'सन्डे'की सुबह
'पॉश'- 'कालोनी' के
'फ्लैट' की
'बाल्कनी' में ,
जो एक लम्बा सन्नाटा
बिछ जाता है........
शनिवार की रात का
'साइड -इफेक्ट'
साफ़ नज़र आता है.
मंथर-गति से
सुगबुगाहट सी होती है,
पर्दे सरकते हैं ,
कुण्डियाँ खड़खड़ातीं हैं,
दरवाज़े खुलते हैं
और
हाफ़-पैंट धारी
'डैडी',
'पेपर' लिए हुये
'केन' की कुर्सी पर
फैल जाते हैं.
'रेलिंग' के सहारे
आकर,
खड़ी हो जाती है
एक बच्ची,प्यारी सी,
'बारबी' 'डॉल' का हाथ
मुठ्ठी में
पकड़े हुए.......
उसका भाई
ऐसा मेरा अनुमान है.....
'स्केटिंग' का जूता पहने,
इधर से उधर
फिसलता है,झिड़कियाँ
खाता है
फिर फिसलता है,
यही क्रम
चलता रहता है.
'ट्रौली' पर चढ़कर
चाय-दूध, बिस्किट,
फल-वल,
जाने क्या-क्या,
एक 'आया'
लगा जाती है.....
और तब
बड़े-बड़े फूलोंवाली
रेशमी 'नाईटी' पहने
घर की गृहणी
बाहर आती है.
बैठकर इत्मिनान से,
आस-पास का मुआएना कर
संतुष्ट भाव से,
बिस्किट के डब्बे को
खोलते हुए,
बच्चों को आवाज़
लगाते हुए,
डालती है 'कपों' में
'स्टाईल' से
चाय-दूध
नफ़ासत की हद तक,
शक्कड़ मिलाती है
और........इधर
मेरी जिज्ञासा
बढ़ती चली जाती है.......
वहाँ सब पीने लगते हैं
चाय - वाए,
खाने लगते हैं
बिस्कुट-विस्कुट
फल-वल,
जाने क्या-क्या,
सोचती हूँ ........
ये 'लाम- काफ़' की चाय
कैसी होती होगी?
और........इसी उधेड़-बुन में
उस 'साइड-इफेक्ट' का
'आफ्टर-इफेक्ट' तो देखिये
मेरे सामने रखी
गर्म चाय,
बिना पीये
बिना पीये
खामखा
ठंढी हो जाती है..........
wah ...bahut khoob ..
ReplyDeleteआफ्टर इफेक्ट वाकयी दुखदायी है ..बताइए भला आपकी चाय ठंडी हो गयी इस दृश्य को देखते हुए ...
ReplyDeleteसच्चाई को दिखाती अच्छी रचना
बहुत सुन्दर...
ReplyDeletejise phir garm karna hoga ... waise drishy bahut bhayaa .
ReplyDeleteइस दृश्य के पीछे आधुनिक जीवन का अर्थशाश्त्र छुपा है...
ReplyDeleteगर्म चाय,
ReplyDeleteबिना पीये
खामखा
ठंढी हो जाती है..........
बहुत बढि़या भाव संयोजन ।
वास्तविकता का बहुत ही सजीव चित्र प्रस्तुत किया है आपने।
ReplyDeleteसादर
bahut achcha chitra sa aakkhon ke samne sajeev ho gaya.
ReplyDeletebahut mazedar rachna
ReplyDeletesunder drishay chitrit karne me saksham rahi apki rachna lekin dukh hua ki iska side effect as always bura hi raha. :)
ReplyDeleteSaara manzar aankhon ke aage tair gaya!
ReplyDeleteअक्सर ऐसा ही होता है..
ReplyDeleteजब हमारी दृष्टि दूसरों पर होती है तो हमारी अपनी ज़रूरतें,
ज़रुरत की चीज़े और ज़रूरी बातें नज़रन्दाज़ हो जाती है...चाय तो बड़ी छोटी चीज़ है...!!
इसलिए हम चाय गरम पियें और दूसरों की खिड़की-दरवाज़ों पर नज़र कम रखें..!!
बेहतरीन प्रस्तुति ।
दूसरों की चाय इतने गौर से देखेंगी तो अपनी चाय तो ठंडी होनी ही है...अच्छा खाका खींचा है...पूरा दृश्य उकेर डाला...
