सूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में ,मैं
चलो स्वागत करें ,
ऋतु-वसंत का .......
आसमान की भुजाओं में
थमा दें ,
पराग की झोली
और
दूर-दूर तक उड़ायें ,
मौसम का गुलाल.
रच लें
हथेलियों पर ,
केशर की पंखुड़ियाँ,
बांध लें
सांसों में,जवाकुसुम की
मिठास ,सजा लें
सपनों में
गुलमोहर के चटकीले
रंग ,
बिखेर लें कल्पनाओं में,
जूही की कलियाँ ......कि
ऋतु-वसंत है .......
सूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में, मैं
चलो स्वागत करें.
हवाओं के आँचल पर
खोल दें
ख्वाबों के पर ,
तरु-दल के स्पंदन से
आकांछाओं के
जाल बुनें ,
झूम आयें गुलाब के
गुच्छों पर,
नर्म पत्तों की
महक से चलो, कुछ
बात करें.
आसमानी उजालों में
सोने की धूप
छुयें,
मकरंद के पंखों से,
कलियों को
जगायें....कि
ऋतु-वसंत है.......
सूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में, मैं
चलो स्वागत करें.
Friday, January 7, 2011
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आपकी कविता कल्पना के ऐसे लोक में ले जाती है जहाँ रंग हैं, सुगंध है प्रकृति के मनोहारी रूप हैं, चंद्रमा की चान्दनी और सूरज की किरणें एक साथ हैं, सुंदर भावों की अभिव्यक्ति !
ReplyDeletemridula ji
ReplyDeletenav -varshh par aapki likhi rachna ne mujhe abhibhut kar diya hai. sabko apne saath samete aapne jin khubsurat shabdo ke saath apne naye
saal ka swagat kiya hai.vo bahut hi betreen hai.is lajwab prastuti ke liye aapko bahut bahut badhai.
सूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में ,मैं
चलो स्वागत करें ,
lajwab abhivyakti
poonam
कितने प्यारे और कोमल मनोभावो को संजोया है आपने इस सुन्दर कविता में!नववर्ष की मंगल कामनायें!
ReplyDeletesunder yehsaso se bhari hue rachna
ReplyDeleteis bar mere blog par
"mai"
कोमल भावो की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDelete@चलो स्वागत करें ,
ReplyDeleteऋतु-वसंत का .....
थोडा इन्तेज़ार और लेते
बढिया कविता.
आसमानी उजालों में
ReplyDeleteसोने की धूप
छुयें,
मकरंद के पंखों से,
कलियों को
जगायें....कि
ऋतु-वसंत है.
मृदुला जी , बहुत ही प्यारे एहसास है... सुंदर अभिव्यक्ति...
.
नये दसक का नया भारत (भाग- १) : कैसे दूर हो बेरोजगारी ?
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर एहसास से भरी है आपकी कविता -
ReplyDeleteपढ़कर स्वप्नलोक में खो गयी हूँ -
इतने अच्छे भावों के लिए बधाई -
आगे लेखन के लिए अनेक शुभकामनाएं .
अहहहहः...अद्भुत भावाभिव्यक्ति...विलक्षण रचना...बधाई
ReplyDeleteनीरज
चलो स्वागत करें ,
ReplyDeleteऋतु-वसंत का .......
....
झूम आयें गुलाब के
गुच्छों पर,
नर्म पत्तों की
महक से चलो, कुछ
बात करें.
आसमानी उजालों में
सोने की धूप
..
प्रकृति का विहंगम चित्रण ..... मृदुला जी आपने जेहन में प्राकृतिक सुन्दर कोमल मनोभावों का जीवंत उकेर कर ऋतु-वसंत के आगमन का सुन्दर सन्देश भेजा है... आभार ..
नव वर्ष शुभकामना .......
सूरज की पहली किरण से
ReplyDeleteनहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में, मैं!
बहुत दिनों बाद इतनी सुन्दर रचना पढने को मिली है!
पढ़ते पढ़ते कहीं खो सा गया, बहुत सुन्दर, ज़बरदस्त, बेहतरीन रचना!
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
ReplyDeleteइस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई एवं शुभकामनायें।
ReplyDeleteहम तो पहुच ही गए थे बसंत ऋतू में. आपके शब्दों ने इस कड़ाके की ठण्ड में भी वसंत का आनंद दिया . आभार .
