Saturday, January 22, 2011

उठाओ अपना सर वसंत मालती........

उठाओ अपना सर
वसंत-मालती........
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा में,
पाँच पंखुड़ियों के
सौंदर्य से आभूषित,
कोमल
तुम्हारी काया,
धूमिल नहीं हो ,
गुलाबी से
रक्तिम होता हुआ
यह
नैसर्गिक स्वरूप,
रह सके आम्लान,
नत-मस्तक
सरल छवि पर
भारी नहीं पड़ जाये,
किसी
अभिशाप का भार
और
कर्तव्य-बोध की
शाखाओं, उप-शाखाओं में
विभाजित
सलज्ज मुस्कान,
रहे चिरंजीवी
इसीलिये,
उठाओ अपना सर
वसंत मालती........
कि
समय की
विपरीत चलती हुई
धारा
वापस लौट जाये,
परंपराओं की लीक पर
खींची हुई
तुम्हारी सीमा रेखा से ।

28 comments:

  1. समय की
    विपरीत चलती हुई
    धारा
    वापस लौट जाये,
    परंपराओं की लीक पर
    खींची हुई
    तुम्हारी सीमा रेखा से ।

    सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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  2. बहुत सुंदर सुदृढ़ सोच -
    और सुंदर अभिव्यक्ति भी -
    शुभकामनायें

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  3. श्रृंगार और ओज का सुन्दर संगम.....
    मदन के तीर में गज़ब का जोश भरा आप ने.

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  4. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ और बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  5. हर एक पंक्ति सुन्दर भावो व अभिव्यक्ति से परिपूर्ण है.. बहुत खूबसूरत रचना..

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  6. उठाओ अपना सर
    वसंत मालती........
    कि
    समय की
    विपरीत चलती हुई
    धारा
    वापस लौट जाये,
    परंपराओं की लीक पर
    खींची हुई
    तुम्हारी सीमा रेखा से ।
    bahut hi sundar varnan

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  7. समय की
    विपरीत चलती हुई
    धारा
    वापस लौट जाये,
    परंपराओं की लीक पर
    खींची हुई
    तुम्हारी सीमा रेखा से ।

    बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

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  8. वापस लौट जाये,
    परंपराओं की लीक पर
    भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

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  9. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  10. उठाओ अपना सर
    वसंत-मालती........
    समय की
    विपरीत चलती हुई
    धारा में,

    वसंतागमन के इंतजार में काव्यमय सुन्दर प्रस्तुति.

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  11. हमेशा की तरह सुन्दर रचना ! बधाई

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  12. गहरे विचारों से परिपूर्ण कविता।

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  13. बहुत ही बढ़िया .भावपूर्ण कविता.

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  14. गहरे और ओजस्वी भावों को समेटे एक प्रवाह लिये सुंदर कविता!

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  15. बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद

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  16. उठाओ अपना सर
    वसंत मालती........
    कि
    समय की
    विपरीत चलती हुई
    धारा
    वापस लौट जाये,
    परंपराओं की लीक पर
    खींची हुई
    तुम्हारी सीमा रेखा से ।

    waah ...bahut khoob !

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  17. मृदुला जी,

    बहुत सुन्दर रचना.....शानदार|

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  18. सुन्‍दर भावों का समावेश हर पंक्ति अनुपम ।

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  19. बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  20. पाँच पंखुड़ियों के
    सौंदर्य से आभूषित,
    कोमल
    तुम्हारी काया

    aapki kavitaa ki moh maaya...
    khud ko rok na paaya!

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  21. सुंदर अभिव्यक्ति !

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  22. बहुत सुन्‍दर.

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  23. very nice blog dear friend bouth he aacha post hai aapka

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  24. बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..

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  25. सुन्दर पंक्तियाँ और बेहतरीन अभिव्यक्ति!

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  26. ्कविता में भावनाओं के मोती जड़े हैं जो सुधि पाठकों को अपनी ओर बरबस खींच लेते हैं।
    सुधा भार्गव

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  27. मृदुला जी ने जैसे खुशियों के फूलों को संवेदना के धागे में पिरो कर काव्य माला दी है ,सचमुच सुखद और सुन्दर है .बधाई .

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