ReplyDeleteसच कहती सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसारी तस्वीर आँखों के आगे ही तैर गयी
ReplyDeleteहाँ सचमुच ऐसा लगा सबकुछ आँखों के सामने घट रहा है... आधुकिता सभी तरफ व्याप्त है... सुन्दर रचना...
ReplyDeleteआफ्टर-इफेक्ट' तो देखिये
ReplyDeleteमेरे सामने रखी
गर्म चाय,
बिना पीये
खामखा
ठंढी हो जाती है....
अब इसका आफ्टर इफेक्ट तो यही होना था । बेहद सुंदर और सच्ची प्रस्तुति ।
मृदुला जी इसे कहते है साइड इफेक्ट :):)
ReplyDeleteआदरणीया मृदुला जी गजब का चित्रण पाश कालोनी का और अंत हंसाने और सोचने वाला ऐसा ही होता है साइड और आफ्टर इफेक्ट ....आइये बचें अधिक उधेड़ बुन से ..सुन्दर
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
और........इसी उधेड़-बुन में
उस 'साइड-इफेक्ट' का
'आफ्टर-इफेक्ट' तो देखिये
मेरे सामने रखी
गर्म चाय,
बिना पीये
खामखा
ठंढी हो जाती है..........
आपके साइड इफेक्ट का आफ्टर इफेक्ट ..वाकई अच्छा लगा.
ReplyDeleteअरे अपनी चाय क्यों ठण्डी कर डाली। लेखक की बस यह कमजोरी है, दूसरे का हाल देखते देखते खुद की दुर्गति बना लेता है। बहुत ही बढिया कविता, आनन्द आ गया।
ReplyDeletethanks for the beautiful poem
ReplyDeleteआज के बदलते जीवन का क्या खूब चित्रण किया है …………बेहतरीन सोच को दर्शाती रचना।
ReplyDeletesaty ko paribhashit kiya hai aapne.. achchhi rachna..
ReplyDeleteओह ! साइड इफेक्ट ने तो आपका ही संडे बिगाड़ दिया... एक कप और सही...
ReplyDeleteबहुत खूब...
ReplyDeleteसादर...
अरे उस तरफ देखना ही क्यों.जहाँ देखने से अपनी चाय हि ठंडी हो जाये:)
ReplyDeleteसरल सहज पर गहन अभिव्यक्ति.
बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति! बधाई !
ReplyDeleteपॉश कालोनी का सजीव चित्र.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति....सजीव रचना...
ReplyDeleteशनिवार की रात का
ReplyDelete'साइड -इफेक्ट'
साफ़ नज़र आता है
baar baar alsaayaa saa
ubaasee letaa
man hee man sochtaa
raat jyaadaa ho gayee
aaj se kam piyegaa.....
sundar chitran,yathaarth
badhaayee
sundar chitrkavy...
ReplyDeletevery appealing expression..
ReplyDeleteअच्छे शब्द,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteकृपया इस लेख को बिल्कुल न पढ़े।
"किलर झपाटे पर मर मिटी बेचारी दिव्या ज़ील"
http://killerjhapata.blogspot.com/2011/11/blog-post.html
धन्यवाद।
आपका ब्लॉग भी बहुत ख़ूबसूरत और आकर्षक लगा । अभिव्यक्ति भी मन को छू गई । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद . ।
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति...नज़ाकत भरी चाय...
ReplyDeletechalchitra ki bhaanti ye drishya aankhon ke saamne se gujar gaya. jaane itni nafaasat ke baad chaaye pine mein wo maza mil pata ki nahin jo maza chaaye ko bhagaune mein khaula kar fatafat pine mein hota hai. par ye bhi unki mazburi, aisa karna hin hota hoga. bahut achchha laga padhna. aabhar.
ReplyDeleteisi thndi chay ki pyali se itni jbrdst kvita nikli jo bina ruke ek sans me pdhne ko mjboor kr gai . aapka poora blog achchhi trh mnn kr lu to fhoon kroongi .
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,.मन को छु गई आपकी ये रचना,
ReplyDeleteमेरे पोस्ट में स्वागतहै,....
wah bahut khoob ..sunder side effect .........suru se aant tak baas anand hi aanand ..........se bhara eah side effect . sunder prastuti . badhai
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