आप सब जाने-अनजाने पाठकों को मन से धन्यवाद देती हूँ, जो मेरी कवितायेँ पढ़कर, समय -समय पर अपनी बेबाक टिप्पणी से उसे सजाते-संवारते रहते हैं. आपके सहयोग का सुख अमूल्य है और लगातार प्रेरित करती रहती है कुछ लिखने के लिए......
'तन्हाई में यूँ ही बैठे,
जब
याद हमारी
आ जाये.....
मीठी यादों को
जोड़-जोड़,
अलकों में
भरकर स्नेह प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना......
तुम हँस देना.
सागर में जब
लहरें गायें,
बागों में
कलियां मुस्कायें,
बादल के पीछे
इन्द्रधनुष,
अपनी आभा जब
बिखरायें,
ऐसे में
खो स्मृतियों में.....
सौरभ का कर एहसास प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना ।
गोधूलि की
आहट को सुन,
जब पक्षी
कलरव कर जायें,
नभ के आँगन में
छिटपुट से,
कुछ तारे भी जब
खिल जायें,
ऐसे में
स्मित हास लिये,
पलकों पर
रखकर प्यार प्रिय,
मेरा मन रखने को
इतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'
मेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'
how swwweeeet.......itni pyara innocent sa thought....lovely :)
मेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'
bahut hi masoom khyaal hain, bahut khoobsurti se likha hai
तुम हँस देना.
ReplyDeleteसागर में जब
लहरें गायें,
बागों में
कलियां मुस्कायें,
बादल के पीछे
इन्द्रधनुष,
अपनी आभा जब
बिखरायें,
खूबसूरत एहसासों और ख्वाहिश को सरलता से शब्दों में पिरोया है.
सादर
रचना, हर बार की तरह,
ReplyDeleteसाधुवाद.
वाह!!!!क्या लिखती हैं मेडम बहोत खूब!!!
ReplyDeleteमिठास से भरी हुई रचना।
ReplyDeleteपसंद आई। बधाई।
वाह ...बहुत ही खूबसूरत शब्द ।
ReplyDeleteकोमल भावों से सजी ..
ReplyDelete..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
वसन्त की आप को हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteमेरा मन रखने
ReplyDeleteइतना तुम कर देना
तुम हँस देना
बहुत सुन्दर ...ह्रदय से निकली रचना
"तन्हाई में यूँ ही बैठे,/जब /याद हमारी / आ जाये...../ मीठी यादों को/ जोड़-जोड़,/ अलकों में / भरकर स्नेह प्रिय,/ मेरा मन रखने को/ इतना / तुम कर देना....../ तुम हँस देना..'- एक सामान्य सा आग्रह, पर अपने आप में अनुपम. बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
ReplyDeleteमीठी यादों को/जोड़-जोड़,/अलकों में/भरकर स्नेह प्रिय,/मेरा मन/रखने को/इतना/तुम कर देना....../तुम हँस देना.
ReplyDeleteकितना विनम्र और प्यार भरा निवेदन है ...बहुत सुंदर
Masoom,komal,anoothe ehsaas!
ReplyDeleteमेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'
वाकई खुबसूरत प्रस्तुति...
बहुत विनम्र निवेदन और खुबसूरत प्रस्तुति|
ReplyDeleteआप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
इतने खूबसूरत नज़ारों को साक्षी बनाकर जब इस तरह मनुहार करे तो कोई कैसे नहीं हँसेगा.. इस हँसने के अनुरोध पर गुलज़ार साहब की नज़्म याद आ गई.. मुस्कुराहट मुआवज़ा है मेरा...!
ReplyDeleteमृदुला जी पूरे लय में एक बेहतरीन कविता!!
मेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना ।
कोमल अहसासों को समेटे बेहद खूबसूरत रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
pyaar ke meethe ahsas se bahri kavita....
ReplyDeleteमेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना.'
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.मन को स्पर्श करती हुई.
ढेरों शुभ कामनाएं.
sundar aur bhavpoorn abhivyakti....
ReplyDeletekhoosoorat...
smiles for you ma'am :) :) :)
ReplyDeletefew more :) :) :)
lovely penning!
बहुत खुबसुरत रचना जी धन्यवाद
ReplyDeleteमुस्कुरा देने और हंस देने का बहुत ही अच्छा निवेदन...सब को मुस्कुराना चाहिए....
