haan to kab jaa rahi hain?
उस रात को हम,
ReplyDeleteचांदनी में,
भींगकर ,जगकर-जगाकर,
ओस की बूँदें
हथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर .....
मन के कोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ..
बहुत ही मनभावन रचना...भावों और शब्दों का अद्भुत सामंजस्य..आभार
ReplyDeleteKAVITA ke bhavoin ka shringaar aapne sundar shabdoin se kiya hai....mann ko chu gayee...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
अति कोमल अनुभूति से मन को पुलकित करने वाली रचना की प्रस्तुति के लिए-बधाई।
ReplyDelete=======================
मैंने जब कभी श्रंगार रस की रचनाओं को लिखने का प्रयास किया वे गड़बड़ा गईं। पुरानी कापी में दर्ज एक मुक्तक साझा कर रहा हूँ।
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प्यार का मौसम सुहाना हूँ।
रोज मिलने का बहाना चाहता हूँ॥
कई दिन से नल में था,पानी नहीं-
आज आया है, नहाना चाहता हूँ॥
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सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
अलसुबह फिर .....
ReplyDeleteमानसर की झील में....
kitne pyare se shabd hain..:)
अलसुबह फिर .....
ReplyDeleteमानसर की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप,गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रीखलों पर
बैठकर
बातें करेंगे,
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे......
Bahut hi sundar shabdon ka chayan , behatreen rachna.
.
बढ़िया रचना है , आपको हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeletekalpnaaon ke saagar me doobkar likhi is kavita ko salam.bahut sukomal rochak rachna.
ReplyDeleteबहुत ही मनभावन रचना
ReplyDeleteअहसास का खूबसूरत बयान...
ReplyDeleteप्रेम से सराबोर भावपूर्ण कविता...
ReplyDeleteकल्पनाओं मे ही आदमी कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है यथार्थ मे कब पहुँच पाता है। अच्छी भावमय रचना। बधाई।
ReplyDeleteसुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ...मन के भावों को जस का तस लिख दिया है ..
ReplyDeleteवाह प्रेममयी मर्मस्पर्शी मनुहार जो मन को छू गयी...बहुत ही सुन्दर रचना...
ReplyDeleteकोमल भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteneh ki sunder prastuti .bahut hi sajeev likha hai .baeth ke baten jaroor jarenge .
ReplyDeleterachana
जीवन की आपा-धापी में यह एहसास भी कितना सुकून देता है ! वाकई एक ह्रदय स्पर्शी कविता . आभार.
ReplyDeleteओस की बूँदें
ReplyDeleteहथेली में भरेंगे,
अलसुबह फिर .....
भावमय रचना। बधाई।
sunder rachna likhi hai mridula ji
ReplyDeleteman ke bhavon ko kavita ki lines me bahut sundar dhang se bandha hai aapne.
ReplyDeleteक्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeletekomal see rachna..bahut sundar
ReplyDeletenascent thoughts...
ReplyDeletejagmagate heeron kee kaniyaon ko fir chunenge
ReplyDeleteमानसर की झील में
कल्लोल कर,
गिरि-खंड के ओटों में
छुप,गातें सुखाकर,
उत्तंग पर्वत श्रीखलों पर
बैठकर
बातें करेंगे,
बोलो प्रिय,
कब हम चलेंगे......
Wakaee kab ja raheen hain . Behad sunder prastuti.
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteaapke blog per aaj pehli baar aaye hai sabhi kavitayein ucch koti ki hai
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