ReplyDeleteभवनाओं को बिम्बों और प्रतीकों से आपने खूबसूरती दी है।
ReplyDeleteजाड़े की भयंकर ठिठुरन के बीच यह कह सकता हूँ कि आपकी कविता समय से आगे की कविता है..
ReplyDeleteवर्णन अद्भुत है और वसंत का चित्र स्वतः खिंचता चला जाता है!
ये पढ़कर ध्यान आ रहा है कि ऋतुराज आने वाले हैं. वैसे मैं यहाँ ठण्ड से परेशान हूँ. हमारे यहाँ पिछले २४ घंटे में ३० सेंटीमीटर बरफ पद चिकी है. और अभी पद ही रही है. :-(
ReplyDeleteबहुत सही समय पर वक्त रहते तैयारी की जाए वसंत की. आनंद आने वाला है.....मकर संक्रांती की शुभकामना.
लेखन बहुत अच्छा लगा, हमेशा की तरह...
इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteकेशर की पंखुड़ियाँ,
ReplyDeleteबांध लें
सांसों में,जवाकुसुम की
मिठास ,सजा लें
सपनों में
गुलमोहर के चटकीले
रंग ,
बिखेर लें कल्पनाओं में,
जूही की कलियाँ कि
ऋतु-वसंत है
अत्यंत मोहक रचना।
ऋतुराज वसंत के स्वागत को आतुर यह कविता मुझे बहुत ही अच्छी लगी।
बसंत के स्वागत मे सुन्दर रचना। बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण....गहन अभिव्यक्ति..आभार.
ReplyDeleteआकर्षक मनोभावों के साथ अत्यन्त उत्तम प्रस्तुति...
ReplyDeleteसूरज की पहली किरण से
नहाकर तुम
और
गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में, मैं
चलो स्वागत करें.
मेरे ब्लाग जिन्दगी के रंग से जुडने के लिये आपका विनम्र आभार...
सामाजिक समस्याओं के साथ ही अपने आस-पास की जीवन्त घटनाओं पर रोचक प्रस्तुति देते मेरे दुसरे ब्लाग नजरिया पर भी आपका जाना हो पाता होगा-
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लघु कथा "तुमने मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी" पर आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.-अरविन्द
ReplyDeletebeautiful poetry with lovely thoughts . . .
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है .
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteइस रचना में प्रकति का मनमोहक चित्रण किया है आपने....बहुत सुन्दर|
मृदुला जी,
ReplyDeleteशब्द शब्द गूंथकर बड़ी ही खूबसूरती से आपने भावों की ऐसी माला बनाई है जिसमे समाहित चन्दन की शीतल सुगंध पाठकों को वसंत वसंत कर देती है !
शब्द चित्र तो इसी को कहते हैं !
शुभकामनाएं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
स्वागत का यह अंदाज़.....हमको कर गया लाज़वाब..... सचमुच....!!
ReplyDeleteBahut sunder Mradulaji aisa laga jaise basant aa gaya ho.... manohari rachna..
ReplyDeleteऋतु-वसंत है......सूरज की पहली किरण से
ReplyDeleteनहाकर तुम
और गूँथकर चाँदनी को
अपने
बालों में, चलो स्वागत करें....
सुंदर भावाभिव्यक्ति
सुंदर रचना के लिए साधुवाद ढ़ेर सारी बधाईयाँ
जय श्री कृष्ण...आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कविता... और आप कैसी हैं? मैं आपकी सारी छूटी हुई पोस्ट्स इत्मीनान से पढ़ कर दोबारा आता हूँ...
ReplyDeletesundar kavita mridulaji prnam/badhai
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी ..
ReplyDeleteअंतस को छूनेवाली ...
बहुत प्यारी रचना !
basant ritu ka sajeev swaagat...........bahut sunder.....
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति!
ReplyDeleteलोहड़ी, पोंगल एवं मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं
मकरंद के पंखों से,
ReplyDeleteकलियों को
जगायें....कि
ऋतु-वसंत है.......
....very nice..
mridula ji
ReplyDeletemai to aapki rachna ke sath sath chalne lagi ....bahur sundar!!!