Wednesday, September 14, 2011

तमाम परेशानियों को........

तमाम परेशानियों को
करके नज़र-अंदाज़,
आज बस
तुम्हें ही,
याद करने को
जी चाहा है.......
तेरी यादों में
यूँ खोयी....
कब शुरू किया,
कब ख़त्म,
मुझे
कुछ याद नहीं ........ 

21 comments:

  1. यादें कभी खत्म भी हुई हैं क्या...जिसका न आदि है न अंत है वही तो असली याद है...

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  2. तुम्हें ही,
    याद करने को
    जी चाहा है.......वाह!बहुत ही सुन्दर....

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  3. तेरी यादों में
    यूँ खोयी....
    कब शुरू किया,
    कब ख़त्म,
    मुझे
    कुछ याद नहीं .......gahre khyaal khoobsurat se

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  4. Mridula Pradhan ji

    sundar rachna ke liye badhai sweekaren.
    मेरी १०० वीं पोस्ट , पर आप सादर आमंत्रित हैं

    **************

    ब्लॉग पर यह मेरी १००वीं प्रविष्टि है / अच्छा या बुरा , पहला शतक ! आपकी टिप्पणियों ने मेरा लगातार मार्गदर्शन तथा उत्साहवर्धन किया है /अपनी अब तक की " काव्य यात्रा " पर आपसे बेबाक प्रतिक्रिया की अपेक्षा करता हूँ / यदि मेरे प्रयास में कोई त्रुटियाँ हैं,तो उनसे भी अवश्य अवगत कराएं , आपका हर फैसला शिरोधार्य होगा . साभार - एस . एन . शुक्ल

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  5. गहरे भाव लिए काव्य ! बधाई

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  6. स्थिति कुछ-कुछ तेरी
    मेरे जैसी लगती है सखी..
    कब वो मेरे,मैं कब उनकी
    जान न पायी अब तक सखी...!!

    ***punam***
    bas yun...hi...

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  7. बहुत सुंदर मृदुला जी .. ..बेहद अर्थपूर्ण पंक्तियाँ हैं....

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  8. यादें होती ही ऐसी हैं कि उनमें डूबने के बाद इंसान उन पलों को पुनः जीने लगता है!! कम शब्दों में गहरे भाव समाहित हैं!!

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  9. ये तो अक्सर होना चाहिए .. और हर समय हो तो जीवन में बस प्रेम ही प्रेम हो ...

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  10. यादों में बड़ा दम है...उनके जाने से कुछ परेशानियाँ कम भी तो हुईं होंगी...

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  11. बढ़िया.पढ़कर अच्छा लगा.

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  12. बहुत सुंदर याद पर बात।

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