प्रिय,जब मैं तुमसे दूर रहूँ........
तुम
मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना...
मैं सुन लूँगा......
प्रिय,भोर समय
छज्जों पर,
कोयल का रस-स्वर
गूंजे,
अपने भावों को
भरकर,
अपने सुर में
तुम गाना ,
मैं गुन लूँगा......
प्रिय,शाम ढले
आंगन में,
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना,
मैं चुन लूँगा....
प्रिय, तम में
पलकों पर तुम,
सुंदर सपनों को
लाना ,
लेकर अपनी आँखों में
मैं बुन लूँगा......
प्रिय, जब मैं तुमसे दूर रहूँ.......
तुम मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
सुन्दर सोच कविता में !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदरता से प्रेम में एक प्रेम की व्याख्या........
ReplyDeleteवाह …………प्रेम और जुदाई की एक उत्कृष्ट रचना बहुत ही मनभावन लगी…………लयबद्ध गुनगुनाती हुयी।
ReplyDeleteप्रिय, जब मैं तुमसे दूर रहूँ.......
ReplyDeleteतुम मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
per yah itna aasaan kahan
बहुत सुंदर, भावपूर्ण प्रेम कविता !
ReplyDeleteबहुत खुबसुरत रचना धन्यवाद
ReplyDeleteतुम मन-ही-मन में
ReplyDeleteमन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
वाह!! वाह!सुन्दर!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
तुम मन-ही-मन में
ReplyDeleteमन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
.....
Often we communicate telepathically
.
bahut sundar.....mann se mann ki baat...
ReplyDeleteप्यार की प्रभावशाली अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteKitni nafees,pyaree rachana hai ye!Lay hai isme! Kayi baar padhee!
ReplyDeleteप्रेम की पराकाष्ठा... जब एक को मक़तब में उस्ताद छड़ी से पीटते तो दूसरे की हथेली पर नीले निशान पड़ते थे!!
ReplyDeleteमेरी तरफ से आपको समर्पित कुछ पंक्तियाँ---
ReplyDelete"आसन बहुत
मन से मन की कह लेना.....
मन कह दे तो ,
मैं सुन लूंगी !!
खामोश ही रहना
अपनी जुबां से
न कहना कुछ
बस चुप रहना...
मन सुन लेगा,
मैं सुन लूंगी !!"
बहुत सुन्दर कविता...
सुन्दर भाव...
कोमल मन की सच्ची अभिव्यक्ति...
मन के यही भाव हैं जो किसी
निश्छल मन के द्वारा ही समझे जा सकते हैं..
बस भावनाएं सच्ची होनी चाहिए...!!
sunder geet laga mujhe mridula ji , gungunane ko man karta hai
ReplyDeleteप्रिय और प्रीतम को एक-सार करने वाली कविता....बहुत ही सुन्दर...प्रेम से सराबोर...
ReplyDeleteप्रिय, जब मैं तुमसे दूर रहूँ.......
ReplyDeleteतुम मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
सच्चे प्रेम मे दिल ही दिल की बात सुनता है। सुन्दर रचना बधाई।
बहुत सुंदर, भावपूर्ण प्रेम कविता ! .....हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteआधुनिक युग में इस प्रीतभरी याद में प्रौद्योगिकी की सुविधाएं कैसे छूट गई।
ReplyDeleteसुन्दर भावों से सजाया है, आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अहसास...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशाम ढले
ReplyDeleteआंगन में,
रजनीगंधा की कलियाँ
निज हाथों से
बिखरा देना,
मैं चुन लूँगा....
एक-एक शब्द भावपूर्ण ..... बहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteसलाम
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteक्या सच में तुम हो???---मिथिलेश
यूपी खबर
न्यूज़ व्यूज तथा भारतीय लेखकों का मंच
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
ReplyDelete:)
ReplyDeleteAshish
सोंचने वाली कविता .धन्यवाद.
ReplyDelete''मन से
ReplyDeleteमन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा''. सुन्दर कविता
आदरणीया मृदुला जी ,
ReplyDeleteप्रेम रस में सराबोर रचना बहुत प्यारी लगी |
कोमल भावों की भावुक अभिव्यक्ति मन को छू लेती है |
जहां अपनापन हो ...
ReplyDeleteवहाँ प्रिय खुद सुन लेता है सारी बातें ......
हाँ कुछ नसीब भी होते हैं .....
बहुत प्यारी रचना ......
प्रिय, जब मैं तुमसे दूर रहूँ.......
ReplyDeleteतुम मन-ही-मन में
मन से
मन की
कह लेना.....
मैं सुन लूँगा........
bahut hi sundar .
प्रेम रस में सराबोर रचना बहुत प्यारी लगी| धन्यवाद|
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी। साधुवाद।
ReplyDeletebahut sunder rachna....jate jate aapki dusari rachna bhi padhkar ja rahi hon ....
ReplyDeletebahut badhiya lagi.....
रमणीय काव्य...
ReplyDeleteरमणीय शब्द
bahut sundar kavita !
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