Sunday, January 16, 2011

धड़कनों की तर्ज़ुमानी.......

धड़कनों की तर्ज़ुमानी,
अ़ब किताबों में
रखा है ,
मैंने भी वह
शीत चखा है .
नील-स्वप्न,स्वछंद,सुवासित
पंख जहाँ
खुलते थे,
तरुण मलय के
पत्तों पर,
किरणों के रस
घुलते थे ,
अनिल द्वार पर
दस्तक देकर,
सौरभ रख जाता था ,
कलियों  का परिधान
इत्र के, मेले में
आता था.
स्वर्ण-सुरा की मदिरा
पी-पी कर
गुलाब खिलते थे,
अलि गुंजन की लय
सुन-सुन कर,
धूप-छांव बुनते थे,
प्रथम पहर के
अमृत से ,
शचैल- स्नान होता था,
रात सितारों की
महफ़िल में,
आमंत्रण रहता था,
कभी वसंती द्रुम-दल के
पीछे-पीछे,
हल्के-हल्के से पाँव,
रखा है,
मैंने भी वह
शीत चखा है.

38 comments:

  1. मृदुला जी
    इस बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाई

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  2. कविता में आपकी गहरी संवेदना, अनुभव और अंदाज़े बयां खुलकर प्रकट हुए हैं।

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  3. अ़ब किताबों में
    रखा है ,
    मैंने भी वह
    शीत चखा है .
    नील-स्वप्न,स्वछंद,सुवासित
    कितना सटीक अभिव्यक्त किया है अपने भाव को .....बहुत बढ़िया

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  4. एक अच्छी रचना पढ़ने को मिली, बधाई.

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  5. कभी वसंती द्रुम-दल के
    पीछे-पीछे,
    हल्के-हल्के से पाँव,
    रखा है,
    मैंने भी वह
    शीत चखा है.

    बहुत सुन्दर ...

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  6. नील-स्वप्न,स्वछंद,सुवासित
    पंख जहाँ
    खुलते थे,
    तरुण मलय के
    पत्तों पर,
    किरणों के रस
    घुलते थे ,

    मन को विभोर कर देने वाली रचना ....सुन्दर शब्दों से सजाई है ...

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  7. बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

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  8. और मैंने भी.....(वह शीत चखा है)

    बहुत सुंदर रचना........

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  9. आप हमारे ब्लॉग मै आई उसके लिए बहुत शुक्रिया दोस्त और इसी वजह से मुझे भी इतने अच्छे ब्लॉग मै आने का मोका मिला !

    बहुत सुन्दर एहसासों से भरी रचना !

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  10. very very very beautiful...its like a song...zubaan pe chipak gaya ab..maine bhi vo sheet chakha hai...tooo good :)

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  11. मैंने भी वह
    शीत चखा है.
    kuch mujhe bhi mil jaye

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  12. ऐसे शब्द और भाव...बहुत कम देखने को मिलते हैं...इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...

    नीरज

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  13. बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

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  14. बेहद मनभावन रचना।

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  15. 'मैंने भी शीत चखा है '

    गहरी संवेदना ,गहन अनुभूति और सुन्दर भावों से सजी रचना ....

    अभिव्यक्ति मनमोहक ...

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  16. सुंदर शब्दावली!

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  17. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है.विचार माला की तरह गुंथे हुए हैं.शुभ कामनाएं

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  18. उत्तम प्रस्तुति. शुभकामनाएँ...

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  19. नूपुर की तरह बजते हैं शब्द और संगीत का अनुभव कराती है यह कविता...

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  20. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html

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  21. बहुत सुन्दर रचना !

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  22. नील-स्वप्न,स्वछंद,सुवासित
    पंख जहाँ
    खुलते थे,
    तरुण मलय के
    पत्तों पर,
    किरणों के रस
    घुलते थे ,
    अनिल द्वार पर
    दस्तक देकर,
    सौरभ रख जाता था ,
    कलियों का परिधान
    इत्र के, मेले में
    आता था.
    मृदुला जी, बहुत ही सुंदर शब्दों व भावों से सजी बेहतरीन, अनूठी, अप्रतिम रचना .

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  23. शानदार ! अच्छा हो अगर आप कुछ अल्फ़ाज़ों के मायने लिखें !

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  24. पत्तों पर,
    किरणों के रस
    घुलते थे ,
    अनिल द्वार पर
    दस्तक देकर,
    सौरभ रख जाता था ,
    कलियों का परिधान
    इत्र के, मेले में
    आता था।

    कोमल भावों से युक्त एक सशक्त रचना।
    कविता में आपकी उच्च स्तरीय काव्य प्रतिभा स्पष्ट झलक रही है।

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  25. सुन्दर , सरस एवं बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  26. स्वर्ण-सुधा की मदिरा
    पी-पी कर
    गुलाब खिलते थे,
    अलि गुंजन की लय
    सुन-सुन कर,
    धूप-छांव बुनते थे,

    अति उत्तम भाव अभिव्यक्ति -
    बहुत कोमल सुंदर रचना -
    शुभकामनायें

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  27. पूरा मामला ही आपने वासंती बना दिया....मजेदार....
    देखिये ऋतुराज!आपके स्वागत में हम तैयार खड़े हैं......

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  28. Mridula ji ati uttam rachna kliye aapko badhai
    behtreen varnan.....

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  29. कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति है आपकी पोस्ट पढ़कर मैं भी अब कह सकती हूँ "मैंने भी वो शीत चखा है "

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  30. प्रथम पहर के
    अमृत से ,
    शचैल- स्नान होता था,
    रात सितारों की
    महफ़िल में,
    आमंत्रण रहता था ....
    बहुत खूब ... शब्दों का बेहतरीन जाल बुना है .. बहुत कोमल भाव संजोय हैं ..

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  31. अति उत्तम भाव ,सुंदर अभिव्यक्ति

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  32. धड़कनों की तर्ज़ुमानी,
    अ़ब किताबों में
    रखा है ,

    स्वर्ण-सुधा की मदिरा
    पी-पी कर
    गुलाब खिलते थे,


    रात सितारों की
    महफ़िल में,
    आमंत्रण रहता था,

    प्रेम रस की सुधा पी खिले गुलाब सी ...
    सुकोमल कविता .....!!

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  33. कलियों का परिधान
    इत्र के, मेले में
    आता था.
    स्वर्ण-सुरा की मदिरा
    पी-पी कर
    गुलाब खिलते थे,

    वाह ,नए विम्बों का अभिनव प्रयोग !
    शब्द पटल पर भावों का मनोहारी , दुर्लभ चित्र !
    इस सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !

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  34. सुंदर भाव,अच्छी रचना.

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  35. lo kar lo baat.....aapke shabdon men chhakh liyaa hamne bhi sheet kaa swaad.......

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