जब टेढ़े-मेढ़े
उल्टे-सीधे
और
उलझे हुए.....
रिश्तों की कौमें
निकलकर ,
एक -दूसरे की गवाही
लेकर,
अपने-आपको स्थापित
करने लगतीं हैं .......
जब नींव-रहित,
कच्चे-पक्के
संबंधों के अलाव,
भौतिक रस-विलास के
सौजन्य से......
बढ़-चढ़ कर
फैलने लगते हैं,
तब......
दूर से देखते हुए
ठोस,
भावनात्मक
रिश्तों का वज़ूद,
क्रमश:
खोने लगता है........
खोने लगता है,
स्नेह-सिंचित जड़ों से,
निश्छल कोमलता का
चिर-संचित
अभिमान.....
और
समय के धरातल पर,
उधड़ते हुए
रिश्तों का,
धूल-धुसडित रेशमी डोर,
अपने होने का
एहसास .......भर करा देता है,
या कहूं......... कि
'येन - तेन- प्रकारेण'
बहला देता है.......
bahut sundar kavita mradula ji...rishton ke tane bane ko samjhne ke prayas jesi....
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या ।
ReplyDeletebahut achhe bhaawon ko likha hai aapne.
ReplyDeleteमृदुला जी इस खूबसूरत और भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
और
ReplyDeleteसमय के धरातल पर,
उधड़ते हुए
रिश्तों का,
धूल-धुसडित रेशमी डोर,
अपने होने का
एहसास .......भर करा देता है,
या कहूं......... कि
'येन - तेन- प्रकारेण'
Haan....bilkul sahee kaha!
वाह!भावपूर्ण अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteभावनात्मक रिश्तों का आकाश बहुत बड़ा है!
ReplyDeleteसुन्दर कविता!
येन - तेन- प्रकारेण'... zindagi isi bhasha me chalti hai
ReplyDeletebhaavnaatmak rishte ...
ReplyDeletebinaa jaane pahchaane bhee kuchh log achhe lagte hein
या कहूं......... कि
ReplyDelete'येन - तेन- प्रकारेण'
बहला देता है......
ktu satya.
बहुत खूब ......कुछ रिश्ते बेनाम होते हैं...फिर भी वो ख़ास होते है >
ReplyDeletebahut bhaavpoorn sundar abhivyakti.
ReplyDeletebahut sunder shilp saundary se rishto ki bagiya ki bakhiya ki hai.
ReplyDeleteउधड़ते हुए
ReplyDeleteरिश्तों का,
धूल-धुसडित रेशमी डोर,
अपने होने का
एहसास .......भर करा देता है,
या कहूं......... कि
'येन - तेन- प्रकारेण'
बहला देता है.......
bahut khoob
www.poeticprakash.com
रिश्तों को पड़ताल करती यह कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteरिश्तों की जटिलता को वास्तविकता के तराजू पर तोलती यह कविता कहीं कहीं अपना ह्रदय खंगालने को बाध्य करती है!!
ReplyDeleteचिर-संचित
ReplyDeleteअभिमान.....
और
समय के धरातल पर,
उधड़ते हुए
रिश्तों का,
धूल-धुसडित रेशमी डोर,
अपने होने का
एहसास .......भर करा देता है!!
aur fir ek naya jamn....!!
***punam***
bas yun...hi...
tumhare liye...
खुबसूरत भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteआज 10 - 11 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
बेहद सूक्ष्मता से रिश्तो का अवलोकन किया है।
ReplyDeleteरिश्तों पर लिखी बहुत भावनात्मक रचना ... ज़िंदगी से जुडी आपकी रचना बहुत पसंद आई
ReplyDeleteरिश्तों पर लिखी बहुत भावनात्मक रचना ... ज़िंदगी से जुडी आपकी रचना बहुत पसंद आई
ReplyDeleteसदा की तरह ही आपकी यह रचना भी ठहरने के लिये बाध्य करती है ।
ReplyDeleteअच्छे भाव।
ReplyDeleteख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है कल शनिवार (12-11-2011)को नयी-पुरानी हलचल पर .....कृपया अवश्य पधारें और समय निकल कर अपने अमूल्य विचारों से हमें अवगत कराएँ.धन्यवाद|
ReplyDeleteसमय के धरातल पर उधड़ते हुए
ReplyDeleteरिश्तों का धूल धसरित रेशमी डोर ..
अपने होने का अहसास .
.रिस्तो का मर्म संजोती रचना
आपके पोस्ट पर आना सार्थक सिद्ध हुआ । पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteमृदुला जी,..
ReplyDeleteभावनात्मक रिश्ते की शूक्ष्मता से
जीवन का निरीक्षण करती रोचक पोस्ट ...
मेरे पोस्ट -वजूद- में स्वागत है .....
बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना...लाजवाब।
ReplyDeletebahut sundar Mrudula ji
ReplyDeletesundar bhaavabhivyakti aur saarthak rachna !!
behad sundar rachna...
ReplyDeletelast line bahut hi fabulous...
जब नींव-रहित,
ReplyDeleteकच्चे-पक्के
संबंधों के अलाव,
भौतिक रस-विलास के
सौजन्य से......
बढ़-चढ़ कर
फैलने लगते हैं,
तब......
आह ये रिश्तों के उलझे से जाल । बेहद भावपूर्ण और सुंदर भी ।