कि न फ़िक्र हो
तुमको मेरी,
न मुझे
तेरा ख्याल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
सूरज तुम्हारा
हो अलग
और
चाँद
अलग हो मेरा,
रंग हमारे
अपने -अपने,
ख्वाब
अलग हो सारा,
तुम कहीं रहो
मैं कहीं
और
दिन ढल जाये,
कोई सोये
कोई जागे,
रातें
चल जाये,
हो आसमान
अपना-अपना,
अपने-अपने
हों तारे,
इन्द्रधनुष के
आर-पार
बँट जाएँ
सपने सारे.
सावन-भादो की
बूंदे हों
अपनी-अपनी,
अपना वसंत
और धूप-छांव
अपनी ले-लेकर,
अलग- अलग
रह जाएँ
कि न चाह हो
कोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
तुमको मेरी,
न मुझे
तेरा ख्याल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
सूरज तुम्हारा
हो अलग
और
चाँद
अलग हो मेरा,
रंग हमारे
अपने -अपने,
ख्वाब
अलग हो सारा,
तुम कहीं रहो
मैं कहीं
और
दिन ढल जाये,
कोई सोये
कोई जागे,
रातें
चल जाये,
हो आसमान
अपना-अपना,
अपने-अपने
हों तारे,
इन्द्रधनुष के
आर-पार
बँट जाएँ
सपने सारे.
सावन-भादो की
बूंदे हों
अपनी-अपनी,
अपना वसंत
और धूप-छांव
अपनी ले-लेकर,
अलग- अलग
रह जाएँ
कि न चाह हो
कोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
वाह क्या खूब चाह है…………सच ऐसा कभी ना हो हर दिल की यही आस होती है………अति सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteकि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
ईश्वर ऐसा ही करे .... बेहद सुंदर रचना
बहुत खूबसूरत इच्छा ... कभी ऐसा न हो ....सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteया खुदा
ReplyDeleteवो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
सूरज तुम्हारा
हो अलग
और
चाँद
अलग हो मेरा,
रंग हमारे
अपने -अपने,
ख्वाब
अलग हो सारा,
तुम कहीं रहो
मैं कहीं
bilkul nahi... saath hamesha bana rahe , rang ek se hon
कि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
वाह ...ये ख्याल भी कहां कहां चले जाते हैं .बहुत ही सुन्दर ।
बंदे का बस चले तो वह ऐसा ही कर ले इसलिए खुदा ने एक ही सूरज बनाया एक ही चाँद और एक ही हवा में हम सबको लेनी है साँस !
ReplyDeleteकोमल भावों की सुन्दरतम अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteईश्वर करे कभी ऐसा न हो
या खुदा
ReplyDeleteवो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो...
बहुत खूब ... सच में ऐसा नहीं होना चाहिए ... दो दिल प्यार करें उनका सब कुछ साथ साथ होना चाहिए ....
मृदुला जी,
ReplyDeleteइतना ही कहूँगा.....आमीन.....
ये लाइने बहुत पसंद आयीं -
कि न चाह हो
कोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
bahut khubsurat bhav..........
ReplyDeleteसच कहा आपने , वो दिन कभी न आये जब अपनों से अलग होकर जीना पड़े। एक आसमान के नीचे एक चांदनी में जो सुख है , वो कहीं नहीं...
ReplyDeleteबेहद रूमानी कविता....
ReplyDeleteया खुदा
ReplyDeleteवो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
ईश्वर करे कभी ऐसा न हो ,सुन्दरतम अभिव्यक्ति....
suner hai ...
ReplyDeleteकि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
वैसे यह शेर लगता है मगर आपने लघु पंक्तियों में लिख कर कुछ दुविधा में डाल दिया था | जबरदस्त जोरदार अच्छा लगा , शुभकामनायें
इच्छाएं वाजिब हैं.
ReplyDeleteकि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
bahut khoob........
ReplyDeleteखुबसुरत अभिव्यक्ति। खुदा करे ऐसा हाल कभी किसी का न हो।
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
ReplyDeleteको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
हम भी दुआ करेंगे कि यह दिन दुश्मनों को भी न दिखाए!!
ReplyDelete"कि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो."
बहुत खूबसूरती से हर पंक्ति गढ़ी है आपने...
सुन्दर एहसास...
सुन्दर भाव......!!
बहुत खूबसूरत रचना, धन्यवाद
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना ! प्यार की पराकाष्ठा का बहुत सुन्दर चित्रण किया है ! एकाकी होने पर सारी कायनात भी कैसी बेमानी सी लगती है इस बात का अहसास बखूबी करा दिया है आपने ! बहुत सुन्दर रचना !
ReplyDeleteआज मंगलवार 8 मार्च 2011 के
ReplyDeleteमहत्वपूर्ण दिन अन्त रार्ष्ट्रीय महिला दिवस के मोके पर देश व दुनिया की समस्त महिला ब्लोगर्स को सुगना फाऊंडेशन जोधपुर की ओर हार्दिक शुभकामनाएँ..
Very nice. I enjoyed reading it. Thanx :)
ReplyDeleteलयबद्ध सुंदर आधुनिक कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई स्वीकार करें मृदुला जी
ReplyDeletebahut hi marmsparshi rachnaa.....
ReplyDeleteमहिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteया खुदा
ReplyDeleteवो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो.
bahut sunder rachna .
bahut sunder bhav
वाह वाह मृदुला जी बहुत खूबसूरत रचना इतनी सादगी से खितनी बी बात कह डाली । आमीन ।
ReplyDeleteकृपया कितनी बडी पढें ।
ReplyDeleteकविता अच्छी लगी। खुदा को याद न किया जाय और दिन गुजर जाय,ऐसा कभी न हो। सुन्दर है। आभार।
ReplyDeleteहो आसमान अपना-अपना,
ReplyDeleteअपने-अपने हों तारे,
इन्द्रधनुष के आर-पार बँट जाएँ
सपने सारे.
... सुन्दर शब्द रचना सुन्दर संसार के लिए चाह.
सूरज तुम्हारा
ReplyDeleteहो अलग
और
चाँद
अलग हो मेरा,
रंग हमारे
अपने -अपने,
ख्वाब
अलग हो सारा,
तुम कहीं रहो
मैं कहीं
khone ka dar bura hota hai ,sundar rachna ,mahila divas ki badhai .
कविता अच्छी लगी। धन्यवाद|
ReplyDelete...अच्छी लगी कविता।
ReplyDeleteकि न चाह हो
ReplyDeleteकोई तुम्हें,
न मेरा कोई
सवाल हो,
या खुदा
वो दिन न हो,
जिसमें
ये अपना हाल हो. mohak..
मृदुला जी आपकी दोनों कविताएं स्तरीय हैं । गहन अनुभूति से भरी । एकान्त ...कविता एक सच को उजागर करती है कि पूर्ण अभिव्यक्ति के बाद हम मुक्त हो जाते हैं ।
ReplyDeleteमैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ उम्दा रचना लिखा है आपने! बेहतरीन प्रस्तुती!
बहुत खूब! बहुत भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति..
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