उठाओ अपना सर
वसंत-मालती........
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा में,
पाँच पंखुड़ियों के
सौंदर्य से आभूषित,
कोमल
तुम्हारी काया,
धूमिल नहीं हो ,
गुलाबी से
रक्तिम होता हुआ
यह
नैसर्गिक स्वरूप,
रह सके आम्लान,
नत-मस्तक
सरल छवि पर
भारी नहीं पड़ जाये,
किसी
अभिशाप का भार
और
कर्तव्य-बोध की
शाखाओं, उप-शाखाओं में
विभाजित
सलज्ज मुस्कान,
रहे चिरंजीवी
इसीलिये,
उठाओ अपना सर
वसंत मालती........
कि
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
वसंत-मालती........
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा में,
पाँच पंखुड़ियों के
सौंदर्य से आभूषित,
कोमल
तुम्हारी काया,
धूमिल नहीं हो ,
गुलाबी से
रक्तिम होता हुआ
यह
नैसर्गिक स्वरूप,
रह सके आम्लान,
नत-मस्तक
सरल छवि पर
भारी नहीं पड़ जाये,
किसी
अभिशाप का भार
और
कर्तव्य-बोध की
शाखाओं, उप-शाखाओं में
विभाजित
सलज्ज मुस्कान,
रहे चिरंजीवी
इसीलिये,
उठाओ अपना सर
वसंत मालती........
कि
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
समय की
ReplyDeleteविपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
सुन्दर अभिव्यक्ति ....
बहुत सुंदर सुदृढ़ सोच -
ReplyDeleteऔर सुंदर अभिव्यक्ति भी -
शुभकामनायें
श्रृंगार और ओज का सुन्दर संगम.....
ReplyDeleteमदन के तीर में गज़ब का जोश भरा आप ने.
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteहर एक पंक्ति सुन्दर भावो व अभिव्यक्ति से परिपूर्ण है.. बहुत खूबसूरत रचना..
ReplyDeleteउठाओ अपना सर
ReplyDeleteवसंत मालती........
कि
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
bahut hi sundar varnan
समय की
ReplyDeleteविपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
वापस लौट जाये,
ReplyDeleteपरंपराओं की लीक पर
भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
उठाओ अपना सर
ReplyDeleteवसंत-मालती........
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा में,
वसंतागमन के इंतजार में काव्यमय सुन्दर प्रस्तुति.
हमेशा की तरह सुन्दर रचना ! बधाई
ReplyDeleteगहरे विचारों से परिपूर्ण कविता।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया .भावपूर्ण कविता.
ReplyDeleteगहरे और ओजस्वी भावों को समेटे एक प्रवाह लिये सुंदर कविता!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
ReplyDeleteउठाओ अपना सर
ReplyDeleteवसंत मालती........
कि
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।
waah ...bahut khoob !
मृदुला जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.....शानदार|
सुन्दर भावों का समावेश हर पंक्ति अनुपम ।
ReplyDeleteati sundar....
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteपाँच पंखुड़ियों के
ReplyDeleteसौंदर्य से आभूषित,
कोमल
तुम्हारी काया
aapki kavitaa ki moh maaya...
khud ko rok na paaya!
सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeletevery nice blog dear friend bouth he aacha post hai aapka
ReplyDeletePleace visit My Blog Dear Friends...
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बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुन्दर पंक्तियाँ और बेहतरीन अभिव्यक्ति!
ReplyDelete्कविता में भावनाओं के मोती जड़े हैं जो सुधि पाठकों को अपनी ओर बरबस खींच लेते हैं।
ReplyDeleteसुधा भार्गव
मृदुला जी ने जैसे खुशियों के फूलों को संवेदना के धागे में पिरो कर काव्य माला दी है ,सचमुच सुखद और सुन्दर है .बधाई .
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