प्रत्युष का स्नेहिल स्पर्श
पाते ही,
हरसिंगार के निंदियाये फूल,
झरने लगते हैं
मुंह अँधेरे,
वन-उपवन की
अंजलियों में
ओस से नहाया हुआ
सुवास,
करने लगता है
अठखेलियाँ
आह्लाद की,
पत्तों की सरसराहट
रस-वद्ध रागिनी
बनकर,
समा जाती हैं
दूर तक .......
हवाओं में,
गुनगुनी सी धूप
आसमान से उतरकर
आसमान से उतरकर
कुहासे को बेधती हुई
बुनने लगती है
बुनने लगती है
किरणों के जाल,
तितलियाँ पंखों पर
अक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
और
धरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का.
कल 06/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteमोहक कविता है शीत के प्रथम स्पर्श सी ही !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...विजयादशमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteशीत दस्तक देने लगी है.. शरद की मनमोहक सुबह का सुंदर चित्रण !
ReplyDeleteवाह वाह कितना खूबसूरत स्वागत किया है।
ReplyDeletesheet aagman kaa sundar varnan
ReplyDeleteगुनगुनी सी धूप
ReplyDeleteआसमान से उतरकर
कुहासे को बेधती हुई
बुनने लगती है
किरणों के जाल,
तितलियाँ पंखों पर
अक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
और
धरती,
मुखर मुस्कान की
थिरकन पर
झूमती हुई,
स्वागत करती है........
शीत के
प्रथम स्वर का... swaagat hai is ehsaas ka
sheet ritu ki yaad dilati sunder abhivyakti.
ReplyDeleteबहुत खूब ... जिंदगी स्वागत करती है शीत के स्पर्श का .. कितना ताज़ा स्पर्श ...
ReplyDeleteVery nice written Mridula Ji..
ReplyDeleteThanks and regards !
Happy Durga Puja....
ढेर सारी शुभकामनायें.
ReplyDeleteतितलियाँ पंखों पर
ReplyDeleteअक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण
सुन्दर रचना....
ReplyDeleteप्रत्युष का स्नेहिल स्पर्श
ReplyDeleteपाते ही,
हरसिंगार के निंदियाये फूल,
झरने लगते हैं....
जाने क्या संयोग है.... सुबह सुबह देखा कि ऐसे उत्सवी माहौल में खडा हूँ जहाँ चारों दिशाओं से हरसिंगार के पुष्पों की वर्षा हो रहीं है....
आपकी कविता पढकर मन उसी सुगन्धित स्वप्न का सूत्र पुनः पकड़ने का यत्न करने लगा....
बहुत सुन्दर भाव/रचना... वाह!
विजयादशमी की सादर बधाईयां...
सुंदर और मनमोहक रचना ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत.......जैसे द्वार ख़ुशी के खोल गया कोई.........
ReplyDeletekhubsurat rachna...
ReplyDeleteआपकी कविता पढते हुए एहसास कविता के शब्दों से निकलकर आस-पास बिखर जाते हैं.. जैसे ये शीत की सिहरन, इस कविता के माध्यम से!!
ReplyDeleteबेहतरीन कविता
ReplyDeleteविजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
हरसिंगार मेरे प्रिय फूल हैं सुबह सुबह पारिजात के वृक्ष के नीचे जो गलीचा सा बिछता है उसका सुख केवल अनुपम है । आपकी कविता ने एक बार फिर उस अहसास को ताजा कर दिया ।
ReplyDeleteअभी अभी अपने गाँव से लौटा हूं. हरसिंगार के दो पेड़ उड्हुल के साथ दालान पर हैं. शरद के प्रारंभ में ओस की सेज पर बिछे हरसिंगार प्रतीक्षा करती प्रेमिका से लगते हैं. सुन्दर कविता.
ReplyDeleteप्रकृति का खूबसूरत चित्रण ....
ReplyDeleteशीत दस्तक देने लगी है.
ReplyDeletegood welcome of coming winter.
मौसम ले रही है करवट और आपने उसके स्वागत की इस रचना के माध्यम से पूरी तैयारी कर दी है।
ReplyDeleteआसमान से उतरकर
ReplyDeleteकुहासे को बेधती हुई
बुनने लगती है
किरणों के जाल,
तितलियाँ पंखों पर
अक्षत, चन्दन,रोली लिए
करती हैं द्वारचार
bhut hi achchi panktiyan.thanks.
ब्लॉग बुलेटिन की ११०० वीं बुलेटिन, एक और एक ग्यारह सौ - ११०० वीं बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteखूबसूरत।
ReplyDeleteशरदागमन की गंध और गुन-गुन पंक्तियों से बिखर रही है .
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