ReplyDelete"....तुम हँस देना!"
ReplyDeleteमासूम सी अभिलाषा से भरा निवेदन, सुन्दर है! वसंत पंचमी की आप एवं आपके पाठक जनो को शुभकामानयें!
मृदुला जी,
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेम से सराबोर पोस्ट है......बहत खूब|
मेरा मन रखने को
ReplyDeleteइतना
तुम कर देना.....
तुम हँस देना....
कोमल अहसासों से भरी बस इतनी सी तो चाहत है... बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति.मन को स्पर्श करती हुई.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बहुत सुन्दर , भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबधाई मृदुला जी ।
मन रखने को हँस देना .....
ReplyDeleteयही तो जीवन जीने का आधार है .....
बहुत सुन्दर ...!!
भावपूर्ण अभिव्यक्ति ..
ReplyDelete..मन को स्पर्श करती हुई.बहुत सुन्दर..
मृदुला जी, इस प्यारी सी चाह पर कौन न निसार हो जाए।
ReplyDelete---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
स्मित हास लिये,
ReplyDeleteपलकों पर
रखकर प्यार प्रिय
भावपूर्ण.. खुबसूरत प्रस्तुति..
आद. मृदुला जी,
ReplyDeleteप्रेम और समर्पण का अनमोल धरोहर है आपकी कविता !
धाराप्रवाह भावों का प्रभावी सम्प्रेषण कविता को पूर्णता प्रदान करता है !
साधुवाद !
Hi..
ReplyDeleteEtne sahaj, saral bhavon se..
koi priyvar ko kah paaye..
hansna kya kshan do kshan ka fir..
wo to hardam hi muskaaye..
Kavita padhkar anjaane hi..
hum bhi bas muska baithe hain..
sneh akinchan se tere hum..
Man apna harsha baithe hain..
Meethi si kavita...
Shubhkamnaon sahit..
Deepak..
mridula ji
ReplyDeletekitni khoobsurati avam masumiyat liye hue priytam se yaadon ko sambhal rakhne ka anurodh.man ko puri tarah se bhigo gai.ek pyara komal ahsaas jise koi bhi thukra na sake .
behatreen.
avam bhav-bhini prastuti.
hardik dhanyvaad---
poonam
हद है ..... इस ब्लॉग पर मैं पहले क्यों नहीं आया !
ReplyDeletebahut hi sundar.....
ReplyDeleteमृदुला जी!
ReplyDeleteबाहुत अच्छा लिखा। तन्हाई................क्या चीज है............सब कुछ,,,,,,,,,,,,,,,,कुछ नहीं।
एक निवेदन-
मैं वृक्ष हूँ। वही वृक्ष, जो मार्ग की शोभा बढ़ाता है, पथिकों को गर्मी से राहत देता है तथा सभी प्राणियों के लिये प्राणवायु का संचार करता है। वर्तमान में हमारे समक्ष अस्तित्व का संकट उपस्थित है। हमारी अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो चुकी हैं तथा अनेक लुप्त होने के कगार पर हैं। दैनंदिन हमारी संख्या घटती जा रही है। हम मानवता के अभिन्न मित्र हैं। मात्र मानव ही नहीं अपितु समस्त पर्यावरण प्रत्यक्षतः अथवा परोक्षतः मुझसे सम्बद्ध है। चूंकि आप मानव हैं, इस धरा पर अवस्थित सबसे बुद्धिमान् प्राणी हैं, अतः आपसे विनम्र निवेदन है कि हमारी रक्षा के लिये, हमारी प्रजातियों के संवर्द्धन, पुष्पन, पल्लवन एवं संरक्षण के लिये एक कदम बढ़ायें। वृक्षारोपण करें। प्रत्येक मांगलिक अवसर यथा जन्मदिन, विवाह, सन्तानप्राप्ति आदि पर एक वृक्ष अवश्य रोपें तथा उसकी देखभाल करें। एक-एक पग से मार्ग बनता है, एक-एक वृक्ष से वन, एक-एक बिन्दु से सागर, अतः आपका एक कदम हमारे संरक्षण के लिये अति महत्त्वपूर्ण है।
बेहतरीन रचना ....शुभकामनायें !
ReplyDelete