जब नीम के पेड़ पर
चढ़कर
मधु-मक्खी
छत्ता लगाती है,
शहद की ताशीर
दुगनी
हो जाती है.
जब रिश्तों की
धूल-धुसड़ित
रेशमी डोर
निश्छलता की 'आँच' पर
चढ़ जाती है
यक़ीनन
निखर जाती है.......
चढ़कर
मधु-मक्खी
छत्ता लगाती है,
शहद की ताशीर
दुगनी
हो जाती है.
जब रिश्तों की
धूल-धुसड़ित
रेशमी डोर
निश्छलता की 'आँच' पर
चढ़ जाती है
यक़ीनन
निखर जाती है.......
वाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteकम शब्दों में बहुत कुछ कहती सुन्दर भावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट के लिये पधारे आपका हार्दिक स्वागत है !
निश्छलता सदा चमत्कृत करती है!
ReplyDeleteare waah... per nishchhalta hai kahan
ReplyDeletewaah ..lop hoti nischalta ke sapne hi theek hain.badhai
ReplyDeleteइस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
रिश्ते, रेशमी डोर, नीम, शहद और इन सबसे ऊपर आँच... सन्दर्भ न देते हुए भी आपने जितनी गहराई से अपनी बात कही है वह प्रशंसनीय है!!
ReplyDeleteजब रिश्तों की
ReplyDeleteधूल-धुसड़ित
रेशमी डोर
निश्छलता की 'आँच' पर
चढ़ जाती है
यक़ीनन
निखर जाती है.......
Kya baat kahee hai aapne!
rishton kee pavitrtaa par
ReplyDeletekhoobsoorat bayaan
bahut khoob..sahi hai aag me tap kar hi sona aakar leta hai.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाव्यक्ति शब्द संयोजन कमाल का बधाई
ReplyDeletebahut sundar....
ReplyDeletewww.poeticprakash.com
बहुत ही बढ़िया.....
ReplyDeleteAchhi rachna !
ReplyDeleteबहुत सुंदर बिम्ब प्रयोग और रिश्तों का निखरना..सुंदर कविता !
ReplyDeleteसच कहा है निश्छल रिश्ते अलग ही होते हैं ... सुन्दर रचना है ....
ReplyDeleteवाह …………थोडे मे गहरी बात कह दी।
ReplyDelete.बहुत खूब .
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteजब रिश्तों की
ReplyDeleteधूल-धुसड़ित
रेशमी डोर
निश्छलता की 'आँच' पर
चढ़ जाती है
यक़ीनन
निखर जाती है.......
khoobsoorat.....!
अच्छी पोस्ट आभार ! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteमृदुला जी..बहुत खूब ...चंद शब्द और गहरी बात ..
ReplyDeleteगहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
ReplyDeleteधन्यवाद!
ढूंढ रही हूँ आज तलक...निश्छलता
ReplyDeleteवाह! बहुत गहरी बात... यकीनन सत्य
ReplyDeleteसादर बधाई...
बहुत बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteमृदुला जी आपका बहुत आभार...
मेरे ब्लॉग में पधारने और मेरी कविता पसंद करने के लिए आपका शुक्रिया....
आप जैसे गुणीजनों का स्नेह मिलता रहे ये ये अनुरोध है मेरा ईश्वर से...