पहली बार जब अकेले हवाई-यात्रा(1984 में दिल्ली से कुबैत) करनी पड़ी उसीका एक छोटा सा अनुभव............
कैसी है ये यात्रा
कैसा है
ये सफ़र ,
इधर और उधर
सिर्फ़
नए ,अपरिचित चेहरे .
कहीं बच्चों की
कतार,
कहीं सरदारजी
सपरिवार ,
कोई खा रहा
चौकलेट,
कोई पी रहा
सिगार .
किसे दिखाऊँ
उस औरत का
जूड़ा,
किसे दिखाऊँ
उन महाशय की
मूंछें ,
किससे कहूं
'एयर -बैग' उतारो ,
किससे कहूं
'सीट -बेल्ट'
बाँधो.
किसे पिलाऊँ
अपने हिस्से का
'कोल्ड -ड्रिंक',
किसके कन्धों पर
सोऊँ उठंगकर
कि
बगल की कुर्सी पर
न तुम,न तुम और न तुम.
बहुत खूब ....।।
ReplyDeletebahut sundar...
ReplyDeleteएक दुसरे से परस्पर अनजान होती दुनिया ! क्या कहें ...
ReplyDeleteअगर कोई सँग होता तो न बनती यह कविता !
ReplyDeleteअकेलेपन का एहसास सुंदर तरीके से बयां किया है -
ReplyDeleteकिसके कन्धों पर
ReplyDeleteसोऊँ उठंगकर
कि
बगल की कुर्सी पर
न तुम,न तुम और न तुम.
bahut hi achha likha hai
अकेलेपन के एहसास से रूबरू कराती कविता अच्छी लगी.. बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअकेलेपन का एहसास सुंदर तरीके से बयां किया है|धन्यवाद|
ReplyDeleteAchhe rachnaa
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (24-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
bahut sunder.........
ReplyDeleteसुंदर तरीके से बयां किया है
ReplyDeleteआदरणीय मृदुला जी
ReplyDeleteनमस्कार !
..............बहुत खूबसूरत रचना !
अद्भुत!
ReplyDeleteकितनी अच्छी कविता बना दी है आपने इस संस्मरण पर।
वाह !!
ReplyDeleteसुन्दर और वास्तविक अनुभव...
आनंद आ गया....!
शायद हम सभी अकेले यात्रा के दौरान
कुछ ऐसा ही महसूस करती हैं......!!
एक शानदार रचना जी, धन्यवाद
ReplyDeleteपहली बार हवाई यात्रा करने में बड़ा नर्वस लगता है ... मुझे भी लगा था ... अब तो लगता है कि हवाई यात्रा से रेल यात्रा सुखद होता है .. कम से कम पैर पसर कर सो तो सकते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.अकेलेपन के अहसास का बहुत सशक्त चित्रण ...
ReplyDeleteBahut sundar prastuti...
ReplyDeleteHOLI & Rangpanchmi Ke HAARDIK SHUBHKAMNAYEN..
Saadar
सो स्वीट!
ReplyDeleteकिससे कहूं
ReplyDelete'एयर -बैग' उतारो ,
किससे कहूं
'सीट -बेल्ट'
बाँधो.
किसे पिलाऊँ
अपने हिस्से का
'कोल्ड -ड्रिंक',
laazwaab ,jo baate jodti hai ,wahi yaado me bas kar taklif pahunchane lagti hai .
वाह वाह क्या बात है ....मृदुला जी ...
ReplyDeleteकोल्ड -ड्रिंक तो आप हमें पिला दें ....
बाकी बगल में नींद कहाँ देखने देती है ....):
अकेलेपन के अहसास का बहुत सशक्त चित्रण ...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteनया अंदाज़ ...शुभकामनायें !!
ReplyDeleteआपके विचार बहुत अच्छे हैं।
ReplyDeleteचलिए अकेले सफर करने से एक कविता का तो जन्म हुआ यह क्या कम है
ReplyDeletesateek abhivykti.
ReplyDeletesundar rachna....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteअकेलेपन से उपजी कविता के भाव बहुत सुंदर हैं।
'कुछ हम न बदल जाएँ
ReplyDeleteकुछ तुम न बदल जाना
..................................
..................................
हम तो,निभाएंगे ही
तुम भी इसे निभाना '
कोमल भावों की सुन्दर रचना
आपने तो माहॉल सामने ला दिया ... आज भी ऐसा ही माहॉल होता है ....
ReplyDeleteवाह :) 50 साल !
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