रंग की दहलीज पर
उड़ती
गुलालों की फुहारें,
लाल,पीली,जामनी
पनघट,
कनक के हैं किनारे.
दूर नभ के
छोर पर,घट स्वर्ण का
पानी,सिन्दूरी,
सात घोड़ों के सजे
रथ से,किरण
उतरी सुनहरी.
स्वर्ण घट में भरी लाली,
धूप थाली में
सजा ली,
छितिज का आँचल
पकड़कर
एक चक्का लाल सा,
हौले से
नीचे को गया,
'सूर्यास्त'
कहते हैं हुआ.
बहुत खुबसूरत प्रस्तुति..मॄदुला जी..
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
सूर्यास्त का मनोहारी वर्णन...
ReplyDeleteबहुत सुंदर वर्णन
ReplyDeleteवाह,,,, बहुत सुंदर मनोहारी प्रस्तुति,,,बेहतरीन रचना,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
shabdon ka itna sundar prayo padh kar mukh se apne aap hi --Wah wah !nikal gaya
ReplyDeletebehtreen rachna
aabhaar
poonam
सूर्योदय के बाद अब सूर्यास्त :) बहुत खूबसूरत रंग बिखेरती हैं आप अपने शब्दों से...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..............
ReplyDeleteहमारी टिपण्णी कहाँ ढल गयी????
सादर
......बहुत ही सुंदर मनोभावों को समेटे.....मनभावन रचना।
ReplyDeletekhoobsoorat rango me samet kar suraast kar diya.
ReplyDeleteवाह बहुत खूबसूरत हैं ये जीवन के रंग
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति!
ReplyDeleteवाह मृदुलाजी ...इतना सुन्दर सूर्यास्त ...पहले कभी नहीं देखा ...!!!!!
ReplyDeleteप्रकृति का अदभुत सौन्दर्य
ReplyDeleteबढ़िया शब्द चित्र खींचा है आपने ...
ReplyDeleteसिंदूरी शाम सी बढ़िया रचना...
ReplyDeleteसादर
धूप थाली में
ReplyDeleteसजा ली,
छितिज का आँचल
पकड़कर
गुनगुनी रचना उपमा की पराकाष्टा को छूती
सुंदर रचना !!
ReplyDeleteएक चक्का लाल सा,
ReplyDeleteहौले से
नीचे को गया,
'सूर्यास्त'
कहते हैं हुआ.
सूर्यास्त का अद्भुत वर्णन.
सुंदर वर्णन।
ReplyDeleteवाह ...सिन्धुरी शाम आँखों में उतर आई ..
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