ईंट -पत्थरों से
जोड़-जोड़कर,
इकठ्ठा किया हुआ
वात्सल्य ,
खेत-खलिहानों की
लहलहाहट पर फैलाया हुआ
स्वाभिमान,
कल-कारखाने,व्यवसाय में
समाहित
गगनचुम्बी सपने
और
मजबूती से बंधी हुई,
सम्मिलित,
सम्मानित गरिमा का
संग्रह,
रिश्तों में घुलते हुए,
'मैं' की
प्रचुरता से
अपमानित होकर ,
स्नेह ,ममता ,त्याग ,
विश्वास
और
आशीर्वाद की जायदाद को ,
विस्मित
कर रही हैं .
खुद को सभ्य-
सुसंस्कृत कहनेवाले
लोगों ने ,
आनेवाली पीढ़ियों को,
एक नए
पर्यायवाची का उपहार
दे दिया है,
'एन्सेसट्रल-प्रोपर्टी' को
'एक भयानक शब्द 'का
दर्जा देकर
स्थापित कर दिया है .
Saturday, January 1, 2011
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खुद को सभ्य-
ReplyDeleteसुसंस्कृत कहनेवाले
लोगों ने ,
आनेवाली पीढ़ियों को,
एक नए
पर्यायवाची का उपहार
दे दिया है,
बहुत सुंदर रचना -
मन को छू गयी
बहुत ही सुंदर रचना.......
ReplyDeleteNaya saal bahut,bahut mubarak ho!
ReplyDeleteअच्छी तथा विचारणीय कविता.
ReplyDeleteनए साल की पहली पोस्ट...अच्छी लगी. नव वर्ष पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ.
ReplyDelete_____________
'पाखी की दुनिया' में नए साल का पहला दिन...
सुन्दर रचना .. सुन्दर भाव... आपको और आपके परिवार इष्ट मित्रों के लिए नया साल शुभ हो .. मंगल कामनाएं ..
ReplyDeleteमृदुला जी!
ReplyDeleteआपकी कविता पर प्रतिक्रिया के लिये शब्द ढूंढने चला तो जनाब मुनव्वर राना का यह शेर ज़ुबानपर आ गया:
किसी को घरमिला हिस्से में, और कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में माँ आई!
मृदुला जी,
ReplyDeleteअत्यंत ही सुन्दर भाव से ओत प्रोत रचना!
साधुवाद
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ब्लॉग पर आपका स्वागत रहेगा
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अत्यंत ही सुन्दर भाव
ReplyDeleteनव वर्ष पर आपको ढेर सारी बधाइयाँ.
सुन्दर ! नव वर्ष मुबारक !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर! दिल को छू जाने वाली रचना .
ReplyDeleteदिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत, संवेदनशील और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
कविता के कथ्य में नयापन है,
ReplyDeleteयह नयापन अच्छा लगा।
चिंता की बात है कि हमारे संस्कार तेजी से विघटित हो रहे हैं।
खुद को सभ्य-
ReplyDeleteसुसंस्कृत कहनेवाले
लोगों ने ,
आनेवाली पीढ़ियों को,
एक नए
पर्यायवाची का उपहार
दे दिया है,
'एन्सेसट्रल-प्रोपर्टी' को
'एक भयानक शब्द 'का
दर्जा देकर
स्थापित कर दिया है .
सार्थक रचना...
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
अति सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteआप ओर आप के परिवार को नव वर्ष की शुभकामनाएं।
एन्सेसट्रल-प्रोपर्टी' को
ReplyDelete'एक भयानक शब्द 'का
दर्जा देकर
स्थापित कर दिया है .
सच कहा है आपने ..शुक्रिया
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteआशीर्वाद की जायदाद जुटाना मुश्किल है. अच्छी प्रेरणा.
ReplyDeleteसलिल जी के शब्दों से सहमत हूँ.
नए साल की शुभकामना.
वर्तमान समाज पर कटाक्ष करती सुन्दर रचना !
ReplyDeleteनववर्ष की शुभकामनायें !
आदरणीय मृदुला जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
..........रचनाएं अच्छी लगीं.
भावों की खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
नव-वर्ष की शुभकामनाएँ आपको और आपके परिवार को भी गहन
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDeleteवाह....मृदुला जी......आपकी रचनाएँ बहुत गहरे अर्थ लिए होती हैं.......बहुत ही सुन्दर लगी ये रचना|
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना है ... सचाई है इसमें ... ..
ReplyDeleteआपको और आपके पूरे परिवार को नव वर्ष मंगलमय हो ...
मिर्दुला जी भावात्मक कृति बहुत ही अच्छी लगी,
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामना के साथ नव वर्ष मंगलमय हो
bhaon ka praktikaran naye andaz me .
ReplyDeletesundar abhvyakti.
Mridula ji , bahut hi gahre bhav hai .....sunder prastuti
ReplyDeletesach me vismit kar rahi hain.
ReplyDeletesunder sashakt kavita.
खुद को सभ्य-
ReplyDeleteसुसंस्कृत कहनेवाले
लोगों ने ,
आनेवाली पीढ़ियों को,
एक नए
पर्यायवाची का उपहार
दे दिया है,
bahut umda rachna likhi hai aapne ,nav barsh mangal maya ho aap sabhi ka .
नववर्ष की मंगल कामना!
ReplyDeleteजिस गहराई तक आपकी अभिव्यक्ति उतर जाती है . मै तो बापुरा बने किनारे से अचंभित होता रहता हूँ .
ReplyDeleteसभ्य और सुसंस्कृत कहलाने वाले लोग आनेवाली पीढ़ी को ''एन्सेसट्रल प्रोपर्टी" के रूप में ऐसी ही विरासत दे जा रहे हैं...... खूबसूरत शब्दों में व्यक्त किये है विचार आपने...
ReplyDeletebehad sundar kavita aur navarsh dono ke liye aapko badhai aur shubhkamnayen
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteसुंदर रचना.......
ReplyDeletebahut sunder rachna .
ReplyDeletenav varsh ki anek shubh kamnaye......