आज मन में आया कि कुछ अलग लिखते हैं और नतीज़ा ........
"तुम सुबह की चाय सी
गरमा-गरम,
बिस्कुट हो
'गुड-डे',
तुम 'डबल' अंडे का
'ऑमलेट',
तुम 'ट्रिपल' 'आइस-क्रीम'
'सन्डे'.
तुम समोसा हो
मटर का
और जलेबी रस भरी,
तुम ही हो
कुल्फी-फ़लूदा,
तुम ही हो
गुझिया परी.
तुम ह्रदय के कुञ्ज में
काजू की कतली,
मूंगफली हो,
तुम पराठों पर फिसलती
गुड़ में
मक्खन की डली हो.
दाल का
तड़का हो तुम,
सिगड़ी सिकी रोटी
कराड़ी,
तुम कचौड़ी हो
उड़द की
और
चटनी खूब सारी.
तुम ही हो भरवाँ करेला,
तुम हो
शलगम का अचार,
तुम हो
सीताफल की सब्ज़ी,
तुम ही हो
शरबत-अनार.
तुम मेरी कोफ्ता-करी
पालक-पनीर,
तुम हो बिरयानी
तुम ही
चावल की खीर,
अब सुनो.....
मेरी बालूशाही....
ऐ मेरी छोले-भटूरे......
तुम हो
देशी घी का
हलवा,
हो गए
हर ख़्वाब पूरे."
"तुम सुबह की चाय सी
गरमा-गरम,
बिस्कुट हो
'गुड-डे',
तुम 'डबल' अंडे का
'ऑमलेट',
तुम 'ट्रिपल' 'आइस-क्रीम'
'सन्डे'.
तुम समोसा हो
मटर का
और जलेबी रस भरी,
तुम ही हो
कुल्फी-फ़लूदा,
तुम ही हो
गुझिया परी.
तुम ह्रदय के कुञ्ज में
काजू की कतली,
मूंगफली हो,
तुम पराठों पर फिसलती
गुड़ में
मक्खन की डली हो.
दाल का
तड़का हो तुम,
सिगड़ी सिकी रोटी
कराड़ी,
तुम कचौड़ी हो
उड़द की
और
चटनी खूब सारी.
तुम ही हो भरवाँ करेला,
तुम हो
शलगम का अचार,
तुम हो
सीताफल की सब्ज़ी,
तुम ही हो
शरबत-अनार.
तुम मेरी कोफ्ता-करी
पालक-पनीर,
तुम हो बिरयानी
तुम ही
चावल की खीर,
अब सुनो.....
मेरी बालूशाही....
ऐ मेरी छोले-भटूरे......
तुम हो
देशी घी का
हलवा,
हो गए
हर ख़्वाब पूरे."
अलग लिखने का नतीजा यही निकला कि मन में समंदर और मुंह में पानी आ रहा है ........सुन्दर
ReplyDeleteललचा गया मन कि तुम कुछ और नहीं ......पूरी प्रकृति तुममे समाई है .....तभी तो यह सारी प्यारी सी चीजें बन पायी हैं ..
ReplyDeleteइतने व्यंजनों के स्वाद ने निशब्द कर दिया..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह...तुम क्या हो "काके दे ढाबे" का मीनू हो...
ReplyDeleteनीरज
बहुत सुन्दर रचना मूँह मे पानी ले आई।
ReplyDeleteवाह मृदुलाजी !
ReplyDeleteरसोई के स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ-साथ ढाबों के पकवानों और अनेकानेक मन तृप्त करने वाली चीज़ों जैसा प्यारा तो
कोई खास ही हो सकता है | बड़ी मनमुग्धकारी rachna है |
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने इस रचना में ।
ReplyDeleteये तो मास्टर शेफ ने बनाया है ... स्वादिष्ट
ReplyDeleteऊऽऽ यम्मी यम्मी !!
ReplyDeleteमृदुला जी
सस्नेहाभिवादन !
आज की कविता पढ़ते ही मुंह में पानी भर आया …
अगर ऐसी शख़्सियत सामने हो तो कौन न निगल जाना चाहेगा … :)
♥ ♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
♥ प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं! :)
बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह मृदुला जी,
ReplyDeleteगजब की कविता रची है।
आभार
kavita me jaan daal di..........pura menu aa gaya hai...:)
ReplyDeleteवाह वाह ! लगता है आप भी खाने पीने की शौक़ीन हैं, मगर जरा सम्भल के ! कहीं आपके यहाँ फोलोअरस् की भीड़ न लग जाये !
ReplyDeleteKya raseeli rachana hai! Ye to achha hai ki kewal padhnese wazan nahee badhta!
ReplyDeleteआदरणीय मृदुला जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
वाह ...बहुत खूब कहा है
इस कविता का तो जवाब नहीं !
yah to waakayi anokhi kavita hai
ReplyDeletebehad lajeej ,,, jaaykedaar
lajawaab rachna
aabhaar
''मिलिए रेखाओं के अप्रतिम जादूगर से.....'
वाह! बड़ी ही मिठास भरी इसे तो पढ़ते ही खा जाने का मन कर रहा है:)
ReplyDeleteमुंह में पानी लाने वाली सुन्दर रचना| धन्यवाद|
ReplyDeleteआदरणीया मृदुलाजी नमस्ते |बहुत ही ताजगी से भरी कविता नया कंटेंट देखने को मिला बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteवाह मृदिला जी,क्या कविता परोसी है आपने.
ReplyDeleteलाजवाब
• ताज़ा बिम्बों-प्रतीकों-संकेतों से युक्त आपकी भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम भर नहीं, जीवन की तहों में झांकने वाली आंख है। इस कविता का काव्य-शिल्प हमें सहज ही कवयित्री की भाव-भूमि के साथ जोड़ लेता है।
ReplyDeleteपढते-पढते ही लार सी टपकने लगी है ।
ReplyDeleteआज की रचना तो बहुत मिठ्टी लगी जी सथ मे चटपटी भी, धन्यवाद
ReplyDeletewaah , itni cheezein ek saath kaise khayenge mridula ji
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteमृदुला जी,
ReplyDeleteमाफ़ कीजिये मुझे आपकी ये रचना स्तरीय नहीं लगी.......जैसे आपकी अन्य
रचनाएँ होती है उसके बराबर ये कहीं नहीं टिकती......पर कुछ नया करने के लिए शुभकामनायें|
achchha hai ye non-veg and vegetarian dishes.
ReplyDeletekamal ka sanyojan...bahut badhiya....dhanyabad..
अब इतने सारे स्वदिष्ट व्यंजन की याद कराएंगी तो कविता तो मजेदार लगेगी ही ....
ReplyDeleteवाह ... मज़ा आ गया पढ़ कर इसे ..
.
ReplyDeleteVery delicious poetry !
Smiles !
.
vaah bahut sunder
ReplyDeleteyeh bhi khoob rahi...
ReplyDelete:-)
वाह मृदुला जी आपको खाने में और क्या क्या पसंद है ...
ReplyDeleteवाह इतनी स्वादिष्ट कविता पहले नहीं पढ़ी कभी. हालाँकि ये भी सच है कि इस रचना में वो गहराई नहीं है जो आम तौर पर आपकी अन्य कविताओं में होता है. फिर भी पढ़ना सुखद रहा.
ReplyDeletesundar...
ReplyDeleteइतना कुछ .वाह वाह बहुत सुंदर ....!!
ReplyDeleteइससे ज्यादा कौन चाहेगा .
बहुत सुंदर रचना